अखलाक मॉब लिंचिंग केस में नया मोड़, आरोपियों के मुकदमे किस आधार पर वापस ले रही है योगी सरकार?

उत्तर प्रदेश में साल 2015 में दादरी मॉब लिंचिंग घटना हुई थी, जिसमें मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. ये घटना अब एक नया मोड़ ले रही है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस मामले के सभी 19 आरोपियों के खिलाफ चल रहे मुकदमे को वापस लेने के लिए अदालत में आवेदन दाखिल किया है. गौतम बुद्ध नगर के संयुक्त निदेशक अभियोजन ब्रजेश कुमार मिश्रा द्वारा दायर इस आवेदन में कई ठोस आधारों का हवाला दिया गया है, जो मामले की कमजोरियों को उजागर करते हैं.
बिसाड़ा गांव में क्या हुआ था?
पूरा मामला 28 सितंबर 2015 का है, जब ग्रेटर नोएडा के बिसाड़ा गांव में उस समय तनाव फैल गया, जब स्थानीय मंदिर से गोहत्या की अफवाह फैलाई गई. इसके बाद एक उग्र भीड़ अखलाक के घर के बाहर जमा हो गई. अखलाक और उनके बेटे दानिश को घर से घसीटकर बाहर निकाला गया और लाठियों, सरियों व ईंटों से तब तक पीटा गया, जब तक वे बेहोश नहीं हो गए.
अस्पताल ले जाने पर अखलाक की मौत हो गई, जबकि दानिश को गंभीर चोटें आईं और उनकी सर्जरी करानी पड़ी है. पुलिस ने जारचा थाने में आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियार से दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा), 323 (हमला) और 504 (शांति भंग करने के लिए अपमान) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी. मुकदमा वापसी के प्रमुख आधार सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 321 के तहत आवेदन दाखिल किया है, जो लोक अभियोजक को अदालत की सहमति से मुकदमे से हटाने की इजाजत देती है.
गवाहों के असंगत बयान
शिकायतकर्ता (अखलाक की पत्नी इकरामन) और अन्य गवाहों (बेटे दानिश व बेटी शाइस्ता) के बयानों में भारी विरोधाभास है. पुलिस द्वारा धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज शुरुआती बयानों में किसी आरोपी का नाम स्पष्ट रूप से नहीं लिया गया. लेकिन, धारा 164 सीआरपीसी (मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पूर्ण बयान) में इकरामन ने 26 नवंबर 2015 को 10 व्यक्तियों को नामजद किया, शाइस्ता ने छह अन्य को, जबकि दानिश ने 5 दिसंबर 2015 को तीन और नाम जोड़े हैं.
ये बयान आरोपियों की संख्या और पहचान में बदलाव दिखाते हैं, जो मामले को कमजोर बनाते हैं. धारा 161 के बयान जांच के लिए होते हैं और अदालत में सबूत नहीं माने जाते, जबकि धारा 164 के बयान जिरह के लिए महत्वपूर्ण हैं.
हथियारों की बरामदगी
आरोपियों से केवल पांच लाठियां, सरिया और ईंटें बरामद हुईं. आवेदन में स्पष्ट कहा गया है कि कोई आग्नेयास्त्र या धारदार हथियार नहीं मिला, जो घटना की गंभीरता पर सवाल उठाता है.
दुश्मनी का अभाव
केस डायरी में शिकायतकर्ता और आरोपियों के बीच कोई पूर्व दुश्मनी, विरोध या शत्रुता का जिक्र नहीं है. दोनों पक्ष बिसाड़ा गांव के ही निवासी हैं, फिर भी गवाहों ने बयानों में संख्या बदल दी.
समानता का अधिकार
आवेदन में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हवाला देते हुए कहा गया कि हर नागरिक चाहे शिकायतकर्ता, पीड़ित या आरोपी—को मुकदमा वापसी का समान अधिकार है.
इसके अलावा, सभी 19 आरोपियों को मुकदमे के दौरान अदालत ने जमानत दे दी है, जो मामले की मजबूती पर सवाल खड़े करता है. कानूनी प्रावधान और सीआरपीसी धारा 321 अभियोजन को सार्वजनिक हित में मुकदमा वापस लेने की शक्ति देती है, लेकिन इसके लिए अदालत की सहमति जरूरी है.
सरकार का तर्क है कि कमजोर सबूतों और असंगतियों के चलते मुकदमा चलाना न्यायिक समय की बर्बादी होगा. हालांकि, यह कदम विवादास्पद हो सकता है, क्योंकि घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया था. अब गेंद अदालत के पाले में है. क्या अदालत आवेदन स्वीकार करेगी या मामले को आगे बढ़ाएगी?

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