3000 छात्रों की मौत के बाद जागी गुजरात सरकार! मेंटल हेल्थ को लेकर गाइडलाइंस जारी
गुजरात में करीब 3000 छात्रों की मौत के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने मेंटल हेल्थ को लेकर गाइडलाइंस जारी की हैं...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है.. वहां छात्रों की आत्महत्याओं के मामले एक बड़ी समस्या बन गए हैं.. पिछले कुछ सालों में ये घटनाएं इतनी बढ़ गई हैं कि राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने पड़े हैं.. दिसंबर 2025 में, गुजरात के शिक्षा विभाग ने सभी कॉलेजों, विश्वविद्यालयों.. और निजी कोचिंग सेंटर्स के लिए नई गाइडलाइन्स जारी की हैं.. इन गाइडलाइन्स का मुख्य उद्देश्य छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाना है.. रिपोर्ट्स के मुताबिक 2017 से 2021 तक गुजरात में कुल 3,002 छात्रों ने आत्महत्या की है.. यह आंकड़ा हर दिन औसतन 1 से 2 छात्रों की मौत का संकेत देता है.. अप्रैल 2020 से मार्च 2023 तक 495 छात्रों ने आत्महत्या की.. जिनमें 246 छात्राएं शामिल थीं.. आपको बता दें कि ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो से लिए गए हैं.. और शिक्षा व्यवस्था के लिए एक खतरे की घंटी हैं..
वहीं यह समस्या सिर्फ गुजरात तक सीमित नहीं है.. पूरे भारत में छात्र आत्महत्याएं बढ़ रही हैं.. एनसीआरबी के 2022 के रिपोर्ट के अनुसार.. देश में 13,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की.. जो पिछले सालों से ज्यादा है.. लेकिन गुजरात में स्थिति ज्यादा चिंताजनक है.. क्योंकि यहां इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है.. कोटा जैसे शिक्षा हब में तो यह समस्या और गंभीर है.. लेकिन गुजरात के शहरों जैसे अहमदाबाद, सूरत.. और वडोदरा में भी कोचिंग सेंटर्स की वजह से छात्रों पर दबाव बढ़ रहा है.. सरकार की नई गाइडलाइन्स इसी दबाव को कम करने के लिए बनाई गई हैं..
जानकारी के अनुसार छात्रों की आत्महत्याओं के पीछे कई कारण हैं.. जिसका सबसे बड़ा कारण पढ़ाई का बोझ है.. जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं जेईई, नीट और जीपीएससी में सफलता पाने के लिए छात्र दिन-रात पढ़ते हैं.. वहीं असफलता का डर, परिवार की उम्मीदें और साथियों से तुलना उन्हें डिप्रेशन में डाल देती है.. एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में परीक्षा में फेल होने की वजह से 2,095 लोगों ने आत्महत्या की.. जिसमें गुजरात से 155 मामले थे.. यह संख्या महाराष्ट्र के बाद सबसे ज्यादा है..
जानकारी के अनुसार कोचिंग सेंटर्स में होने वाली प्रतिस्पर्धा भी एक बड़ा कारण है.. यहां छात्रों को अंकों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है.. जो उन्हें अपमानित महसूस कराती है.. कई बार शिक्षक छात्रों पर अवास्तविक दबाव डालते हैं.. अगर तुम फेल हो गए तो जीवन बर्बाद हो जाएगा.. इससे छात्रों का आत्मविश्वास टूट जाता है.. इसके अलावा, रैगिंग, जातिगत भेदभाव और एलजीबीटीक्यू+ छात्रों के साथ होने वाला उत्पीड़न भी आत्महत्या की वजह बनता है.. गुजरात में एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों के मामलों में यह ज्यादा देखा गया है.. 2014 से 2021 तक आईआईटी, एनआईटी.. और सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में 122 छात्रों ने आत्महत्या की.. जिनमें 68 एससी/एसटी/ओबीसी से थे..
वहीं कोविड-19 महामारी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया.. 2020 और 2021 में छात्र सुसाइड्स में तेज बढ़ोतरी हुई.. क्योंकि ऑनलाइन क्लासेस, घर में बंद रहना.. और परीक्षाओं की अनिश्चितता ने मानसिक तनाव बढ़ाया.. 2017 से 2022 तक भारत में सुसाइड रेट 9.9 से बढ़कर 12.4 प्रति लाख आबादी हो गया.. गुजरात में यह रेट अन्य राज्यों से ज्यादा नहीं है.. लेकिन छात्रों के मामले में चिंताजनक है..
वहीं गुजरात सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कड़ा रुख अपनाया है.. दिसंबर 2025 में जारी गाइडलाइन्स में कई महत्वपूर्ण बदलाव हैं.. सबसे पहले, सभी शैक्षणिक संस्थानों में ‘मानसिक स्वास्थ्य नीति’ लागू करना अनिवार्य कर दिया गया है.. वहीं यह नीति राज्य स्तर पर एकसमान होगी.. और सुप्रीम कोर्ट की UMMEED (उम्मीद) ड्राफ्ट गाइडलाइन्स पर आधारित है..
जिसको लेकर कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अब हर 100 छात्रों पर कम से कम एक योग्य काउंसलर रखना होगा.. अगर छात्रों की संख्या 100 से कम है.. तो संस्थान को बाहरी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से रेफरल व्यवस्था करनी होगी.. परीक्षा के समय या पढ़ाई के दबाव में छात्रों को गोपनीय काउंसलिंग मिले.. यह सुनिश्चित किया जाएगा.. काउंसलर छात्रों की बात सुनेंगे.. और उन्हें सलाह देंगे और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर के पास भेजेंगे..
वहीं निजी कोचिंग सेंटर्स के लिए भी सख्त नियम हैं.. गुजरात सरकार कोचिंग क्लासेस को रेगुलेट करने के लिए ऑर्डिनेंस लाने की योजना बना रही है.. अब कोचिंग सेंटर्स छात्रों के प्रदर्शन या अंकों के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकेंगे.. छात्रों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना या उन पर ज्यादा दबाव डालना प्रतिबंधित है.. यह नियम केंद्र सरकार की 2024 की कोचिंग सेंटर गाइडलाइन्स से प्रेरित हैं.. जो छात्र सुसाइड्स, फायर सेफ्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करती हैं..
आत्महत्या रोकने के लिए संस्थानों को तत्काल रेफरल प्रोटोकॉल बनाना होगा.. कॉलेज कैंपस, क्लासरूम, हॉस्टल और वेबसाइट पर मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबर्स बड़े अक्षरों में दिखाने होंगे.. शिक्षकों और स्टाफ को साल में दो बार ट्रेनिंग दी जाएगी.. जिसमें मानसिक स्वास्थ्य की प्राथमिक सहायता.. और चेतावनी संकेतों को पहचानना सिखाया जाएगा..
विशेष रूप से एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस और एलजीबीटीक्यू+ छात्रों के लिए भेदभाव-मुक्त माहौल बनाना जरूरी है.. रैगिंग और उत्पीड़न पर सख्त कार्रवाई होगी.. हॉस्टलों में सुरक्षा के लिए एंटी-सुइसाइड फैन और बालकनी में ग्रिल लगाने के निर्देश हैं.. ये भौतिक बदलाव छात्रों को खुद को नुकसान पहुंचाने से रोकेंगे..
वहीं यह गाइडलाइन्स सिर्फ गुजरात की नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2025 के फैसले से प्रेरित हैं.. सुप्रीम कोर्ट ने छात्र सुसाइड्स रोकने के लिए 15 बाइंडिंग गाइडलाइन्स जारी की.. इनमें यूनिफॉर्म मेंटल हेल्थ पॉलिसी, काउंसलिंग और स्कूल/कॉलेज में हेल्पलाइन शामिल हैं.. कोर्ट ने सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगी कि उन्होंने क्या कदम उठाए.. अक्टूबर 2025 में कोर्ट ने फिर निर्देश दिए कि 8 हफ्तों में सुसाइड प्रिवेंशन के प्रयासों की रिपोर्ट दें..
राजस्थान ने भी 2025 में कोचिंग सेंटर्स कंट्रोल बिल पास किया.. जिसमें रजिस्ट्रेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और मेंटल हेल्थ सपोर्ट अनिवार्य हैं.. गुजरात का मॉडल अन्य राज्यों के लिए उदाहरण बन सकता है.. आपको बता दें कि एनसीआरबी के डेटा से पता चलता है कि 2017 से 2022 तक भारत में सुसाइड रेट बढ़ा है.. 2021 में 13,089 छात्र सुसाइड्स हुए.. जो 2020 के 12,526 से ज्यादा है.. 2022 में यह 13,000 से ऊपर पहुंच गया.. गुजरात में 2017-2021 के 3,002 मामलों में ज्यादातर पुरुष छात्र थे.. लेकिन महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है.. 2017 में महिलाओं के सुसाइड्स 4,711 थे, जो 2021 में 5,693 हो गए..
2022 में सुसाइड रेट 12.4 प्रति लाख हो गया.. जो 2021 के 12 से ज्यादा है.. छात्र सुसाइड्स में 7.6% हिस्सा है.. ड्रग्स और अल्कोहल से जुड़े सुसाइड्स 10% बढ़े.. ये आंकड़े दिखाते हैं कि समस्या महामारी की तरह फैल रही है.. आईसी3 इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि.. 2021-2022 में पुरुष छात्र सुसाइड्स 6% कम हुए.. लेकिन महिलाओं में सुसाइड्स के आंकड़े बढ़े..
मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये गाइडलाइन्स सही दिशा में हैं.. लेकिन इंप्लीमेंटेशन महत्वपूर्ण है.. डॉ. लक्ष्मी विजयकुमार, जो सुसाइड प्रिवेंशन पर काम करती हैं.. वो कहती हैं कि भारत में सुसाइड डेटा एनसीआरबी से आता है.. लेकिन असली संख्या ज्यादा हो सकती है.. क्योंकि कई मामले रिपोर्ट नहीं होते है.. वे कहती हैं कि स्कूलों में ट्रेनिंग और काउंसलिंग से 20-30% सुसाइड्स रोके जा सकते हैं..



