गांधी मैदान, नीतीश को कमान लेकिन सफर नहीं आसान!

  • नीतीश ने 10वीं बार ली मुख्यमंत्री पद की शपथ
  • शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत एनडीए के तमाम दिग्गज रहे मौजूद
  • सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा ने ही उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। गांधी मैदान की हवा आज फिर एक पुराने अध्याय की गवाही दे रही थी। एक बार फिर नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मगर यह शपथ किसी जीत का जलसा कम और आने वाले संघर्षों की दस्तक ज़्यादा लग रही थी। कहने को वे 10वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं। भारत के किसी भी राज्य में इतना लंबा राजनीतिक सफर कम ही राजनीतिक लोगों को नसीब होता है।
लेकिन नीतीश की किस्मत में सिर्फ ताज नहीं अंदर खंजर भी हैं बाहर तलवारें भी और ऊपर तल्ख सवालों की बारिश भी। उन्हें भव्य समारोह में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। आज बीजेपी नेता सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा पिछली सरकार में भी उपमुख्यमंत्री के पद पर ही थे। वहीं लखेंद्र कुमार रौशन, श्रेयसी सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार, संजय कुमार, संजय कुमार सिंह और दीपक प्रकाश के साथ लेसी सिंह, नितिन नबीन, मदन साहनी, राम कृपाल यादव, संतोष कुमार सुमन, सुनील कुमार, मोहम्मद जमा खान, संजय सिंह टाइगर, अरुण शंकर प्रसाद, सुरेंद्र मेहता, नारायण प्रसाद और रमा निषाद ने भी मंत्री पद की शपथ ली।

शपथ ग्रहण में दिग्गज

गांधी मैदान में आयोजित आज के शपथ ग्रहण के भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह जेपी नड्डा समेत एनडीए के तमाम दिग्गज मौजूद रहे। आज के शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी शासित राज्यों के कई मुख्यमंत्री यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौजूद रहे।

पहले वाली बीजेपी नहीं

बीजेपी भी अब पहले वाली बीजेपी नहीं है। 2015 और 2020 के अनुभवों ने उसे साफ संकेत दे दिया है कि सिर्फ सहयोगी बनकर बिहार में सत्ता का स्वाद नहीं मिलेगा। इस बार उसने नीतिश कुमार को मुख्यमंत्री पद देने का फैसला राजनीतिक शालीनता में नहीं बल्कि रणनीतिक मजबूरी में लिया है ताकि सत्ता की चाबी उसके हाथ में रहे और चेहरे की जिम्मेदारी नीतिश पर। बीजेपी अपने विस्तार मिशन पर है और उसे बिहार में वह स्पेस चाहिए जो जेडीयू की वजह से सालों से सीमित रहे हैं इसलिए पार्टी अब यह संदेश देना चाहती है कि आप कुर्सी ले जाइए कंट्रोल हमारा होगा। संघटन विस्तार, नियुक्तियां, विकास योजनाएं, कानून-व्यवस्था प्रत्येक विषय पर बीजेपीअपनी पकड़ मजबूत करती दिखेगी।

गठबंधन में अविश्वास, कितने दिन टिकेंगे का सवाल!

जेडीयू और बीजेपी का रिश्ता हमेशा से सहयोग भी संदेह भी वाला रहा है। जेडीयू के भीतर डर है कि मोदी-शाह की जोड़ी कहीं बिहार की राजनीति में नीतिश का महत्व धीरे-धीरे कम न कर दे। दूसरी तरफ बीजेपी को भरोसा नहीं कि नीतिश कुमार सत्ता का गणित बदलते ही फिर से कोई यू-टर्न न मार दें। क्योंकि उन्होंने अतीत में यह कई बार किया है। वह एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं और महागठबधंन छोड़कर एनडीए में शामिल हो चुके हैं। सवाल यही है कि इस अविश्वास का असर अब सरकार के कामकाज तक पहुचेगा क्या। मंत्रिमंडल गठन के समय कौन-सी कुर्सी किसे मिलेगी किस विभाग पर किसका नियंत्रण होगा नीतियों में किसकी चलेगी यह खींचतान अभी शांत दिख रही है लेकिन अंदर-अंदर ही असली संघर्ष पनप रहा है। सीधे शब्दों में अगर कहा जाए तो सरकार गठित हो गई है गठबंधन अभी भी नहीं हो पाया है।

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