गुजरात में आदिवासियों ने खोला मोर्चा, 1-2 लाख के मुआवजे से कुछ नहीं होगा, कांग्रेस का मिला साथ
गुजरात में तापी नर्मदा नदी लिंक परियोजना का विरोध... आदिवासियों ने खोला सरकार के खिलाफ मोर्चा... 1-2 लाख के मुआवजे से कुछ नहीं होगा... हमें बांध की जरूरत नहीं... देखिए खास रिपोर्ट...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के वलसाड जिले के धरमपुर में पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना के खिलाफ एक विशाल रैली का आयोजन हुआ…… इस रैली में उमरगाम से लेकर अंबाजी तक के आदिवासी इलाकों से हजारों लोग जुटे….. बांध हटाओ समिति के नेतृत्व में यह विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था…… रैली में वांसदा के विधायक अनंत पटेल, कांग्रेस नेता अमित चावड़ा समेत कई स्थानीय नेता शामिल हुए……वहीं भारी भीड़ को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात था….. बता दें कि प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग है कि सरकार इस परियोजना को रद्द करने की घोषणा करे….. और एक श्वेत पत्र जारी करे……. जिसमें साफ-साफ लिखा हो कि यह योजना आगे नहीं बढ़ेगी……. आदिवासी समाज का कहना है कि जल, जंगल…… और जमीन पर उनका अधिकार है…… और सरकार उन्हें गुमराह करना बंद करे…..
बता दें कि यह रैली सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन नहीं है…….. बल्कि गुजरात के दक्षिणी आदिवासी बहुल इलाकों में लंबे समय से चल रही असंतोष की एक बड़ी अभिव्यक्ति है……. परियोजना के कारण हजारों आदिवासी परिवारों की आजीविका खतरे में है…… आपको बता दें कि पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना भारत सरकार की महत्वाकांक्षी नदी जोड़ो योजना का हिस्सा है…… यह योजना 1980 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा तैयार किए गए नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान के तहत शुरू हुई थी…… इसका मुख्य उद्देश्य पश्चिमी घाट के जल सरप्लस क्षेत्रों से पानी को सूखा प्रभावित सौराष्ट्र…… और कच्छ जैसे इलाकों में ट्रांसफर करना है…… जिसमें पार, तापी और नर्मदा नदियां इस परियोजना के नाम में शामिल हैं…… पार नदी महाराष्ट्र के नासिक से निकलती है…… और गुजरात के वलसाड से होकर बहती है……. तापी नदी सापुतारा से शुरू होकर महाराष्ट्र और गुजरात के सूरत से गुजरती है……. नर्मदा मध्य प्रदेश से निकलती है…… और महाराष्ट्र तथा गुजरात के भरूच और नर्मदा जिलों से बहती है……
वहीं यह परियोजना 2010 में गुजरात, महाराष्ट्र और केंद्र सरकार के बीच एक समझौते के साथ आगे बढ़ी…… 2015 में एनडब्ल्यूडीए ने इसका डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया……. जिसे गुजरात सरकार की सलाह पर संशोधित किया गया…… परियोजना की अनुमानित लागत 10,211 करोड़ रुपये है……. इसमें कुल 9 बांध बनाने की योजना है…… हालांकि मुख्य रूप से 7 बांधों का जिक्र होता है…… जिसमें जेरी, मोहनकवचाली, पैखेड़, चासमंडवा, चिक्कर, दबदार और केलवान है…… इनमें से जेरी बांध महाराष्ट्र-गुजरात सीमा के पास नासिक में बनेगा, जो 7 गांवों को प्रभावित करेगा…… मोहनकवचाली बांध वलसाड के धरमपुर तालुका में बनेगा……. जिससे 12 गांव प्रभावित होंगे…… पैखेड़ बांध से 13 गांव डूबेंगे……
परियोजना में 3 डायवर्जन वेयर्स, 2 टनल, 395 किमी लंबी नहर (205 किमी पार-तापी हिस्से में और 190 किमी तापी-नर्मदा हिस्से में), और 6 पावरहाउस शामिल हैं……. इससे सालाना 93 मिलियन किलोवाट-घंटा बिजली पैदा होने की उम्मीद है….. जिसको लेकर सरकार का दावा है कि यह योजना पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए वरदान साबित होगी……. इससे 2,32,175 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई होगी…… जिसमें से 61,190 हेक्टेयर नहर के रास्ते में आएगा……. नर्मदा का बचाया गया पानी छोटा उदेपुर और पंचमहल जिलों के आदिवासी इलाकों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होगा……. जहां 23,750 हेक्टेयर और 10,592 हेक्टेयर जमीन को फायदा मिलेगा…… सौराष्ट्र में 42,368 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र कवर होगा….
इसके अलावा, बाढ़ नियंत्रण एक बड़ा लाभ है……. मानसून में अतिरिक्त पानी समुद्र में बह जाता है……. जिसे इस योजना से रोका जा सकता है…….. वलसाड, सूरत, नवसारी और भरूच जैसे इलाकों में बाढ़ की समस्या कम होगी…… बिजली उत्पादन से सालाना 5,523 लाख रुपये का फायदा होगा…….. सरकार कहती है कि यह योजना राष्ट्रीय इंटर-लिंकिंग ऑफ रिवर्स प्रोग्राम का हिस्सा है……. जिसमें कुल 30 परियोजनाएं हैं, और केन-बेतवा जैसी योजना पहले से चल रही है……
हालांकि, यह परियोजना शुरू से ही विवादों में घिरी है…… मुख्य विरोध आदिवासी समाज से है…….. जो कहते हैं कि इससे उनकी जल, जंगल और जमीन छिन जाएगी…… एनडब्ल्यूडीए की रिपोर्ट के अनुसार……. बांधों से 6,065 हेक्टेयर जमीन डूबेगी…… जिसमें 61 गांव प्रभावित होंगे…… 60 आंशिक रूप से और एक पूरी तरह से प्रभावित होगा….. कुल 2,509 परिवार विस्थापित होंगे……. जिसमें महाराष्ट्र के 98 परिवार और गुजरात के बाकी शामिल हैं……. आदिवासी कहते हैं कि नई जगह पर बसना आसान नहीं……. क्योंकि उन्हें बंजर जमीन पर फिर से खेती शुरू करनी पड़ेगी…….
पर्यावरणीय प्रभाव भी गंभीर है…… नदियों को जोड़ने से आसपास के इकोसिस्टम प्रभावित होगा……. जिसमें जंगल, वन्यजीव और समुद्री पारिस्थितिकी शामिल है….. पश्चिमी घाट जैसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों में निर्माण से वन कटाई और मिट्टी का कटाव बढ़ेगा…… विरोधी कहते हैं कि छोटे स्तर के समाधान जैसे बेहतर सिंचाई और वाटरशेड मैनेजमेंट बेहतर हैं…… न कि इतनी बड़ी परियोजना जो लाखों लोगों को प्रभावित करे……. विरोध न सिर्फ गुजरात में है…… बल्कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी हो रहा है…. आदिवासी संगठन कहते हैं कि यह योजना उनके पारंपरिक अधिकारों का उल्लंघन है……
बता दें कि 2022 में यह विरोध चरम पर पहुंचा…… वलसाड, तापी और दांग जिलों में हजारों आदिवासी सड़कों पर उतरे…… मार्च 2022 में गुजरात सरकार ने विधानसभा में घोषणा की कि परियोजना सस्पेंड कर दी गई है……. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि आदिवासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए योजना रद्द की जाती है…….. लेकिन जुलाई 2025 में लोकसभा में जल शक्ति मंत्री राज भूषण चौधरी ने कहा कि डीपीआर पूरा हो चुका है……. जिससे विवाद फिर भड़क उठा……
विपक्षी नेता तुषार चौधरी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगा……. बीजेपी नेता सीआर पाटिल ने 10 अगस्त को कहा कि न केंद्र न राज्य सरकार इस पर आगे बढ़ना चाहती है……. लेकिन आदिवासी व्हाइट पेपर की मांग कर रहे हैं…… बता दें कि गुरूवार को हुई रैली में हजारों आदिवासी ट्रकों और बसों से धरमपुर पहुंचे…….. दांग से आ रहे लोगों को पुलिस ने रोकने की कोशिश की……. लेकिन वे रोड पर बैठकर विरोध जताते रहे……. अनंत पटेल ने कहा कि सरकार अगर सच्ची है तो व्हाइट पेपर जारी करे और योजना रद्द करे……. अमित चावड़ा ने बीजेपी को फर्जी सरकार कहा और आदिवासियों को गुमराह करने का आरोप लगाया……. रैली गैर-राजनीतिक बताई गई, लेकिन कांग्रेस का समर्थन साफ था……
दांग के वधई के पास पुलिस और कार्यकर्ताओं में झड़प हुई…… लेकिन रैली शांतिपूर्ण रही……. प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे…… डैम नहीं चाहिए, हमारी जमीन बचाओ….. जिसको लेकर गुजरात सरकार ने 13 अगस्त को फिर कहा कि परियोजना होल्ड पर है…… वलसाड बीजेपी एमपी धवल पटेल ने कहा कि यह प्रोजेक्ट साउथ गुजरात में नहीं होगा…… मैं आदिवासी का बेटा हूं……. लेकिन आदिवासी कहते हैं कि बिना लिखित दस्तावेज के भरोसा नहीं……. वे आगे तापी और दांग में भी रैलियां करेंगे……



