साजिश या हादसा
जस्टिस गवई पर हमला, राष्ट्रपति की सुरक्षा में चूक

- भारत में दलित प्रतिनिधि सुरक्षित नहीं!
- बाल-बाल बची राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
- लैंडिंग के वक्त राष्ट्रपति का हैलीकॉप्टर धंसा
- अग्निशमन बल के जवान रहे मुस्तैद
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। केरल दौरे पर पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सुरक्षा में अभी तक की सबसे बड़ी लापरवाही सामने आयी है। राष्ट्रपति मुर्मू सबरीमाला मंदिर दर्शन के लिए केरल पहुंची हैं जहां एक अप्रत्याशित घटना से उनका सामना हुआ है। प्रमदम के राजीव गांधी इंडोर स्टेडियम में राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर लैडिंग के समय हैलीपैड में धंस जाने से अफरा-तफरी का माहौल हो गया। शुक्र है कि घटना के बाद पुलिस और फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेज के कर्मियों ने हेलीकॉप्टर की सुरक्षा सुनिश्चित की। राष्ट्रपति मुर्मू समेत सुरक्षाकर्मी और चालक दल पूरी तरह से सुरक्षित बताए जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार राष्ट्रपति का हेलीकॉप्टर पहले निलक्क में उतरना था लेकिन खराब मौसम और बारिश के चलते देर शाम लैंडिंग स्थल को बदलकर पथानमथिट्टा के प्रामदम स्टेडियम कर दिया गया। यहां हेलीपैड पर जल्दबाजी में नया कंक्रीट डाला गया था जो पूरी तरह सूख नहीं पाया था। हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद राष्ट्रपति का काफिला सड़क मार्ग से पंबा के लिए रवाना हो गया। राष्ट्रपति के रवाना होने के बाद कई पुलिसकर्मी और अग्निशमन बल के जवान राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर के पहियों को हैलीपैड पर बने गड्ढों से निकालते दिखाई दिए। आखिरी समय पर राष्ट्रपति के हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए जगह तय की गई थी, जिसके चलते मंगलवार देर रात ही हेलीपैड बनाया गया।
साधारण घटना नहीं है यह
समाजिक विशलेषक हो या फिर राजनीतिक विशलेषक दोनों ही इसे साधारण घटना नहीं मान रहे हैं। कुछ दिन पहले दलित मूल के जस्टिस बी.आर. गवई पर जूता फेंककर हमला हुआ और अब देश की पहली आदिवासी और दलित पृष्ठभूमि से आने वाली महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सुरक्षा में ऐसी चूक सामने आई जिसने पूरे तंत्र की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा कर दिया। शुक्रयह रहा कि कोई अनहोनी नहीं हुई लेकिन घटना ने दिखा दिया कि इस देश में पद भले ऊंचा हो पर अस्मिता अब भी असुरक्षित है। यह दोनों घटनाएंप्रतीक हैं उस गहरी खाई की जो आज भी संवैधानिक समानता और सामाजिक वास्तविकता के बीच पसरी हुई है। एक तरफ देश कहता है कि उसने दलितों और आदिवासियों को सर्वोच्च पदों तक पहुंचाया है लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं प्रतीकों की सुरक्षा गरिमा और सम्मान को लेकर लापरवाही हर स्तर पर दिखती है। जब देश की राष्ट्रपति का हैलीपैड धंस जाए और जस्टिस गवई जैसे व्यक्ति पर अदालत में हमला हो जाए तो यह केवल घटनाएं नहीं रहतीं यह मानसिकता की एक्सरे रिपोर्ट बन जाती हैं।
कंक्रीट में धस गये पहिए
राष्ट्रपति का हेलीकॉप्टर जैसे ही लैंड हुआ उसके पहिए गीले कंक्रीट में धंस गए। हालांकि सुरक्षा अधिकारियों और ग्राउंड स्टाफ ने तुरंत एक्शन लेकर स्थिति को संभाल लिया। बाद में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपने निर्धारित कार्यक्रम के तहत सबरीमाला मंदिर के लिए रवाना हुईं। राष्ट्रपति मुर्मू चार दिवसीय केरल यात्रा पर हैं राष्ट्रपति मुर्मू सबरीमाला मंदिर में दर्शन और आरती करेंगी। राष्ट्रपति कल तिरुवनंतपुरम में पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन की प्रतिमा का अनावरण करेंगी। इसके बाद वे वर्खला स्थित शिवगिरी मठ में आयोजित श्री नारायण गुरु की महासमाधि शताब्दी समारोह के उद्घाटन में शामिल होंगी। बाद में वे सेंट थॉमस कॉलेज, पलई के प्लैटिनम जुबली (75वीं वर्षगांठ) के समापन में भी शामिल होंगी। 24 अक्टूबर को राष्ट्रपति सेंट टेरेसा कॉलेज, एर्नाकुलम की शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगी।
सत्ता मौन, लोकतंत्र के लिए खतरा
सत्ता का यह मौन लोकतंत्र की सबसे खतरनाक भाषा है क्योंकि जब सत्ता बोलना बंद कर देती है तो व्यवस्था का भेद खुलने लगता है। प्रेसीडेंट द्रौपदी मुर्मू का हेलीकॉप्टर हादसा सिर्फ एक प्रशासनिक लापरवाही नहीं बल्कि उस धंसती हुई संवैधानिक जिम्मेदारी का प्रतीक है जिसमें दलित अस्मिता धीरे-धीरे जमीन खो रही है। और जस्टिस गवई पर हुआ हमला उस मानसिकता का परिचायक है जो अब भी दलित को शक्ति का नहीं शिष्टाचार का पात्र मानती है। भारत की नई राजनीति चाहे जितना भी कहे कि यह नया भारत है लेकिन ये दोनों घटनाएं एक पुराना सवाल फिर से जगा देती हैं कि क्या इस देश में दलित अब भी सिर्फ प्रतीक हैं या वास्तव में समान नागरिक?
दलित होना राजनीतिक जोखिम!
रिपोर्ट साफ कहती है कि भारत में दलित होना आज भी एक राजनीतिक जोखिम है। चाहे आप गांव की चौपाल में हों या दिल्ली के राइसिना हिल पर। दलितों को सत्ता की ऊंचाई तो दे दी गई है मगर सुरक्षा की जमीन अब भी कमजोर है। इससे भी ज्यादा विडंबना यह है कि देश की राजनीति जो हर चुनाव में दलित सम्मान का शोर मचाती है इन घटनाओं पर असहज चुप्पी साधे बैठी है। न सरकार में बैठे नेता इसे गंभीर सुरक्षा चूक के रूप में ले रहे हैं और न विपक्ष इसे दलित अस्मिता पर हमला मानने को तैयार है।




