इस जगह को फतेह किया बिना अधूरा तालिबान का अफगानिस्तान पर शासन करने का सपना

नई दिल्ली। अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबान का राज लौट आया है। लगभग पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है, फिर भी एक क्षेत्र ऐसा भी है जो उसके शासन से बाहर है। इस इलाके पर कब्जा करना तालिबान का सपना रहा है, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है। आखिर क्या है इस इलाके की खासियत और यहां तालिबान का विरोध क्यों है? अफगानिस्तान में तालिबान के शासन से परे पंजशीर है। पंजशीर प्रांत दशकों से तालिबान के विरोध का प्रतीक रहा है। काबुल से 150 किमी उत्तर में स्थित पंजशीर, उत्तर में पंजशीर पहाडिय़ों और दक्षिण में कुहिस्तान पहाडिय़ों से घिरा हुआ है। सालों भर बर्फ से ढके पंजशीर की भौगोलिक स्थिति ने इसे अजेय किला बना दिया है।
कठिनाइयों ने पंजशीर की आबादी को स्वाभाविक रूप से जुझारू बना दिया है। वे 1980 के दशक में सोवियत रूस के खिलाफ अमेरिका द्वारा सशस्त्र किए गए थे। तब उन्हें पाकिस्तान से आर्थिक मदद मिलती थी। 1990 के दशक में तालिबान के सत्ता में आने के बाद उत्तरी गठबंधन ने यहां से विरोध की कमान संभाली। इस बार ईरान, रूस और भारत ने पंजशीर को आर्थिक मदद दी। पंजशीर में स्थित नॉर्दर्न एलायंस ने 2001 में तालिबान को गिराने में संयुक्त राज्य अमेरिका की बहुत मदद की।
लेकिन पंजशीर को विकास के रूप में उसका प्रतिफल नहीं मिल सका। पिछले 20 सालों में इतना कुछ हुआ है कि सूबे के कई इलाकों में पक्की सडक़ें बनाई गईं और रेडियो टावर लगा दिया गया. पंजशीर प्रांत के 7 जिलों के कई गांवों में बिजली-पानी की आपूर्ति नहीं है, जबकि विकास की अपार संभावनाएं हैं. यह क्षेत्र विश्व के सर्वोत्तम प्रकार के पन्ना का गढ़ है, जो आज भी अछूता है। पन्ना की खुदाई शुरू हुई तो बहुत संभावना है कि विकास के पैमानों में पंजशीर कई स्तरों पर अव्वल होगा।
ताजिक समुदाय के बहुसंख्यक पंजशीर पर तालिबान कभी कब्जा नहीं कर पाया। 90 के दशक में उत्तरी अफगानिस्तान का ज्यादातर हिस्सा तालिबान की पहुंच से बाहर था, लेकिन इस बार चीजें बदल गई हैं। तालिबान इस बार बेहद ताकतवर ताकत बनकर उभरा है। उत्तरी अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्से भी तालिबान के नियंत्रण में हैं। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिलने लगी है। इस बार पंजशीर चारों तरफ से तालिबान से घिरा हुआ है। यदि भोजन और दवाओं जैसी आवश्यक आपूर्ति बंद कर दी जाती है तो पंजशीर का विरोध कब तक चलेगा, यह कहना मुश्किल है।
तालिबान पहले ही आपूर्ति बंद करने की धमकी दे चुका है। इस बार तालिबान के विरोध को अहमद मसूद ने उठाया है, जिन्हें अशरफ गनी सरकार में उपाध्यक्ष रहे अनरुल्लाह सालेह का भी समर्थन मिल रहा है. अहमद मसूद ने साफ कर दिया है कि तालिबान से लडऩे के लिए उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हथियारों की जरूरत है। पीढिय़ां भी बदल गई हैं। तालिबान ने नई पीढ़ी को विकास नाम का एक आकर्षक चारा दिया है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मसूद और सालेह का विरोध करने वाले तालिबान को पहले की तरह आम जनता का समर्थन मिलेगा?

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