कब तक हंगामें की भेट चढ़ेंगे सत्र
- संसद में काम-काज पर पड़ता है असर सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष भी जिम्मेदार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। पिछले 10, 12 सालों में देखने को मिला है कि संसद में काम कम व हंगामा ज्यादा हो रहा है। चाहे सत्ता हो या विपक्ष दोनों ओर से किसी मुद्दे पर चर्चा कम होती है और नोक-झोक अधिक। हंगामें की वजह से सत्र को कभी कुछ समय तो कुछ को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया जाता है। राजनीतिक दलों को इसका आभास होना चाहिए कि भारत का विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होना ही पर्याप्त नहीं। संसद में प्राय: विपक्ष को यह शिकायत होती है कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिलता। इस शिकायत को दूर करने के लिए संसद का कुछ समय इसके लिए आरक्षित कर देना चाहिए जिसमें विपक्षी दल जिस भी विषय पर चाहें अपनी बात रख सकें। आखिर कब तक इस तरह से सत्र हंगामे की भेट चढ़ते रहेंगे।
संसद के सत्र में हंगामा होने के आसार दिखना कोई नई या अनोखी बात नहीं। अब संसद के प्रत्येक सत्र के पहले ऐसे ही खबरें आती हैं कि सदन में हंगामा देखने को मिल सकता है। कई बार संसद में हंगामा ही अधिक होता है और काम कम। यह सिलसिला तब तक कायम रहेगा, जब तक सत्तापक्ष और विपक्ष यह नहीं समझते कि संसद सार्थक संवाद का मंच है, न कि हल्ला एवं हंगामा करने का अथवा टीवी कैमरों के सामने नारे लिखी तख्तियां लहराने का। संसद में राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श होना चाहिए, ताकि देश को कोई दिशा मिल सके, लेकिन इसके स्थान पर आरोप-प्रत्यारोप अधिक होता है। कई बार तो इसे लेकर गतिरोध कायम हो जाता है कि पहले किस विषय पर बहस हो और किन नियमों के तहत? कहना कठिन है कि संसद के सत्र का क्या होगा, लेकिन अच्छा यह होगा कि राजनीतिक दल उन देशों की संसद में होने वाली कार्यवाही को अपना आदर्श बनाएं, जहां प्रत्येक विषय पर गंभीर बहस होती है। आखिर अपने देश में अमेरिका और ब्रिटेन की संसद की तरह से बहस क्यों नहीं हो सकती? यदि संसद में होने वाली बहस का स्तर ऊंचा उठ सके तो देश सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ-साथ श्रेष्ठ लोकतंत्र की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ सकता है। राजनीतिक दलों को इसका आभास होना चाहिए कि भारत का विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होना ही पर्याप्त नहीं। उन्हें इससे भी अवगत होना चाहिए कि संसद में होने वाली बहस के गिरते स्तर के चलते उसकी गरिमा में गिरावट आ रही है और आम जनता संसदीय कार्यवाही को लेकर उत्साहित नहीं होती।
संसद में प्राय: विपक्ष को यह शिकायत होती है कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिलता। इस शिकायत को दूर करने के लिए संसद का कुछ समय इसके लिए आरक्षित कर देना चाहिए, जिसमें विपक्षी दल जिस भी विषय पर चाहें, अपनी बात रख सकें। इस पर हर्ज नहीं कि सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने यह संकेत दिया कि संसद के मौजूदा सत्र में महंगाई, बेरोजगारी और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसे विषय उसकी प्राथमिकता में होंगे। जहां सत्तापक्ष को इन विषयों पर विपक्ष की ओर से उठाए गए प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तत्पर रहना चाहिए, वहीं विपक्ष को भी यह आभास कराना चाहिए कि उसका उद्देश्य अपने सवालों के जवाब पाना है, न कि हंगामा कर सदन की कार्यवाही ठप करना। सत्तापक्ष को इसके लिए भी तत्पर रहना चाहिए कि संसद के इस सत्र में प्रस्तावित विधेयक पारित हों। ये विधेयक व्यापक विचार-विमर्श के साथ पारित होने चाहिए। जब कभी आवश्यक विधेयक संसद में अटके रह जाते हैं तो इससे कुल मिलाकर देश को नुकसान होता है।
संसद में हंगामे पर कई नेता दिखा चुके हैं नाराजगी
कई बार संसद के हंगामे पर बसपा अध्यक्ष मायावती समेत कई दलों के शीर्ष नेताओं ने नाराजगी व्यक्त की है। इन नेताओं का कहना केंद्र सरकार पर विपक्ष को गैर जरूरी मुद्दों में उलझाकर सदन की कार्यवाही प्रभावित करने और राजनीतिक स्वार्थ साधने का आरोप लगाया। मायावती का कहना है कि हंगामे से देश में हर तरफ निरंकुशता और ज्यादा बढ़ेगी। संसद सत्र के दौरान भी देश की ज्वलन्त समस्याओं पर समुचित चर्चा भी नहीं हो पाने से केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेदारी ओढऩे से बच जा रही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा,विपक्षियों को नित्य दिन नए अवांछनीय विवादित मुद्दों में उलझाना और उन्हें उत्तेजित करके सदन की कार्यवाही को प्रभावित करके अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति करना सरकारों की नयी प्रवृति बन गई है, जो घोर अनुचित व जनविरोधी प्रवृति है तथा इससे देशहित बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा‘ संसद व राज्यों में सदन के प्रति सरकारें गंभीर, जिम्मेदार व उत्तरदायित्व नहीं होंगी तो इससे देश में हर तरफ निरंकुशता और ज्यादा बढ़ेगी। मायावती ने कहा,आज देश में कड़वी वास्तविकता यही है कि ऐसी कोई सरकार नहीं दिखती जो महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी के अलावा जनहित व जनकल्याण के सम्बंध में पूरी गंभीरता व ईमानदारी के साथ काम करने की स्थिति में हो। इसलिए नये भारत की नयी सुन्दर तस्वीर बनकर कोई राज्य नहीं उभर पा रहा है।
2023 में बजट सत्र में 10 बैठकों में 4 हंगामें की भेंट चढ़ी
2023 में एक महीने की लंबी छुट्टी के बाद फिर से शुरू हो रहे इस सत्र में टोटल 27 बैठकें होंगी। इससे पहले राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन की कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए रविवार को नई दिल्ली में सर्वदलीय बैठक बुलाई। वहीं बता दें कि सत्र का पहला चरण 31 जनवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण से शुरू हुआ था, जो कि 13 फरवरी तक चला। जिसमें 10 बैठकें (छुट्टी को छोडक़र) हो चुकी हैं, जिनमें 4 बार सदन को हंगामे के चलते लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई को स्थगित करना पड़ा था। इसी दौरान राष्ट्रपति के संबोधन पर धन्यवाद ज्ञापन और केंद्रीय बजट 2023-24 पर चर्चा हुई थी।
प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र
सामान्यत: प्रतिवर्ष संसद के तीन सत्र या अधिवेशन होते हैं। यथा बजट अधिवेशन (फरवरी-मई), मानसून अधिवेशन (जुलाई-अगस्त) और शीतकालीन अधिवेशन (नवंबर-दिसंबर)। किंतु, राज्यसभा के मामले में, बजट के अधिवेशन को दो अधिवेशनों में विभाजित कर दिया जाता है। इन दो अधिवेशनों के बीच तीन से चार सप्ताह का अवकाश होता है। संघ के विधानमंडल, जिसे संसद कहा जाता है, में राष्ट्रपति और दो सदन होते हैं, जिन्हें राज्यों की परिषद (राज्य सभा) और लोक सभा (लोकसभा) के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक सदन को अपनी पिछली बैठक के छह महीने के भीतर मिलना होता है।
267 के तहत विपक्ष की नोटिस की जाती है खारिज
इससे पहले राज्यसभा चेयरमैन वेंकैया नायडू के कार्यकाल में भी बहुत हंगामा होता रहता था। कई बार तो उन्होंने नियम 267 के तहत सरकारी जांच एजेंसियों जैसे सीबीआई, आईटी के दुरुपयोग के मुद्दे पर राज्यसभा में विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खडग़े और कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल के नोटिस को खारिज किया, इसके विरोध में विपक्षी सांसदों ने हंगामा किया और हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती थी। 2023 में भी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप को लेकर विपक्ष के सदस्य हंगामा कर रहे हैं। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने ईडी की तरफ से उन्हें समन जारी करने पर सवाल उठाए। खडग़े ने कहा कि जब पार्लियामेंट चल रही है, ईडी का समन आता है। आप तुरंत आइए, मैं कानून का पालन करना चाहता हूं, लेकिन जब सदन चल रहा है मुझे समन करना क्या यह उचित है? सोनिया गांधी और राहुल गांधी के घर का पुलिस ने घेराव पर भी खडग़े ने सवाल उठाया ।
लोस और रास में 35 बिल पेंडिंग
संसद में कुल 35 बिल पेंडिंग हैं। इनमें लोकसभा में 9 और राज्य सभा में 26 बिल पेश होने हैं। सत्र के पहले चरण में विधेयकों पर चर्चा और पारित किए जाने की संभावना कम है। हालांकि, सत्र के दूसरे चरण में कई महत्वपूर्ण बिल पेश किए जा सकते हैं। राज्यसभा में पेंडिंग 26 बिलों में तीन विधेयक पहले ही लोकसभा से पारित किए जा चुके हैं। इनमें अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019, संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (तीसरा संशोधन) विधेयक 2022 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (पांचवां संशोधन) विधेयक 2022 शामिल है।
आठवां सत्र तय समय से पहले हुआ था स्थगित
संसद का शीतकालीन सत्र अपने निर्धारित समय से छह दिन पहले अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। इस शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में 97 फीसदी और राज्यसभा में 102 फीसदी कामकाज हुआ है। यह लगातार आठवां सत्र है, जिसकी अवधि कम की गई है। एक रिसर्च संस्था द्वारा संकलित आंकड़ों से यह जानकारी मिली। शीतकालीन सत्र सात दिसंबर को शुरू हुआ और 29 दिसंबर तक चलना था। हालांकि, सदस्यों ने क्रिसमस और नये साल को देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति से कार्यवाही पहले ही स्थगित करने का आग्रह किया था। आंकड़ों के अनुसार 2020 में हुए बजट सत्र से अब तक के सभी संसद सत्र तय समय से पहले समाप्त हो गए। वर्ष 2020 में कोविड-19 के मामले बढऩे की वजह से बजट और मानसून सत्र की अवधि कम कर दी गयी। बजट सत्र 11 दिन पहले स्थगित कर दिया गया, वहीं मानसून सत्र तय समय से आठ दिन पहले समाप्त हो गया था। उस साल महामारी के कारण शीतकालीन सत्र आयोजित ही नहीं हुआ। पिछले साल बजट सत्र निर्धारित कार्यक्रम से 14 दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया।