बिहार चुनाव से पहले एनडीए में बिखराव

- चिराग पासवान के बगावती तेवर
- नहीं बन पा रही सीट शेयरिंग पर बात
- जितने सियासी दल उतने राग
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए कुनबे में बिखराव की खबरें सामने आ रही हैं। कभी नीतीश कुमार के गठबंधन से अलग होने की खबर तो कभी मांझी और चिराग पासवान की ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩे की महत्वकांक्षा। एक बार फिर चिराग पासवान ने ऐसा बयान दिया है जिससे एनडीए में सन्नाटा है और कोई भी कुछ बोल नही रहा। चिराग ने साफ कर दिया है कि सम्मान से समझौता नहीं होगा और नवरात्र में ही वह सबकुछ साफ कर देंगे। यानि कि चार दिनों के भीतर उनकी तरफ से साफ हो जाएगा कि लोजपा बिहार में कितनी सीटों पर चुनाव लडऩे जा रही है। पिछला चुनाव चिराग ने सभी सीटों पर लड़ा था जिससे जदयू को जबर्दस्त नुकसान हुआ था। चिराग पासवान के बारे में एक बात सब मानते हैं कि वह दिखते भोले हैं पर राजनीतिक खेल बड़े खेलते हैं। पिछली बार उन्होंने भाजपा की अप्रत्यक्ष मदद करते हुए नीतीश को अलग थलग कर दिया। नतीजा जेडीयू की हालत बिहार में खिचड़ी में नमक जैसी रह गई। अब 2025 के चुनाव में चिराग उसी रुख पर हैं। उनका संदेश साफ है जिन्होंने हमारा साथ दिया हमने उनका साथ दिया। जिनसे लड़े, उन्होंने अपना वजूद खो दिया।
चिराग की मुठ्ठी में जीत
बिहार विधानसभा 2020 का चुनाव बताता है कि बिहार में छोटे दल भी बड़ा खेल खेल सकते हैं। चिराग ने अकेले चुनाव लड़कर नीतीश की जड़ें हिला दीं। भाजपा को इसका लाभ मिला लेकिन आज वही भाजपा चिराग की शर्तों से परेशान है। इतिहास कहता है जो सीटों पर झगड़ता है वह जनता की सीट हारता है। बिहार चुनाव की कहानी धीरे धीरे स्पीड पकड़ रही है ऐसे में सीटों का झगड़ा अब और तेज होगा। रायता इतना फैलेगा कि समेटना मुश्किल होगा। अगर भाजपा सबको साध लेती है तो सत्ता में वापसी संभव है। लेकिन अगर चिराग और मांझी जैसे साथी बगावत पर उतर आए तो बिहार की राजनीति का नक्शा बदल जाएगा। और अगर बिहार हारा तो दिल्ली की सरकार पर भी संकट आ जाएगा।
नीतीश ध्रुव तारा या डूबता जहाज?
नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा कुर्सी और गणित पर टिकी रही है। लेकिन इस बार उनकी हालत वैसी है जैसे बारिश में छाते के बिना खड़े आदमी की। न भाजपा पूरी तरह भरोसा कर रही है न ही चिराग जैसे सहयोगी उन्हें सलाम ठोकने के मूड में हैं। नीतीश जानते हैं कि अगर सीटें कम मिलेंगी तो उनका मुख्यमंत्री बनना नामुमकिन है। और अगर ज्यादा मांगेंगे तो चिराग और मांझी जैसे साथी भड़क जाएंगे। ऐसे में उनके सामने बड़ी मुसीबत है कि वह क्या करें। वही उनके खुद के साथी भी उन्हें आंखे तरेर रहे हैं। क्या नीतिश के साथ यह राजनीतिक खेल बीजेपी के इशारे पर हो रहा है। क्योंकि बीजेपी चाहती है कि जदयू दबाव में रहे ताकि वह ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर जीत हासिल करें और अपना मुख्यमंत्री बनवा सके। नीतिश कुमार भी बीजेपी के इस खेल को समझ चुके हैं और संभल कर चल रहे हैं।
मांझी भी कम नहीं
जहां-जहां सीटों का मोलभाव होता है वहां जीतनराम मांझी अपनी हाजिरी जरूर लगाते हैं। उनकी पार्टी छोटी है पर सीटों की मांग बड़ी। मांझी की राजनीति वैसी है जैसे दूध में डाली गई नींबू की बूंद न ज्यादा न कम पर असरदार। वह जानते हैं कि भाजपा और नीतीश दोनों ही दलित वोट बैंक को नजरअंदाज नहीं कर सकते। इसलिए वह दबाव बनाकर सम्मानजनक सीटों का दांव खेल रहे हैं।
बिहार नहीं तो दिल्ली भी नहीं
बात सिर्फ पटना की नहीं है। इस बार दिल्ली की गद्दी की किस्मत भी बिहार से जुड़ चुकी है। भाजपा जानती है कि बिहार में अगर सरकार नहीं बनी तो केन्द्र की मोदी सरकार अल्पमत में चली जाएगी। इसलिए इस चुनाव को जीवन मरण का प्रश्न मान लिया गया है। भाजपा ने अपनी पूरी ताकत बिहार में झोंक दी है। पीएम मोदी की रैलियां, गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति और डिजिटल प्रचार का महासंग्राम सभी कुछ एक साथ चल रहा है। लेकिन एक चीज जो तनाव दे रही है वह है साथी राजनीतिक पार्टियों की सियासी भूख। हर कोई अपने लिए ज्यादा सीट चाहता है।
भावनाओं और अपमान का जोड़-घटाव भी
इस बार का चुनावी गणित सिर्फ अंकगणित नहीं है बल्कि भावनाओं और अपमान का जोड़-घटाव भी चुनाव में शामिल हो चुका है। भाजपा चाहती है कि बिहार चुनाव में उसका वर्चस्व कायम रहे। वही नीतीश चाहते हैं कि उन्हें बराबरी का हिस्सा मिले। चिराग पासवान चाहते हैं कि वह चुनाव के बाद किंगमेकर बन कर उभरे और सारी कोशिशें उसी के लिए कर रहे हैं। वहीं जीतन राम मांझी चाहते हैं कि वह दलित राजनीति के अकेले मालिक बने रहें।
सम्मानजनक सीटों पर अड़े चिराग पासवान
चिराग पासवान ने साफ शब्दों में कहा है कि वे सम्मानजनक सीटों पर कभी समझौता नहीं करेंगे। उनके इस बयान ने यह संकेत दिया है कि अगर उन्हें उनकी पार्टी की ताकत के हिसाब से सीटें नहीं मिलीं, तो वे कोई भी सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने ये भी कहा, सम्मान से समझौता कर कौन किस गठबंधन में रहा है, यह सबको पता है, जिससे उन्होंने गठबंधन के अन्य दलों पर भी तंज कसा। चिराग का यह रुख साफ दिखाता है कि लोजपा (रामविलास) अपनी पहचान और ताकत को कमजोर नहीं होने देना चाहती।




