यूपी में पांव टिकाने की कोशिश में जुटी आम आदमी पार्टी

  •  संकल्प यात्रा निकालकर चुनावी अभियान को दी तेजी

लखनऊ। आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने पांव टिकाने की कोशिश में जुटी है। पिछले दिनों पार्टी ने उत्तर प्रदेश के नोएडा और आगरा में तिरंगा संकल्प यात्रा निकालकर पार्टी के चुनावी अभियान को तेजी दी हैं। राज्यसभा सांसद संजय सिंह और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों शहरों में आयोजित तिरंगा यात्रा में न केवल शामिल हुए बल्कि संजय सिंह ने यूपी की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी किया। इससे पहले लखनऊ में पार्टी तिरंगा संकल्प यात्रा निकाल चुकी है और आगामी 14 सितंबर में इस यात्रा के अयोध्या में भी निकाले जाने की तैयारी हो रही है। आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इन दिनों यूपी के सभी 75 जिलों से लोगों को पार्टी का सदस्य बनाने का अभियान चलाया जा रहा हैं। 23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में पार्टी ने एक महीने में एक करोड़ कार्यकर्ताओं की औपचारिक भर्ती का अपना लक्ष्य बनाया है, जो कि लगभग पूरा होता दिख रहा है। लेकिन सबसे अहम सवाल यही है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचंड बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी के अलावा राज्य में तीन बड़ी पार्टियां (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस) पहले से ही मौजूद हैं। इसके अलावा राज्य के अलग-अलग हिस्सों में तमाम छोटी पार्टियां भी हैं। आम आदमी पार्टी प्रदेश में लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। पार्टी के सदस्यता अभियान में भी दिखा कि पार्टी के कार्यकर्ता लोगों से सदस्यता फॉर्म भरवा रहे हैं। इसमें कोई भी अपना नाम, पिता का नाम, वोटर आईडी, फोन नंबर, इत्यादि की जानकारी देकर सदस्यता ले सकता है। इसके अलावा पार्टी मिस्ड कॉल के जरिए और मोबाइल ऐप के माध्यम से और घर-घर जाकर सदस्य बनाने का दावा भी कर रही है। फिलहाल वर्तमान पर अगर नजर डाले तो लोग केजरीवाल मॉडल व पार्टी की नीतियों से प्रभावित हैं। जनता चाहती है कि महंगाई के दौर में फ्री में बिजली मिले। शिक्षा अच्छी मिले। मेडिकल सुविधा भी दिल्ली की तरह हो। ऐसे में संभवत: आम आदमी पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत बढ़ सकता है। क्योंकि इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि यूपी में जितने भी दल हैं सभी जाति, धर्म, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों में उलझे हैं, लेकिन पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, भ्रष्टाचार जैसे हमारे मूल मुद्ïदे चुनाव में गायब हैं।

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