ऐसे बने भीलवाड़ा के अशोक आनंद गिरी, पढ़ें पूरी स्टोरी

नई दिल्ली। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में उनके शिष्य आनंद गिरि को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आनंद गिरी का संबंध राजस्थान के भीलवाड़ा से है। वह असिंद क्षेत्र के सरायरी गांव के रहने वाले हैं. उनका असली नाम अशोक है। 12 साल की उम्र में वे अपना गांव छोडक़र हरिद्वार चले गए। अशोक कैसे बन गए आनंद गिरी आपको बताते हैंं अब तक उनकी सारी कहानी… 1997 में आनंद गिरी अपना घर छोडक़र हरिद्वार चले गए थे। उस समय वे गांव और परिवार में अशोक के नाम से जाने जाते थे। इसके बाद वे हरिद्वार में महंत नरेंद्र गिरि की शरण में गए। 2012 में महंत नरेंद्र भी गिरि के साथ उनके गांव आए थे। नरेंद्र गिरि ने उन्हें उनके परिवार के सामने दीक्षा दी थी और वे अशोक से आनंद गिरी बने।
आनंद गिरी 5 महीने पहले मां की मौत के बाद गांव आए थे। संत बनने के बाद दो बार गांव आ चुके हैं। पहली बार दीक्षा लेने के लिए और उसके बाद 5 महीने पहले, जब उनकी मां का निधन हो गया था। इस दौरान गांव के लोगों ने आनंद गिरी का खूब सत्कार किया था। आनंद गिरि भीलवाड़ा जिले के आसिंद क्षेत्र के सारेरी गांव के मंदिर में परिक्रमा करते थे।
परिजनों ने बताया कि आनंद गिरि जब सातवीं में पढ़ रहे थे तो वह गांव छोडक़र हरिद्वार चला गए थे। वह ब्राह्मण परिवार से हैं। पिता गांव में ही खेती करते हैं। आनंद गिरी परिवार में सबसे छोटे हैं। उनके तीन भाई हैं। एक भाई आज भी सब्जी की गाड़ी चलाता है। सूरत में दो भाइयों का कबाड़ का काम है। सारेरी गांव के लोग आनंद गिरी को एक अच्छे संत के रूप में जानते हैं। कहा जाता है कि ये शांत और विनम्र स्वभाव के हैं। आनंद गिरी का नरेंद्र गिरि से विवाद पुराना था।
आनंद गिरि संदेह के घेरे में हैं क्योंकि उनका नरेंद्र गिरि से विवाद काफी पुराना था। इसका कारण बाघंबरी सिंहासन की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि ने संभाला था। कुछ साल पहले आनंद गिरी पर नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगा था इसके बाद विवाद और गहरा गया। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का भी आरोप लगाया था।

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