तो तालिबान के खिलाफ नरम रुख अपनाकर अमेरिका तैयार कर रहा है ये मास्टर प्लान

नई दिल्ली। भले ही अमेरिका ने राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में अफगानिस्तान को अधर में छोड़ दिया हो, लेकिन पेंटागन की माने तो अमेरिकी सेना आईएस-केपी को तबाह करने के लिए तालिबान की ही मदद ले सकती है। इसके पीछे तालिबान और आईएस-केपी के ऐसे समीकरण हैं जिनके तहत आईएस-केपी तालिबान को अपना दुश्मन मानने लगे हैं। ऐसे में तालिबान को अमेरिका की मदद देकर आतंक का यह मॉड्यूल अपनी जड़ें खोद सकता है इस संभावना को पेंटागन के शीर्ष अधिकारी की बातों से बल मिलता है। जिसमें उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ जंग में तालिबान से हाथ मिलाने की संभावना से भी इंकार नहीं किया।
गौरतलब है कि आईएस ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी पर अपने मुखपत्र में मिलीभगत का आरोप लगाते हुए आरोप लगाया था कि तालिबान ने इस्लामी शासन की बहाली के रास्ते में अपना विश्वास खो दिया है। इसके बाद ही काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी हमला होता है और 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 200 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है, यह अलग बात है कि अमेरिका का दावा है कि उसने नंगरहार में ड्रोन हमला कर आतंकी हमले के दोषी को मार गिराया है। इस कड़ी में अगला कदम तालिबान की मदद से आईएस-केपी मॉड्यूल को खत्म करना है। अमेरिका की ओर से पहले ही कहा जा चुका है कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपना अभियान जारी रखेगा।
ऐसे में ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मार्क मिले का बयान आया है। बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में जनरल मिल्ली से एक पत्रकार ने पूछा कि क्या अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तालिबान से हाथ मिलाएगा। इस पर जनरल मिली ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और कहा कि इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इससे पहले, यूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख, मरीन जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने अफगानिस्तान से निकासी प्रक्रिया के दौरान तालिबान के साथ अमेरिकी संबंधों को बहुत ही व्यावहारिक और व्यावसायिक बताया। उन्होंने कहा कि तालिबान ने हवाईअड्डे की सुरक्षा में अमेरिका की मदद की।

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