कैप्टन के खिलाफ सिद्धू की फील्डिंग से हाईकमान को आ रहे पसीने

नई दिल्ली। कांग्रेस के लिए मुश्किले जितनी ज्यादा पार्टी के बाहर है उससे कम मुश्किले पार्टी के भीतर भी नहीं हैं। एक ओर उत्तराखंड में घमासान मचा हुआ है तो दूसरी ओर पंजाब में…. पार्टी आलाकमान दोनों ही मोर्चों पर विवाद को समाप्त करने में असफल साबित हो रहा है। पंजाब में कैप्टन और सिद्धू के बीच चल रहा युद्ध अब दस जनपथ तक पहुंच गया है। आलाकमान इस बात को महसूस कर रहे हैं कि जल्द ही इस मामले को निपटाया नहीं गया तो इसका असर विधानसभा चुनाव में पड़ेगा दरअसल अगले साल की शुरुआत में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद अब कांग्रेस की समस्या का कारण बनता जा रहा है। यही कारण है कि अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बनाई गई तीन सदस्यीय केंद्रीय समिति दोनों नेताओं के बीच सुलह को सुगम बनाने के लिए सक्रिय हो गई है । प्रदेश के दो दर्जन विधायकों को दिल्ली बुलाया गया है, जिनके साथ केंद्रीय समिति बात करेगी और सुलह का रास्ता निकालेगी। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या कैप्टन और सिद्धू के रिश्ते में आई खार्ई भर जाएगी?
पंजाब कांग्रेस में राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई खत्म करने के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बनाई गई कमेटी में हरीश रावत, मल्लिकार्जुन खडग़े और जयप्रकाश अग्रवाल शामिल हैं। यह तीन सदस्यीय कमेटी पंजाब कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात कर उनका फीडबैक लेगी। केंद्रीय समिति की बैठक तीन स्तरों पर होगी, जिसमें मंत्री और विधायक पहले भाग में हैं। पहले चरण की बैठक में शामिल होने के लिए दो दर्जन से अधिक विधायक दिल्ली पहुंच चुके हैं, जिनमें 8 मंत्री शामिल हैं।
इसके साथ ही दूसरे भाग में पार्टी के सांसद, राज्यसभा सदस्य और प्रदेश अध्यक्ष के साथ मंथन होगा और उनसे फीडबैक लेंगे। इसके बाद तीसरे चरण में केंद्रीय कमेटी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी बात करेगी। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि मुख्यमंत्री के साथ समिति की बैठक कब होगी। केंद्रीय समिति सभी विधायकों और मंत्रियों के साथ-साथ सांसदों से बातचीत करने के बाद अपनी रिपोर्ट सोनिया गांधी को सौंपेगी। माना जा रहा है कि ये सारी कोशिश चुनाव से पहले पार्टी की आपसी गुटबाजी को खत्म करने की है।
सोमवार को पहले चरण की बैठक में शामिल होने वाले नेताओं में कैबिनेट मंत्रियों में ब्रह्म मोहिंद्र, मनप्रीत बादल, ओपी सोनी, साधु सिंह धर्मसोत, सुंदर शाम अरोड़ा, अरुणा चौधरी, सुखजिंदर रंधावा, बलबीर सिंह सिद्धू शामिल हैं। इस बैठक में स्पीकर राणा केपी सिंह और विधायकों में राणा गुरजीत सिंह, रणदीप सिंह नाभा, संगत सिंह गिलजियान, गुरकीरत कोटली, कुलजीत नागरा, पवन आडिया, राजकुमार वेरका, इंद्रबीर बुलारिया और सुखविंदर सिंह डैनी शामिल हैं।
इसके साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू को उन विधायकों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, जिन्हें पहले दिन मिलना था। सिद्धू मंगलवार को कमेटी के सामने अपनी बात रखेंगे। नवजोत सिंह सिद्धू लगातार कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ बगावती रुख अपना रहे हैं, जबकि मुख्यमंत्री के समर्थक नेता और विधायक सिद्धू को पार्टी से निष्कासित करने की मांग कर रहे हैं। कैप्टन और सिद्दू के बीच तकरार पार्टी के लिए सिरदर्द बनती जा रही है।
बता दें कि गुरुग्रंथ साहिब को अपवित्र करने की वर्ष 2015 की घटना के बाद पंजाब सरकार द्वारा फरीदकोट के कोटकापुरा में धरने पर बैठे लोगों पर फायरिंग के लिए एसआईटी का गठन किया गया था। पिछले महीने हाईकोर्ट ने इस एसआईटी और उसकी रिपोर्ट को खारिज कर दिया था, जिससे कांग्रेस में काफी तकरार शुरू हो गई थी। कांग्रेस के एक वर्ग ने आरोप लगाया कि एडवोकेट जनरल ने मामले को कोर्ट में ठीक से पेश नहीं किया, जिसके कारण यह स्थिति बनी है।
नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने का मौका मिला। नवजोत सिद्धू ने सबसे पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के कामकाज पर अभद्रता और कोटकापुरा गोलीकांड के संबंध में सवाल उठाए थे और यहां तक कि उन्हें अयोग्य गृह मंत्री कहकर बुलाया था ।
इसके साथ ही कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कैबिनेट मीटिंग के दौरान ही मुख्यमंत्री को अपवित्रीकरण के मुद्दे पर अपना इस्तीफा सौंप दिया था, जिसे कैप्टन ने खारिज कर दिया था। चरनजीत सिंह चन्नी भी नाराज विधायकों-मंत्रियों की लगातार बैठकों में शामिल रहे हैं, जिनके खिलाफ राज्य महिला आयोग द्वारा अचानक ढाई साल पुराने मी टू मामले को खोलने के बाद कांग्रेस में विवाद गहरा गया।
दरअसल, पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसके लिए पार्टी ने मंत्रियों और विधायकों को आमंत्रित करने में भी संतुलन साधने की कोशिश की है। यही वजह है कि कमेटी ने पंजाब एक जोन के विधायकों को एक बार में नहीं बुलाया है, बल्कि माझा, दोआबा और मालवा के विधायकों को एक साथ बुलाया है, ताकि हर जोन का सही फीडबैक मिल सके। इसके अलावा सभी सांसदों और पार्टी संगठन के साथ मंथन भी होगा। ऐसी स्थिति में यह देखना होगा कि सोनिया गांधी की यह कोशिश सिद्धू और कैप्टन को फिर से एक साथ कर देगी या नहीं!
अब देखने वाली बात यह होगी कि इस पूरी कवायद के बाद भी पार्टी के आलाकमान कैप्टन और सिद्धू की जंग में क्या कर पाते हैं। अगर वक्त रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो इसके परिणाम अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को दिखाई देंगे।

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