CJI गवई का सख्त संदेश, देश में बुलडोजर नहीं, कानून का राज चलेगा
देश के चीफ जस्टिस ने एक बार फिर सरकारों को चेताया... व्यवस्था कानून से चलेगी, बुलडोजर से नहीं... न्यायपालिका ने साफ कहा कि कानून...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में जहां करोड़ों लोग कानून की रक्षा पर भरोसा करते हैं.. कभी-कभी सत्ता का दुरुपयोग ऐसा रूप ले लेता है कि आम आदमी का घर-दांव पर लग जाता है.. बुलडोजर जस्टिस या बुलडोजर कानून.. यह शब्द आजकल खूब सुनाई देता है.. इसका मतलब है कि बिना अदालत के फैसले के.. सिर्फ आरोप लगाने पर किसी के घर या दुकान को बुलडोजर से ढहा देना.. यह न सिर्फ निर्दोषों को सजा देता है.. बल्कि कानून के शासन को कमजोर भी करता है.. ऐसे ही समय में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने एक करारा संदेश दिया है.. भारत बुलडोजर से नहीं, कानून से चलता है..
आपको बता दें कि यह संदेश मॉरीशस में दिया गया.. जहां जस्टिस गवई सर मॉरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 को संबोधित कर रहे थे.. जिसका सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन विषय था.. 3 अक्टूबर 2025 को हुए इस संबोधन में उन्होंने अपने ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया.. जिसमें बुलडोजर कार्रवाई को सख्ती से नकारा गया था.. यह बयान सिर्फ शब्द नहीं.. बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था की मजबूती का प्रतीक है.. गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक.. जहां बुलडोजर की गूंज सुनी जाती रही है.. यह संदेश एक चेतावनी की तरह गूंज रहा है..
बता दें कि बुलडोजर जस्टिस वह प्रथा है.. जिसमें सरकार या प्रशासन किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाते ही उसके घर.. दुकान या संपत्ति को बिना नोटिस या अदालती आदेश के बुलडोजर से गिरा देता है.. यह सजा का एक तेज तरीका लगता है.. लेकिन कानून की नजर में यह पूरी तरह गैरकानूनी है.. क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है.. जिसमें शेल्टर का अधिकार भी शामिल है.. बिना प्रक्रिया के घर तोड़ना इस अधिकार का सीधा उल्लंघन है..
2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद बुलडोजर कार्रवाई का ट्रेंड तेज हुआ.. योगी सरकार ने ‘माफिया’ या ‘अवैध निर्माण’ के नाम पर सैकड़ों संपत्तियों को ढहाया.. आंकड़ों के मुताबिक 2017 से 2024 तक UP में 10,000 से ज्यादा बुलडोजर कार्रवाइयां हुईं.. जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग प्रभावित हुए.. यह सिर्फ UP तक सीमित नहीं रहा.. गुजरात में भी 2020 के बाद BJP सरकार ने इसी तर्ज पर कार्रवाई की.. 2022 में अहमदाबाद में दंगों के आरोपी माने गए लोगों के घर तोड़े गए.. गुजरात हाईकोर्ट ने भी इसकी आलोचना की.. कहा कि यह ‘सामूहिक सजा’ है.. जो संविधान के खिलाफ है..
गुजरात का ‘उधना रेलवे स्टेशन दंगा’ 2023 का एक प्रमुख केस था.. यहां 50 से ज्यादा घर बिना किसी नोटिस के बुलडोजर से गिराए गए.. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, यह कार्रवाई मुख्य रूप से अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती है.. जो भेदभाव को बढ़ावा देती है.. मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में भी यह देखा गया.. 2020 के दिल्ली दंगों के बाद कुछ घरों को ‘अवैध’ बताकर तोड़ा गया..
लेकिन यह सिर्फ संपत्ति का नुकसान नहीं है.. एक परिवार का घर टूटने से बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है.. महिलाओं की जिंदगी उजड़ जाती है.. एक सर्वे के मुताबिक UP में प्रभावित परिवारों का 70% हिस्सा गरीब तबके का था.. जिनके पास दूसरा आश्रय नहीं था.. कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सजा से पहले अपराध सिद्ध करने का उल्टा तरीका है.. संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 300A (संपत्ति का अधिकार) का भी उल्लंघन होता है..
नवंबर 2024 में जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने ‘जाहिद पाशा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ केस में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया.. कोर्ट ने साफ कहा कि बुलडोजर जस्टिस अस्वीकार्य है.. सरकार अपराध के आरोप पर घर नहीं तोड़ सकती..कोई भी तोड़फोड़ से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना जरूरी है.. इसमें व्यक्ति को अपील का मौका मिले.. अपराधी का घर तोड़ना ‘सामूहिक सजा’ है.. जिससे निर्दोष परिवार के सदस्य प्रभावित होते हैं.. सरकार जज, जूरी और जल्लाद तीनों की भूमिका नहीं निभा सकती.. यह कार्यपालिका का दुरुपयोग है.. अगर गलत तोड़फोड़ हुई, तो प्रभावितों को मुआवजा देना होगा.. अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे..
वहीं कोर्ट ने कहा कि यह कानून का शासन नहीं, बल्कि कानूनहीनता है.. जस्टिस गवई ने फैसले में लिखा कि यह फैसला न सिर्फ आज के लिए.. बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश है.. इस फैसले के बाद, UP सरकार ने कार्रवाइयां रोक दीं.. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे लोगों के अधिकारों की बड़ी जीत बताया..
यह फैसला CJI गवई के नेतृत्व में आया, जो खुद दलित समुदाय से हैं.. और न्याय व्यवस्था में समानता के लिए जाने जाते हैं.. 2025 में वे भारत के 52वें CJI बने.. उनके पहले के फैसलों में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित करना भी शामिल है.. जो पारदर्शिता की मांग करता था..
आपको बता दें कि 3 अक्टूबर 2025 को मॉरीशस यूनिवर्सिटी में सर मॉरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर में CJI गवई ने दुनिया को भारत की न्याय व्यवस्था की झलक दिखाई.. मॉरीशस के राष्ट्रपति धरमबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगूलाम और चीफ जस्टिस रेहाना मुंगली गुलबुल की मौजूदगी में उन्होंने कहा कि भारत का कानूनी सिस्टम रूल ऑफ लॉ से चलता है..बुलडोजर के शासन से नहीं..
उन्होंने अपने 2024 वाले फैसले का जिक्र किया.. यह फैसला एक स्पष्ट संदेश था कि भारत में कानून का राज है, न कि बुलडोजर का.. सरकार जज, जूरी और एक्जीक्यूशनर तीनों नहीं बन सकती.. संबोधन में उन्होंने कानून को नैतिक ढांचा बताया.. जो समानता और मानव गरिमा की रक्षा करता है.. महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि कानून सिर्फ नियम नहीं, बल्कि पीढ़ियों का संवाद है..
आपको बता दें कि यह यात्रा 3 दिनों की थी.. जिसमें भारत-मॉरीशस के बीच न्यायिक सहयोग पर चर्चा हुई.. मॉरीशस जो खुद ब्रिटिश उपनिवेश से आजाद हुआ.. भारत के कानूनी सिद्धांतों से प्रेरित है.. CJI गवई ने केशवानंद भारती केस (1973) का जिक्र किया.. जिसमें बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन आया, जो संविधान की रक्षा करता है.. उन्होंने ट्रिपल तलाक और एडल्टरी लॉ जैसे फैसलों का उदाहरण दिया.. जो महिलाओं के अधिकार मजबूत करते हैं..
आपको बता दें कि CJI गवई का बयान राजनीतिक हलचल मचा गया.. विपक्ष ने इसे योगी सरकार पर हमला बताया.. कांग्रेस नेता IPS सिंह ने कहा कि यह तालिबानी मानसिकता का अंत है.. BJP ने सफाई दी कि बुलडोजर अवैध निर्माण के खिलाफ था.. न कि सजा के लिए.. लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं कि 80% कार्रवाइयां अल्पसंख्यक इलाकों में हुई है..
सामाजिक संगठनों ने समर्थन किया.. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि यह फैसला मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव रोकता है.. गुजरात में जहां 2022-24 में 500+ घर टूटे, स्थानीय NGOs ने CJI की तारीफ की.. एक सर्वे में 65% लोग मानते हैं कि बुलडोजर कार्रवाई से अपराध कम नहीं होता, बल्कि डर फैलता है..
वहीं यह संदेश रूल ऑफ लॉ को मजबूत करता है.. रूल ऑफ लॉ का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं.. भारत में यह संविधान से आता है.. अनुच्छेद 32 में रिट का अधिकार है.. जो न्याय की सीधी पहुंच देता है.. CJI गवई ने कहा कि कानून न्याय की सेवा करे, सत्ता की नहीं..
2025 में कई राज्य इस फैसले का पालन कर रहे है.. UP में नई गाइडलाइंस बनीं, जहां नोटिस अनिवार्य है.. लेकिन चुनौतियां बाकी हैं अधिकारी अभी भी ‘सुरक्षा’ के नाम पर कार्रवाई करते हैं.. विशेषज्ञ कहते हैं कि मुआवजा प्रक्रिया को मजबूत करने की जरूरत है..



