बीजेपी का जय परिवारवाद बिहार कैबिनेट में बेटा ही डेटा है

  • नैतिकता की अर्थी पर बेटों का राजतिलक
  • बिहार की राजनीति में नया अध्याय
  • नयी राजनीति का पुराना चेहरा, बिहार मंत्रिमंडल में वंशवाद की ताजपोशी

 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कभी राजनीति की भीड़ में एक आवाज गूंजती थी कि हम परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ हैं। यह देश भ्रष्ट खानदानों से नहीं जनता के दम पर चलेगा। यह नारा सिर्फ नारा नहीं था। यह जनभावना चुनावी भाषण और राजनीतिक स्वच्छता का दावा था जोकि पूरी तरह खोखला साबित हुआ। बिहार में सत्ता का ताज जिस तरह बंटा है उसने इन नारों को हास्य कविता बना दिया है।
एक ऐसा मजाक जिस पर लोकतंत्र शर्म से लाल हो गया है। नीतीश कुमार ने 10वीं बार शपथ ली। गांधी मैदान में भीड़ थी, मंच था, झंडे थे, नारे थे। लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियों में थे वह चेहरे जो नाम और पहचान से नहीं बल्कि बाप और खानदान से पहचाने जाते हैं। क्योंकि मंत्रिमंडल में जगह काबलियत को देखकर नहीं बल्कि वंशावली की पर्चियां देखकर दी गयी है। जी हां वही बीजेपी जिसने परिवारवाद के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया था जिसने अखिलेश, तेजस्वी, स्टालिन, और उद्धव को डायनेस्टी प्रोडक्ट कहकर गालियां दीं थी आज उसी रास्ते पर चलते हुए पूरे जोश से परिवारवाद का ध्वज थामे खड़ी है।

जोर से बोले जय परिवारवाद

  1. सम्राट चौधरी : पूर्व मंत्री शकुनि चौधरी के पुत्र है।
  2. संतोष सुमन मांझी : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे हैं।
  3. दीपक प्रकाश : पूर्व केन्द्रीय मंत्री, राज्यसभा सांसद उपेन्द्र कुशवाहा और विधायक स्नेहलता कुशवाहा के बेटे हैं।
  4. अशोक चौधरी : पूर्व मंत्री महावीर चौधरी के बेटे हैं।
  5. नितिन नबीन : पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा के बेटे हैं।
  6. रमा निषाद : पूर्व केन्द्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण निषाद की पुत्रवधु और पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी हैं।
  7. श्रेयसी सिंह : पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी की बेटी हैं।
इसके अतिरिक्त बचे पदों जैसे निगम अध्यक्ष, चेयरमैन, सहकारिता और दूसरे अन्य पदों पर इनके रिश्तेदारों का परचम लहरायेगा

परिवारवाद पर बीजेपी की दोहरी राजनीति

वही बीजेपी जो कल तक कहती थी कि डायनेस्टी पालिटिक्स लोकतंत्र के लिए कैंसर है। वही बीजेपी आज जब तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने तो उन्हें लालू की राजनीति का नमूना कहा गया। जब यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बने तो उन्हें बाप का नाम खाने वाला राजकुमार कहा गया। पर अब जब शपथ मंच पर बेटों और बेटियों की कतारें लगीं तो नैतिकता गायब हो गई और तर्क का नया नाम रख दिया गया राजनीतिक विरासत लोकतांत्रिक अधिकार है।

क्या यही है नया भारत?

राजनीतिक रैलियों में अक्सर नहीं ज्यादातर कहा गया कि हम नई सोच नए चेहरे नई राजनीति करेंगे। जनता के बीच से जनता के नुमाइंदे तय होंगे लेकिन बिहार में दृश्य उल्टा है। नये चेहरे वही पुराने चेहरे हैं बस नाम बदले गये हैं। सोशल मीडिया पर इन चेहरों को जमकर ट्रोल किया जा रहा है और पूछा जा रह है कि अगर सबकुछ वंशवाद से ही तय होना है तो ईवीएम में वोट क्यों डालें जाते हैं? सवाल केवल बीजेपी से नहीं लोकतंत्र से भी पूछा जा रहा है कि क्या योग्यता, संघर्ष, विचारधारा और जनता की उम्मीदें वंशवाद के मुकाबले हमेशा हार जाएंगी? क्या एक सामान्य परिवार का युवा सिर्फ इसलिए पिछड़ जाएगा क्योंकि उसके पिता मंत्री नहीं हैं? इस मंत्रीमंडल ने साबित कर दिया कि चाहे गठबंधन कोई भी हो खेल वही पुराने खिलाड़ी ही खेलेंगे। क्योंकि जनता बदलती है चेहरे बदलते हैं लेकिन कुर्सी की विरासत कभी नहीं बदलती।

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