गुजरात हाईकोर्ट का मुस्लिम मुबारात तलाक पर बड़ा फैसला, ‘लिखित समझौता जरूरी नहीं’
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम दंपति आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं... इसके लिए किसी लिखित समझौते की अनिवार्यता नहीं है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात हाईकोर्ट ने मुस्लिम विवाह में मुबारात को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है…… कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम दंपति आपसी सहमति से तलाक के लिए लिखित समझौता करना जरूरी नहीं है….. इस फैसले से पारिवारिक न्यायालय द्वारा मुबारात की याचिका खारिज करने वाले फैसले को रद्द कर दिया गया है….. बता दें कि कोर्ट नें कहा कि तलाक के लिए सिर्फ दोनों पति-पत्नी की मौखिक सहमति काफी है….. वहीं इससे कई परिवारों को राहत मिलेगी…..
बता दें कि गुजरात के राजकोट शहर में एक मुस्लिम पति-पत्नी रहते थे….. उनकी शादी में कुछ परेशानियां आ गईं….. जैसे घरेलू झगड़े या समझ न बनना…. वे दोनों नहीं चाहते थे कि यह रिश्ता जबरदस्ती चले…… इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे आपसी सहमति से अलग हो जाएं…… मुस्लिम धर्म में इस तरीके को ‘मुबारात’ कहते हैं…… यह तलाक का एक ऐसा रूप है जहां दोनों तरफ से खुशी-खुशी रिश्ता खत्म होता है……. बिना किसी लड़ाई या आरोप के….. आपको बता दें कि इस कपल ने राजकोट के फैमिली कोर्ट में एक याचिका दाखिल की…….. जिसमें कहा कि हमारी शादी मुबारात से खत्म हो गई है……. और कोर्ट इसे मान्यता दे…… लेकिन फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया….. क्योंकि उनके पास इस सहमति का कोई लिखित कागज नहीं था…… कोर्ट ने कहा कि बिना लिखित समझौते के यह केस सुनवाई के लायक नहीं है…… यह फैसला 19 अप्रैल को हुआ था….. और कपल को बहुत निराशा हुई…..
जिसके बाद कपल ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की…… हाईकोर्ट में दो जजों जस्टिस ए.वाई. कोगजे और जस्टिस एन.एस. संजय गौड़ा की बेंच ने सुनवाई की….. और उन्होंने पूरे केस की जांच की…… जिसके बाद कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने गलती की है….. हाईकोर्ट ने कहा कि मुस्लिम शादी को मुबारात से खत्म करने के लिए लिखित समझौता जरूरी नहीं है……. सिर्फ दोनों की मौखिक सहमति से रिश्ता खत्म हो सकता है…… कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया…. और कहा कि अब फैमिली कोर्ट इस केस को दोबारा सुने….. और तीन महीने के अंदर फैसला करे….. वहीं यह फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए एक बड़ा कदम है….. क्योंकि अब लोग बिना कागजी झंझट के अपना रिश्ता खत्म कर सकते हैं…….
आपको बता दें कि मुस्लिम धर्म में शादी एक समझौता है….. जैसे दो लोग मिलकर कोई काम करते हैं……. अगर दोनों को लगे कि यह समझौता नहीं चल रहा…… तो वे इसे खत्म कर सकते हैं……. तलाक के मुस्लिम कानून में कई तरीके हैं….. जिसमें एक ‘तलाक’ है….. जहां पति तलाक देता है…… दूसरा ‘खुला’, जहां पत्नी तलाक मांगती है और कुछ मुआवजा देती है……. लेकिन मुबारात अलग है…… इसमें दोनों पति-पत्नी एक साथ कहते हैं कि हम अलग होना चाहते हैं……. कोई झगड़ा नहीं, कोई आरोप नहीं…… यह शांतिपूर्ण तरीका है…… कुरान और हदीस में मुबारात का जिक्र है……. लेकिन कहीं नहीं लिखा कि इसके लिए लिखित कागज जरूरी है…….. हाईकोर्ट ने यही कहा कि धार्मिक किताबों में मौखिक सहमति काफी है……. अगर दो लोग मिलकर कहें कि हम अलग हो रहे हैं….. तो रिश्ता खत्म…… कोई रजिस्टर में लिखने की जरूरत नहीं…… कोर्ट ने यह भी कहा कि निकाह का रजिस्ट्रेशन होता है…… लेकिन वह जरूरी नहीं है…… ठीक वैसे ही मुबारात के लिए भी नहीं……
कोर्ट ने अपनी बात को मजबूत बनाने के लिए कई किताबें और पुराने फैसले देखे….. और उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुबारात के लिए सिर्फ ‘म्यूचुअल कंसेंट’ यानी आपसी सहमति का जताना काफी है….. कोर्ट ने एक किताब का हवाला दिया जहां लिखा है कि मुबारात में दोनों तरफ से सहमति होनी चाहिए…… और यह रिश्ता खुद-ब-खुद खत्म हो जाता है…… फैमिली कोर्ट ने गलती से सोचा कि निकाहनामा एक कॉन्ट्रैक्ट है……. इसलिए तलाक के लिए भी लिखित कॉन्ट्रैक्ट चाहिए……. लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि यह गलत है……. कुरान में कोई आयत नहीं कहती कि लिखो-पढ़ो…… हदीस में भी पैगंबर साहब ने मौखिक तरीके से चीजें सुलझाईं……. कोर्ट ने कहा कि मुबारात के लिए मौखिक सहमति से निकाह खत्म हो जाता है….. और यह खुद में पर्याप्त है……
वहीं अब इस फैसले से वे सिर्फ कोर्ट में जाकर कह सकते हैं कि हम सहमत हैं…… और तलाक हो जाएगा…… इससे समय बचेगा, पैसे बचेंगे और झगड़े कम होंगे……. मुस्लिम महिलाओं के लिए भी अच्छा है……. क्योंकि खुला में उन्हें मुआवजा देना पड़ता है…… लेकिन मुबारात में दोनों बराबर हैं……. कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 7 के तहत यह केस सुनवाई योग्य है…… क्योंकि मुस्लिम कानून भारतीय कानून का हिस्सा है……
बता दें कि मुस्लिम कानून में तलाक के तीन मुख्य तरीके हैं…. जिसमें तलाक-अहसन सबसे अच्छा, जहां तीन महीने इंतजार……. तलाक-हसन तीन बार तलाक कहना और तलाक-बिदअत एक बार में तीन तलाक….. जो अब भारत में गैरकानूनी है…… लेकिन मुबारात अलग है……. यह एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल है…… यानी कोर्ट के बाहर हो सकता है……. हालांकि, मान्यता के लिए कोर्ट जाना पड़ सकता है……. पुराने केस में भी कोर्ट ने मुबारात को माना है…… जैसे दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि तलाकनामा जरूरी है…… लेकिन गुजरात ने इसे आगे बढ़ाया…..
गुजरात में रहने वाले मुस्लिम परिवारों को आसानी होगी…… वे बिना डर के कोर्ट जा सकते हैं……. लेकिन याद रखें, सहमति सच्ची होनी चाहिए, कोई धोखा नहीं…… अगर कोई जबरदस्ती करे, तो कानून अलग है…… यह फैसला धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है….. क्योंकि भारत का संविधान मुस्लिम पर्सनल लॉ को मानता है…… कई लोग कह रहे हैं कि यह प्रोग्रेसिव है….. क्योंकि पुराने रिवाजों को आधुनिक बनाता है….. लेकिन कुछ लोग चिंता कर सकते हैं कि बिना कागज के दुरुपयोग हो सकता है…… कोर्ट ने कहा कि कोर्ट जांच करेगा कि सहमति असली है या नहीं……
वहीं कुरान की सूरह अल-बकरा में तलाक के नियम हैं…… जहां कहा गया है कि अगर रिश्ता नहीं चल रहा, तो शांतिपूर्ण अलगाव बेहतर…… हदीस में पैगंबर साहब ने कहा कि तलाक की अनुमति है…… लेकिन सबसे अच्छा तरीका म्यूचुअल है…… मुबारात इसी पर आधारित है…… भारत में मुस्लिम मैरिज एक्ट 1939 है….. लेकिन मुबारात इसमें शामिल नहीं…… क्योंकि यह पर्सनल लॉ है…… कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ को बदलने की जरूरत नहीं, क्योंकि यह धार्मिक है…..
वहीं यह फैसला अन्य राज्यों में भी असर डाल सकता है…… भारत में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को रोका…… लेकिन मुबारात को छुआ नहीं….. अब यह फैसला महिलाओं को सशक्त बनाता है……. क्योंकि वे बराबरी से तलाक ले सकती हैं…… इससे समाज में भी बदलाव आएगा….. पहले, लोग सोचते थे कि तलाक बुरा है…… लेकिन अगर दोनों खुश नहीं, तो अलग होना बेहतर है……



