बागियों पर भी प्यार बरसाती कांग्रेस की क्या है मजबूरी

नई दिल्ली। राजस्थान के 6 जिलों में पंचायती राज चुनाव कराए जा रहे हैं। अधिक से अधिक जिला परिषदों और पंचायत समितियों में अपने बोर्ड बनाने के लिए राजनीतिक दल विभिन्न प्रकार के दांव खेल रहे हैं। अब नामांकन वापस लेने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब लाख मनाने के बावजूद कई बागी चुनाव में अपनी कमर कस चुके हैं। यह बागी पार्टी के खिलाफ जाकर चुनाव मैदान में है, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस इन बागियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इसके पीछे कई राजनीतिक मजबूरियों को गिना जा रहा है। पार्टी ने इसके लिए देखो और इंतजार करो की नीति अपनाई है।
दरअसल, पार्टी को लगता है कि इनमें से कई बागी चुनाव जीतने की स्थिति में हैं। जब जिला परिषद और पंचायत समितियों में बोर्ड बनाने की बात आती है तो पार्टी को बागी के रूप में चुनाव जीतने वाले इन लोगों के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में पार्टी अभी से कार्रवाई कर इन बागियों को नाराज नहीं करना चाहती है ताकि जरूरत पडऩे पर उन्हें आसानी से अपने साथ ले आया जा सके। हालांकि पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि पार्टी प्रभारी लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए हैं और अगर कोई भी व्यक्ति पार्टी को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है तो फिर प्रभारी की रिपोर्ट के आधार पर भी कार्रवाई की जा सकती है।
ऐसा कई बार होता है कि जब पार्टी के उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में नहीं आते और बोर्ड बनाने के लिए दूसरे दलों के जीतने वाले सदस्यों या निर्दलीयों को साथ लेकर चलते हैं। ऐसी स्थिति में पार्टी की मजबूरी है कि वह बागियों पर कार्रवाई न करे ताकि ऐसे हालात पैदा होने पर उन्हें अपने साथ ले आया जा सके। पार्टी पूर्व में भी इस तरह की रणनीति अपनाती रही है। पार्टी अधिक से अधिक संस्थानों में पार्टी बोर्ड बनाने के लिए विभिन्न रणनीतियों पर काम कर रही है। जहां पार्टी ने कई सीटों पर बिना चुनाव चिन्ह के अपने प्रत्याशी उतारे हैं, वहीं बागियों पर कार्रवाई नहीं करना भी पार्टी की रणनीति का हिस्सा है।

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