राहत या राजनीतिक तमाशा!
जीएसटी सुधार : गहरे घांवों पर बैंडेड है, इलाज नहीं

- क्या वास्तव में आम जनता को मिलेगा टैक्स कटौती का लाभ या यह भी हो जाएगी कारपोरेट लूट का शिकार
- सात वर्षों बाद टैक्स सुधार
- अखिलेश यादव बोले- क्या नगद वापस देगी सरकार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सोमवार से लागू हो रहे जीएसटी सुधारों पर बड़ी बहस छिड़ गयी है। सरकार इसे बचत उत्साव के तौर पर पेश कर रही है तो विपक्ष ने इसे राजनीतिक ड्रामा करार देते हुए सरकार पर बड़ा हमला बोला है। विपक्ष का आरोप है कि सात वर्षों तक बेतुके टैक्स की मार झेल रही जनता को नाकाफी राहत दी गयी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकाजुर्न खडग़े ने राहत को घावों पर बैंडेड जैसा बताया है। उनका कहना है कि कांग्रेस की सरकार के बाद जनता को असली राहत मिलेगी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि क्या सरकार आठ साल में वसूले गए जीएसटी के पैसे आम जनता को नगद वापस देगी।
भारत में टैक्स सुधार के नाम पर वर्ष 2017 में जीएसटी लागू हुआ था तो जनता को सपने दिखाए गए थे कि सरल टैक्स, सस्ती वस्तुएं, पारदर्शी व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। लेकिन सात साल गुजरने के बाद हकीकत में ऐसा कुछ नहीं हुआ और जतना टैक्स के अनोखे जंजाल में फंस गयी। पहले तो किसी की कुछ समझ में ही नहीं आया लेकिन जब समझ आया तो तबतक काफी देर हो चुकी थी। अब सात वर्षों पर जीएसटी 2.0 के नाम पर नया जीएसटी सुधारों के साथ लागू किया गया है। सवाल यह भी है कि क्या कम होने वाली राहत आम जनता को नसीब होगी या फिर यह भी कारपोरेट लूट का शिकार बन जाएगी।
8 साल में 55 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा वसूले : खरगे
पीएम के संबोधन के बाद मल्लिकार्जुन खरगे ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि नरेन्द्र मोदी आपकी सरकार ने कांग्रेस के सरल और कुशल जीएसटी के बजाय, अलग-अलग नौ स्लैब से वसूली कर गब्बर सिंह टैक्स लगाया और 8 साल में 55 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा वसूले। अब आप 2.5 लाख करोड़ रूपए के बचत उत्सव की बात कर के जनता को गहरे घाव देने के बाद मामूली बैंड ऐड लगाने की बात कर रहे हैं। जनता कभी नहीं भूलेगी कि आपने उनके दाल-चावल-अनाज, पेंसिल, किताबें, इलाज, किसानों के ट्रैक्टर सबसे जीएसटी वसूला था। आपकी सरकार को तो जनता से माफी मांगनी चाहिए।
कांग्रेस ने जुलाई 2017 से ही जीएसटी 2.0 की मांग की है: जयराम रमेश
जयराम रमेश ने पीएम के संबोधन के बाद बयान जारी कर कहा कि कांग्रेस लंबे समय से यह तर्क देती आई है कि जीएसटी वास्तव में ग्रोथ सप्रेसिंग टैक्स है। हाई स्तर की बड़ी संख्या में टैक्स स्लैब, आम उपभोग की वस्तुओं पर दंडात्मक कर दरें, बड़े पैमाने पर चोरी और गलत वर्गीकरण, महंगी औपचारिकताओं का बोझ और एक उल्टा शुल्क ढांचा जैसी कई समस्याएं हैं। इसलिए कांग्रेस ने जुलाई 2017 से ही जीएसटी 2.0 की मांग की और यह लोकसभा चुनाव 2024 के लिए हमारे न्याय पत्र में एक प्रमुख वादा भी था। जयराम ने कहा कि वर्तमान जीएसटी सुधार इसलिए अपर्याप्त प्रतीत होते हैं कि अभी कुछ लंबित मुद्दों का समाधान होना है। अर्थव्यवस्था में प्रमुख रोजगार सृजनकर्ता एमएसएमई की व्यापक चिंताओं का सार्थक समाधान किया जाना चाहिए। बड़े प्रक्रियात्मक परिवर्तनों के अलावा इसमें अंतरराज्यीय आपूर्ति पर लागू होने वाली सीमाओं को और बढ़ाना शामिल है।
जीएसटी की नई दरें
- 0 प्रतिशत- इस कैटेगरी में आवश्यक वस्तुएं शामिल है जैसे दूध, अनाज, दवाइयां आदि।
- 5 प्रतिशत- जीएसटी किस नहीं कैटेगरी में जरूरी और रोजाना इस्तेमाल की वस्तुओं को रखा गया है। पहले कई वस्तुएं 12 और 18 प्रतिशत के स्लैब में आती थीं।
- 18 प्रतिशत- इस श्रेणी में मध्यम कैटेगरी की वस्तुएं शामिल हैं।
- 40 प्रतिशत- इस सरकार के द्वारा सिन टैक्स कैटेगरी कहा गया है। जिसमें गुटखा, तंबाकू, शराब ऑनलाइन, गेमिंग, लग्जरी कार, सट्टेबाजी जैसी चीज शामिल हैं।
दिल्ली में दिखा असर लेकिन यूपी में नहीं
जीएसटी 2.0 के लागू होने के पहले ही दिन दिल्ली में दूध और डेयरी उत्पादों पर जीएसटी दरों में भारी कटौती का असर दिखने लगा है। सरकार ने पनीर, छेना, अल्ट्रा-हीट ट्रीटमेंट (यूएचटी) दूध और अन्य डेयरी आइटम्स पर टैक्स को शून्य कर दिया है जिसे लेकर स्थानीय लोगों ने खुशी जाहिर की है।
कहीं यह कॉरपोरेट लूट का नया हथकंडा न बन जाए?
भारतीय बाजार की सच्चाई यही है कि जब टैक्स बढ़ता है तो व्यापारी और कंपनियं तुरंत दाम बढ़ा देती हैं। लेकिन जब टैक्स घटता है तो वे कीमतें घटाने में देरी करते हैं या फिर मामूली कमी कर दिखावा करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि टैक्स कटौती का असली फायदा आम जनता को नहीं बल्कि बड़ी कंपनियों को मिलता है। उदाहरण के तौर पर उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में जीएसटी की कटौती के बाद भी कई बार कंपनियों ने कीमतों को एमआरपी पर स्थिर रखा। उपभोक्ता को वही दाम चुकाना पड़ा जबकि कॉरपोरेट्स की जेब में मुनाफा और बढ़ गया। यही कारण है कि विपक्ष इसे कॉरपोरेट लूट भी कह रहा है। वित्तीय विशेषज्ञों का यही कहना है कि यदि सरकार वास्तव में जनता को राहत देना चाहती है तो टैक्स कटौती के साथ साथ प्राइस मॉनिटरिंग और कंपनियों पर सख्त निगरानी जरूरी है। अन्यथा यह राहत भी जनता तक नहीं पहुंचेगी और कॉरपोरेट जगत अपने मुनाफे को दोगुना कर लेगा। यानी सवाल जस का तस है टैक्स कटौती से राहत मिलेगी या कॉरपोरेट लूट का नया अध्याय लिखा जाएगा?




