ममता की जीत से भाजपा और कांग्रेस दोनो परेशान

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले दलबदलु अब एक बार फिर से दलबदल की तैयारी कर रहे हैं। जिन्होंने चुनाव के दौरान ममता बैनर्जी पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा आज उनके दिल में फिर से दीदी के लिए हिलोरे ले रहा है। कई ने तो अपनी ममता भरी पाती सार्वजनिक कर दीदी के प्रति अपने अनुराग को सबके सामने ला दिया है। जाहिर सी बात है जिन पैराशूट प्रत्याशियों के दम पर भाजपा वेस्ट बंगाल में दीदी को शिकस्त देना चाहती थी वो ही दलबदलु अब भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर ममता बैनर्जी भी ऐसे नेताओं को फिर से शरण देने का मन बना सकती हैं जिससे कि वेस्ट बंगाल में एक बार फिर भाजपा कमजोर हो जाए। इन चलायमान नेताओं को अपनी शरण में लेकर दीदी एक तीर से कई शिकार कर सकती हैं। बंगभूमि पर शुरू से ही भाजपा का फार्मूला उसके नाम नहीं आया है उल्टा हुआ यह कि उसके सारे आक्रमणों को दीदी ने पक्ष में माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल कर लिया। अब भाजपा के सामने इन दलबदलू नेताओं को अपने खेमे में रोके रहना बड़ी बात होगी।
तृणमूल छोड़ विधानसभा चुनाव में भगवा ब्रिगेड का हिस्सा बने टीएमसी नेता सोनाली गुहा, सरला मुर्मू और अब अमोल आचार्य ने एक पत्र लिखकर अपना दीदी प्रेम जाहिर किया है। बंगाल की राजनीति के जानकारों का कहना है कि ऐसा माना जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भाजपा को कमजोर करने के लिए चुनाव से पहले पार्टी छोडक़र भाजपा में गए बागियों के लिए घर वापसी के लिए दरवाजे खोल सकती हैं। ताकि अगले पांच साल में भाजपा की स्थिति राज्य में कांग्रेस और वाम दलों की तरह हो जाए।
राजनीति में विरोधी को हल्के में लेना हमेशा भारी होता है। ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव में यह गलती नहीं की। विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने दलबदलुओं को गद्दार के रूप में पेश किया था। तृणमूल कांग्रेस पने दांव में कामयाब रही। नतीजा यह हुआ कि टीएमसी के दलबदलुओं में से सिर्फ छह को ही जनता ने विधानसभा की चौखट लांघने की इजाजत दी। विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता तथागत रॉय अपनी ही पार्टी के खिलाफ मुखर हो गए। विधानसभा चुनाव के दौरान टीएमसी से भाजपा में शामिल हुए 150 बड़े नेताओं को लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी साफ नजर आ रही है। दीदी पश्चिम बंगाल में भाजपा को कमजोर करने का शायद ही कोई मौका छोड़ेगी। टीएमसी के दलबदलुओं के बाद भाजपा विधायकों पर सीधा खतरा मंडराने लगेगा। खैर, भाजपा इस चुनौती से कैसे निपटेगी, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन बंगभूमि के ताजा राजनीतिक हालातों को देखते हुए लगता है कि 2024 तक के होने वाले लोकसभा चुनाव तक यहां पर काफी कुछ राजनीतिक उठापटक देखने को मिलेगी। क्योंकि विधासभा चुनाव की जीत उत्साहित ममता अब मोदी और भाजपा के विकलप के रूप राष्टï्रीय राजनीति पर छाने का प्रयास करेंगी। एक ओर जहां उनका शरणागत प्रेम पश्चिम बंगाल में भाजपा की मुश्किल बढ़ाएगा तो वहीं उनकी विधानसभा में जीत राष्टï्रीय स्तर भाजपा विरोध के रूप में उनकी पहचान मजबूत होने से कांग्रेस को खतरा महसूस हो रहा है।

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