तमिलनाडु में ‘पलानी’ की छांव में ‘बीजेपी’

  • एआईएडीएमके के सहयोग से मिलेगी सियासी मजबूती
  • सीटों के बटवारे पर भी रहेगा इपीएस का प्रभाव
  • डीएमक से मिलेगी कड़ी चुनौती

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। दक्षिण भारत के अहम प्रदेश तमिलनाडु में अपनी पकड़ बनाने में जुटी भाजपा को एआईएडीएमके के सहारे की जरूरत है। पर जबसे एडप्पादी पलानीस्वामी के हाथ में पार्टी की कमान आई है वह बीजेपी को खुले हाथ देने के मूड में नही है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सीटों के बंटवारे से लेकर कैं डिडेट तक का फैसला एआईएडीएमके नेता अपने हाथों में रखना चाहते हैं।
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले तस्वीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक की कमान अब पूरी तरह से एडप्पादी पलानीस्वामी (इपीएस) के हाथ में आ चुकी है, लेकिन उन्होंने अभी से अपनी सहयोगी बीजेपी को साफ कर दिया है इस बार सीटों के बंटवारे का फैसला अन्नाद्रमुक ही लेगी कि कौन, कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री ओ पनीर सेल्वम ,शशिकला और दिनाकरण को पार्टी ने निष्कासित कर दिया है। इसलिये सवाल है कि अब इन तीनों का क्या होगा और क्या वे नई पार्टी बनाकर अन्नाद्रमुक के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे।
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं। साल 2019 के चुनाव में द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (डीएमके) को जबरदस्त सफलता मिली थी। डीएमके+ ने राज्य की 39 सीटों में से 37 पर जीत दर्ज की थी। जबकि ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म (एआईएडीएमके) को महज एक ही सीट हासिल हुई थी। इसकी बड़ी वजह थी कि पलानीस्वामी और ओ पनीर सेल्वम गुट के बीच पार्टी के कब्जे को लेकर जबरदस्त लड़ाई छिड़ी हुई थी,जिसका खामियाजा पूरी पार्टी को भुगतना पड़ा. पूर्व मुख्यमंत्री शशिकला और दिनाकरण भी पनीरसेल्वम गुट के साथ थे जिसका नतीजा ये हुआ कि अपने मजबूत गढ़ में भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा,हालांकि उससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव मे एआईएडीएमके को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि बीजेपी और पीएमके को 1-1 सीट मिली थी, लेकिन तब जयललिता जिंदा थीं और उनका जलवा भी बरकरार था।
अब पार्टी की पूरी कमान पलानीस्वामी के हाथों में आ जाने से उनकी स्थिति मजबूत हो गई है, लिहाजा वे अपनी शर्तों पर ही बीजेपी के साथ गठबंधन करना चाहते हैं। जबकि इधर,बीजेपी का लक्ष्य है कि कर्नाटक में सत्ता हासिल हो जाने के बाद तमिलनाडु में भी पार्टी की सियासी जमीन मजबूत की जाये। इस सूरत में उसकी कोशिश होगी कि कम से कम 30 फीसदी सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार चुनाव -मैदान में हों, लेकिन पलानीस्वामी के तेवरों से नहीं लगता कि वे इतनी आसानी से बीजेपी को इतनी सीटें दे ही देंगे। बीते दिनों हुई पार्टी नेताओं की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक के अंतरिम महासचिव पलानीस्वामी ने संसदीय सीटों के बंटवारे को लेकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। उन्होंने साढ़े लहजे में कहा है कि संसदीय के लिए सीटों के बंटवारे पर अबकी बार फैसला एआईएडीएमके ही करेगी। आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी मुख्यालय में तमाम जिला सचिवों की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें पार्टी के सांसद, विधायक और प्रवक्ता भी शामिल हुए थे। एआईएडीएमके के प्रवक्ता डी जयकुमार ने कहा था कि बीजेपी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर पलानीस्वामी ही बीजेपी नेताओं से चर्चा करेंगे लेकिन अंतिम फैसला हमारा ही होगा कि कौन,कितनी सीटों पर कहाँ से चुनाव लड़ेगा। उन्होंने पार्टी में आंतरिक संघर्ष की खबरों की निंदा करते हुए कहा था। हमारी पार्टी के भीतर कोई मुद्दा नहीं है.हम सभी एकजुट हैं.हमने ओ पन्नीरसेल्वम, शशिकला या टीटीवी दिनाकरण पर चर्चा नहीं की क्योंकि वे हमारी पार्टी में नहीं हैं। पन्नीरसेल्वम हमारी पार्टी के झंडे और प्रतीक पर कैसे दावा कर सकते हैं,जबकि वह हमारी पार्टी में ही नहीं हैं। दरअसल, बीते दिनों ही सर्वोच्च अदालत ने पलानीस्वामी को पार्टी महासचिव के तौर पर काम जारी रखने की हरी झंडी दे दी है। इसे पालनिसामी के विरोधी ओ पन्नीरसेल्वम गुट के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। बता दें कि पलानीस्वामी और पन्नीरसेल्वम के बीच पार्टी पर कब्जे को लेकर विवाद है, इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु हाईकोर्ट की डिविजन बेंच के फैसले को बरकरार रखा है।

जयललिता के निधन बाद शुरू हुई कलह

बता दें कि साल 2016 में जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके में सत्ता को लेकर अंदरुनी विवाद छिड़ गया। जयलिलता की करीबी दोस्त शशिकला ने पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जा बैठीं. इसके बाद पलानीस्वामी और पनीरसेल्वम के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर पार्टी के भीतर खींचतान का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तक जारी है. इसकी वजह से एआईडीएमके की 2019 में बुरी हार हुई। पार्टी में अंदरूनी कलह मच गई। ओपीएस ने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार पद को छोड़ दिया। ईपीएस को 2021 विधानसभा चुनाव में सीएम पद का प्रत्याशी बनाया गया, तभी से पार्टी ईपीएस और ओपीसी कैंप में बंट कर रह गई है।

Related Articles

Back to top button