अपराधी भी बनते हैं वोटों के अधार!

यूपी में बुलडोजर पर सियासत

  • राजनीति से सुधरती है छवि
  • अतीक, फूलन, हरिशंकर सब ने लांघी सदन की चौखट

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। आज काल यूपी में बुलडोजर और माफिया दो शब्द हर आम व खास की जुबान पर चढ़ा हुआ है। प्रयागराज के दबंग अतीक अहमद इन शब्दों के पीछे मुख्य किरदार की भूमिका में है। अतीक के नाम की चर्चा इसलिए हो रही है क्योकि उनका नाम उमेश पाल की हहत्या में आ रहा है। उमेश पाल बसपा विधायक राजूपाल हत्याकांड के मुख्य गवाह थे। उमेश पाल की हत्या का मामला यूपी के विधान सभा में उठा था । जिसकी बहस में सीएम योगी व नेता विपक्ष अखिलेश में तीखी नोक-झोंक भी हुई थी। सदन में योगी ने माफिया को मिट्टी में मिलाने की बात की थी, उसी के मद्देनजर अतीक व उसके करीबियों के घरों पर बलडोजर की कार्रवाई की जा रही है। इस तरह के कार्रवाई राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण भी होते हैं। कुछ साल पहले तक कई अपराधी किस्म के वांछित लोग राजनैतिक दलों के समर्थन से लोक सभा व राज्य विधान सभाओं में पहुंचकर अपनी छवि जनता बीच में अच्छी कर लेते थे।
कभी-कभी अपराधी अपने जाति या संप्रदाय में रॉबिन हुड की छवि कायम करने के लिए उदार तौर-तरीके अपनाते रहे हैं। राजनीतिक दल वोट बैंक साधने के लिए गैंगेस्टर, माफिया और डकैतों का इस्तेमाल करते रहे हैं। गौ तस्करी के आरोपियों की निर्मम हत्या के प्रमुख आरोपी मोनू मनेसर सहित अन्य आरोपियों के मामले में भी यही हुआ। मोनू मनेसर के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए। जिनमें वह हथियारों का प्रदर्शन करता नजर आता है। इसके अलावा उसके नेताओं के साथ फोटो भी सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। मोनू की गिरफ्तारी नहीं हो, इसके लिए महापंचायत ने फैसला लिया। भिवानी के लोहारू में दो लोगों की बोलेरो के अंदर जली हुई लाश मिली थी। दोनों के गौ तस्कर होने का शक जताया गया था। भिवानी में मोनू के समर्थन में महापंचायत की गई और इस महापंचायत में राजस्थान पुलिस को यह धमकी दी गई कि वह गांव में कदम तक न रखें। इसमें कहा गया कि यदि पुलिस ने मोनू मानेसर के खिलाफ किसी भी तरह का एक्शन लिया तो पुलिस अपने पैरों पर वापस नहीं जा पाएगी। महापंचायत में मोनू मानेसर को हिंदुओं का हितैषी बताया गया।

अपराधियों पर भिड़े दो राज्य

इस मुद्दे पर हरियाणा और राजस्थान की पुलिस आमने-सामने आ गई। दोनों राज्यों में अलग दलों की सरकारें हैं। राजस्थान में यह चुनावी साल है। ऐसे में दोनों सरकारों का यही प्रयास है कि मृतकों और उनके आरोपियों के मामले में एक-दूसरे को दोषी ठहरा कर क्षेत्रीय और जातिगत वोट बैंक को मजबूत किया जाए कुख्यात अपराधियों का जाति-संप्रदाय और क्षेत्र विशेष का सहारा लेने का पुराना इतिहास रहा है। राजनीतिक दल इसका फायदा वोट बैंक के लिए उठाते रहे हैं। जाति और संप्रदायों ने गैंगेस्टर, माफियाओं और यहां तक की चंबल के डकैतों तक को शरण प्रदान की है। डकैत चाहे चंबल के रहे हों या फिर शहरों में रहने वाले अपराधी हों, सबने अपनी-अपनी जातियों, संप्रदाय और क्षेत्रीयता को अपने बचाव की ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया है। इस तरीके के महिमामंडन में अपराधी अपने जाति या संप्रदाय में रॉबिन हुड की छवि कायम करने के लिए उदार तौर-तरीके अपनाते रहे हैं। दस्यु सुंदरी रही फूलन देवी ने अपने साथ हुई ज्यादती का बदला सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने के बाद अपनी जाति में ऐसी ही छवि बनाई थी। इतना ही नहीं फूलन देवी को इसका राजनीतिक फायदा भी मिला। समाजवादी पार्टी की टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ कर जीत तक हासिल कर ली। अपराधों को जातिगत आधार बनाने की कीमत भी फूलन को चुकानी पड़ी। दूसरी जाति से दुश्मनी के कारण फूलन देवी की हत्या हो गई।

राजनीति को माफिया, सरगनाओं और डकैतों ने बनाया मोहरा

माफिया, सरगनाओं और चंबल के डकैतों ने भी राजनीतिक दलों को मोहरा बनाया है। ऐसे कुख्यात अपराधियों का अपराध का ही नहीं बल्कि राजनीति का भी लंबा इतिहास रहा है। जिसकी आड़ में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई न हो सके। अपने काले कारनामों पर लारेंस विश्नोई, आनंद पाल, मोनू मानेसर, मुख्तार अंसारी और लवली आनंद जैसे अपराधियों ने जाति के सहारा लेकर अपराधों के काले कारनामों को गौरवान्वित करने का प्रयास किया है। ऐसे अपराधी अपनी रॉबिन हुड की छवि को बनाने का प्रयास करते हैं। जाति के अलावा इसमें यदि सांप्रदायिक रंग भी मिल जाए तो अपराधी को बचने के लिए एक मजबूत सहारा मिल जाता है। राजनीतिक दलों के लिए ऐसे अपराधी वोट जुटाने और सांप्रदायिक आधार पर वोटों को ध्रुवीकरण करने का काम करते हैं। जातिगत शरण लेने वाले अपराधी का आधार सिर्फ अपनी जाति तक सीमित रहता है, जबकि अपराध के बाद सांप्रदायिक आधार पर बांटने से अपराधी के राजनेता बनने के रास्ते भी खुल जाते हैं। राजनीति का चोला पहन कर सांप्रदायिक घटनाओं को अंजाम देना ज्यादा आसान होता है। बिहार और उत्तर प्रदेश में कुख्यात माफिया लंबे अर्से तक राजनीतिक कवच की आड़ में अपराधों की सजा से बचते रहे हैं। हालांकि अब दोनों राज्यों की स्थिति में सुधार है। उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार ने मुख्तार अंसार सहित दूसरे माफिया और गैंगस्टर को सलाखों की पीछे भेजने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। इतना ही नहीं ऐसे अपराधियों की सम्पत्ति कुर्क करने और अतिक्रमण को ढहाने को भी अंजाम दिया गया, ताकि दूसरे अपराधी भी इससे सबक सीख सकें। ऐसा ही बिहार में माफियाओं के साथ किया गया। माफियाओं को इस बात का बखूबी एहसास कराया गया कि जाति, धर्म और क्षेत्र की आड़ लेकर अपराधों पर पर्दा डालना आसान नहीं है।

कुख्यातों की छवि भुनाने में जुटे नेता

इसके बावजूद राजनीतिक दल ऐसे कुख्यात अपराधियों की छवि भुनाने में पीछे नहीं हैं। मुख्तार अंसारी के मामले में एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी योगी सरकार पर संप्रदाय के आधार पर कार्रवाई करने का आरोप लगा कर अल्पसंख्यकों का वोट बैंक रिझाने का प्रयास करते रहे हैं। ऐसे दुर्दांत अपराधियों के मामले में पुलिस की हालत कठपुतली की तरह होती है। पुलिस राज्यों सरकारों के अधीन काम करती है। पुलिस की कार्रवाई राज्य सरकार की मंशा के बगैर नहीं हो सकती। इसका बड़ा उदाहरण उत्तर प्रदेश है। उत्तर प्रदेश की पुलिस कई कुख्यात बदमाशों और माफियाओं को ढेर कर दिया। इतना ही नहीं पुलिस ने अपना इकबाल इस कदर कायम किया कि कुछ बदमाशों ने तो जमानत पर जेल से रिहा होने तक से इंकार कर दिया कि, कहीं पुलिस उनका एनकाउन्टर नहीं कर दे। पुलिस में यह साहस आया सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण। यही पुलिस समाजवादी और बहुजन समाजवादी पार्टी के सत्ता में रहने पर कुछ नहीं कर पाई। इससे जाहिर है कि जब तक पुलिस को अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी स्वायत्तात नहीं मिलेगी तब तक पुलिस अपनी वर्दी का खौफ अपराधियों में पैदा नहीं कर पाएगी।

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