गुजरात कैबिनेट में बड़ा खेला! दिग्गजों की छुट्टी, अब किसका चलेगा सिक्का?

गुजरात में हुए मंत्रिमंडल विस्तार ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं... पुराने दिग्गजों की अनदेखी से पार्टी के भीतर नाराज़गी उभर आई है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात की राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित मोड़ के लिए जानी जाती है.. यहां सत्ता के गलियारों में नाम की चर्चा जितनी तेज होती है.. उतनी ही तेजी से वो नाम गायब भी हो जाते हैं.. 16 अक्टूबर 2025 को गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में ऐसा ही एक बड़ा उलटफेर हुआ.. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर सभी 16 मंत्रियों ने एक साथ इस्तीफा सौंप दिया.. अगले ही दिन 17 अक्टूबर को गांधीनगर के महात्मा मंदिर में नई कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह हुआ.. इस फेरबदल में कुल 26 मंत्री (मुख्यमंत्री सहित) बनाए गए.. जिसमें 21 नए चेहरे शामिल हैं.. पुरानी कैबिनेट के सिर्फ चार सदस्यों को ही बरकरार रखा गया.. यह बदलाव भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है.. जो 2026 के स्थानीय निकाय चुनावों और 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को तरोताजा करने का प्रयास है.. लेकिन इस फेरबदल ने कई दिग्गज नेताओं को निराश किया है.. सौराष्ट्र के पाटीदार नेता जयेश रादड़िया जैसे नामों का पत्ता कट गया.. जबकि भावनगर के परषोत्तम सोलंकी ने फिर से कमाल दिखा दिया..

गुजरात में भाजपा का राज 1995 से लगातार जारी है.. नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने से लेकर भूपेंद्र पटेल तक, पार्टी ने कई बार मंत्रिमंडल बदले हैं.. लेकिन हर फेरबदल में एक पैटर्न दिखता है.. जातिगत संतुलन, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और केंद्रीय नेतृत्व की मर्जी.. 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 156 सीटें जीतीं.. लेकिन सत्ता विरोधी लहर और आप की बढ़ती चुनौती ने पार्टी को सतर्क कर दिया.. हाल ही में सौराष्ट्र के विसावदर उपचुनाव में भाजपा की हार ने आलाकमान को झकझोर दिया.. इसी के चलते यह फेरबदल हुआ.. पुरानी कैबिनेट में 8 कैबिनेट स्तर के और 8 राज्य मंत्री स्तर के सदस्य थे.. सभी ने 16 अक्टूबर को इस्तीफा दिया.. जो भाजपा की रणनीति का हिस्सा था.. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में शपथ समारोह हुआ.. राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शपथ दिलाई.. नई कैबिनेट का आकार गुजरात की 182 विधानसभा सीटों के हिसाब से अधिकतम 27 तक हो सकता था.. लेकिन इसे 26 पर रोका गया..

इस फेरबदल का मुख्य उद्देश्य युवा चेहरों को लाना और पुराने नेताओं को साइडलाइन करना था.. लेकिन इसमें जाति का रोल सबसे बड़ा रहा.. पटेल समुदाय (लगभग 15% आबादी) को 8 मंत्री मिले, जबकि ओबीसी (49% से ज्यादा आबादी) को 7। अनुसूचित जाति (एससी) और जनजाति (एसटी) को भी 7-7 प्रतिनिधित्व मिला.. जैन समुदाय को डिप्टी सीएम हर्ष संघवी जैसे एक प्रमुख पद.. महिलाओं को सिर्फ 3 राज्य मंत्री पद मिले.. जो कुल 11% है.. यह संतुलन भाजपा की ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की मिसाल है..

नई कैबिनेट में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के अलावा 25 अन्य सदस्य हैं.. इनमें 11 कैबिनेट स्तर के और 14 राज्य मंत्री स्तर के हैं.. पुराने कैबिनेट से रिटेन हुए चार नाम हैं.. कनुभाई देसाई (कैबिनेट मंत्री, वित्त), रिषिकेश पटेल (कैबिनेट मंत्री, स्वास्थ्य), कुंवरजी बावलिया (कैबिनेट मंत्री, जल संसाधन) और परषोत्तम सोलंकी (राज्य मंत्री, मत्स्य पालन).. बाकी 21 नए चेहरे हैं..

आपको बता दें कि सौराष्ट्र के राजकोट से आने वाले जयेश रादड़िया भाजपा के दिग्गज पाटीदार नेता हैं.. उनके पिता विट्ठल रादड़िया पूर्व कांग्रेसी थे.. जो बाद में भाजपा में आ गए.. जयेश खुद 2002 से विधायक हैं और 2014-2017 तक मंत्री रह चुके हैं.. इस फेरबदल से पहले उनका नाम सबसे ऊपर चर्चा में था.. सौराष्ट्र के पाटीदार लॉबी ने उनका जमकर प्रचार किया.. लेकिन अंतिम सूची में उनका नाम गायब था..

इफको चुनाव में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पाटिल ने बिपिन भाई पटेल को पार्टी उम्मीदवार बनाया.. लेकिन जयेश ने सौराष्ट्र लॉबी के दम पर नामांकन भरा और चुनाव जीत लिया.. इससे अमित शाह और पाटिल नाराज हो गए.. माना जा रहा है कि यह ‘बगावत’ ही जयेश का मंत्री बनना रोक गई.. जयेश सहकारी क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी हैं.. वे गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन भी रह चुके हैं.. लेकिन भाजपा में ‘लाइन तोड़ने’ वालों को सजा मिलती है.. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जयेश का बाहर होना सौराष्ट्र में भाजपा के लिए खतरा बन सकता है.. पाटीदार वोट बैंक में दरार पड़ सकती है.. फिर भी अमित शाह से उनकी नजदीकी के चलते भविष्य में वापसी संभव है.. जयेश ने कहा कि पार्टी का फैसला स्वागतयोग्य है.. मैं संगठन के लिए काम करता रहूंगा.. लेकिन अंदरखाने में नाराजगी साफ है..

दूसरी तरफ सौराष्ट्र के ही भावनगर से परषोत्तम सोलंकी ने राजनीतिक पंडितों को चकमा दे दिया.. वे कोली समुदाय (ओबीसी) के प्रमुख नेता हैं.. और ढाई दशक से मंत्री बने हुए हैं..

1990 में केशुभाई पटेल सरकार में पहली बार मंत्री बने.. फिर नरेंद्र मोदी, आनंदीबेन पटेल, विजय रूपाणी और अब भूपेंद्र पटेल.. इस फेरबदल में भी उन्हें राज्य मंत्री (मत्स्य पालन और पशुपालन) बनाए रखा गया.. सोलंकी की ताकत उनकी साफ-सुथरी छवि और कोली वोट बैंक में है.. भावनगर जिले को सोलंकी और जीतू वाघानी दो मंत्री मिले.. यह सौराष्ट्र के संतुलन का संकेत है.. सोलंकी ने कहा कि यह पार्टी का विश्वास है, मैं जनसेवा जारी रखूंगा.. उनकी सफलता का राज है.. विवादों से दूर रहना और केंद्रीय नेतृत्व की सुनना..

फेरबदल में युवा चेहरों को प्राथमिकता मिली.. हर्ष संघवी को डिप्टी सीएम बनाया गया.. वे सूरत से हैं और जैन समुदाय से आते हैं.. संघवी की शिक्षा सिर्फ 8वीं कक्षा तक है.. लेकिन राजनीतिक कनेक्शन मजबूत हैं.. रिवाबा जडेजा पहली बार विधायक बनीं और राज्य मंत्री बनीं.. वे मैकेनिकल इंजीनियर और क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी हैं.. अन्य महिलाएं दर्शना वाघेला (एससी) और मनीषा वाकिल (ब्राह्मण) है.. पूर्व कांग्रेसी अर्जुन मोढवाड़िया को कैबिनेट मंत्री बनाया गया.. हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन के बाद भाजपा में आए.. उनको राज्य मंत्री पद मिला.. लेकिन अल्पेश ठाकोर को भी जगह दी गई..

ड्रॉप हुए मंत्रियों में राघवजी पटेल (कृषि), मुरुभाई बेरा (पर्यटन), जगदीश विश्वकर्मा (सहकारिता) जैसे नाम हैं.. कई पूर्व कांग्रेसी थे.. जिन्हें भाजपा ने लुभाया और बाद में साइडलाइन कर दिया.. गुजरात में भाजपा की सफलता का राज जाति आधारित समीकरण है.. पटेलों को 8 पद देकर 2015 के पाटीदार विद्रोह की याद दिलाई गई.. ओबीसी को 7, एससी/एसटी को 7.. जैन, राजपूत, ब्राह्मण को भी हिस्सा दिया.. क्षेत्रीय रूप से सौराष्ट्र को मजबूत किया गया.. जबकि राजकोट को कोई मंत्री नहीं मिला.. यह संतुलन 2026 के नगर निगम चुनावों के लिए है..

वहीं यह फेरबदल भाजपा को तरोताजा करेगा.. लेकिन चुनौतियां बाकी हैं.. आप की बढ़ती ताकत और कांग्रेस के बचे-खुचे वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश है.. पूर्व कांग्रेसी नेताओं को लाकर विपक्ष कमजोर करना.. लेकिन जयेश रादड़िया जैसे दिग्गजों की नाराजगी से सौराष्ट्र में बगावत हो सकती है.. विश्लेषक कहते हैं कि यह मोदी-शाह की लैबोरेटरी है.. लेकिन स्थानीय असंतोष बढ़ सकता है..

 

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