सरकार को चुनौती नहीं स्वीकार कुछ बोले तो हो जाओगे गिरफ्तार

  • खुल गयी 26 साल पुरानी फाइल, भेजे गये जेल
  • कफ सीरप मामले में अमिताभ ठाकुर लगातार उठा रहे थे सवाल
  • योगी सरकार से अपनी जान को खतरा बताया पूर्व अईपीएस अफसर ठाकुर ने चलती ट्रेन से पुलिस ने उठाया

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। जो सरकार को चुनौती देगा उसकी पुरानी फाइलें खुल सकती हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को चलती ट्रेन से गिरफ्तार कर उनकी 26 वर्ष पुरानी एक तथाकथित आवंटन फाइल को खोल दिया गया है।
अमिताभ ठाकुर फिलवक्त कफ सीरप मामले में सरकार को बेचैन कर रहे थे। इससे पहले भी वह योगी सरकार में जेल की हवा खा चुके हैं है। कोर्ट में पेशी के बाद कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। उन पर आरोप है कि एसपी देवरिया रहते हुए उन्होंने गलत तरीके से औद्योगिक प्लाट का अवांटन अपनी पत्नी के नाम करवा लिया था।

बहुत से सफेदपोशों के गर्दन तक पहुंच रहा फंदा

कफ सिरप घोटाले ने कई बड़े दफ्तरों में कंपकंपी ला दी थी। कोडीन की महक से लेकर सफेद कोट वाले दरबारियों तक—पूरा सिस्टम सवालों के घेरे में आ गया। सरकार और पुलिस-स्वास्थ्य गठजोड़ की मिलीभगत पर ठाकुर ने जिस स्तर पर सवाल उठाए वो सीधे सत्ता के गले की हड्डी बन गए। कफ सिरप माफिया पर उनका हमला किसी लोकल बाबू पर नहीं था। वह उन अदृश्य चेहरों को उजागर कर रहा था जिनकी गाडिय़ों पर लालबत्ती नहीं होती लेकिन फैसलों पर उनकी मुहर होती है। ठाकुर के सवाल इतनी तेज आवाज में उठे कि स्वास्थ्य विभाग को अपने ही कर्मचारियों की जांच करनी पड़ी। पुलिस लाइन से लेकर विभागीय दफ्तरों तक बेचैनी फैल गई। और बेचैनी जब सत्ता तक पहुंचती है तो वो दो ही काम करती है। या तो सुधार या बदला। इस बार सुधार कम और बदले का तड़का ज्यादा पड़ा।

कफ सिरप मामले में कूदना पड़ा महंगा

उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध स्मगलिंग, बड़े पैमाने पर नशाखोरी और मेडिकल माफिया पर गंभीर आरोप सामने आए थे। बड़े फार्मा डिस्ट्रीब्यूटर्स, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी/कर्मचारियों के साथ राजनीतिक संरक्षण इस पूरे धंधे में शामिल बताया गयां। पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने इस मामले में सोशल मीडिया प्रेस और आरटीआई का इस्तेमाल करते हुए लगातार सवाल उठाए। उनके उठाये गये सवाल कि किसके संरक्षण में कोडीन वाली दवाइयां खुलेआम बिक रहीं? बड़े रैकेट को क्यों बचाया जा रहा है? एफआईआर के नाम पर केवल छोटे दवाइयों के दुकानदारों पर ही कार्रवाई क्यों की जा रही है। उनकी पोस्टें और बयानों ने सरकार को असहज किया क्योंकि मामला सीधे स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और राजनीतिक संरक्षण की तिकड़ी पर सवाल खड़े कर रहा था। मामला मीडिया में उठने लगा बात हाईकोर्ट तक पहुंची और ठाकुर बार-बार कफ सिरप माफिया शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। नतीजा सरकार को मजबूर होकर बड़े स्तर पर छापेमारी, सस्पेंशन और ट्रांसफर करने पड़े। यह बात कई अधिकारियों को रास नहीं आई और अमिताभ ठाकुर पर अचानक 26 साल पुराना केस एक्टिव हो गया।

उनकी आवाज को दबाने के लिए फंसाया जा रहा है : नूतन ठाकुर

अमिताभ ठाकुर ने मीडिया से चिल्ला कर कहा है कि उनकी जान को खतरा है। उनकी पत्नी नूतन ठाकुर का कहना है कि अमिताभ ठाकुर के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ लगा है और उनकी आवाज को दबाने के लिए फंसाया जा रहा है।

पेंशन से नहीं सवालों से जिंदा रहते हैं अमिताभ ठाकुर

अमिताभ ठाकुर कोई साधारण अफसर नहीं थे। वो सिस्टम के खिलाफ खड़े होने वाले दुर्लभ लोगों में से एक हैं। जो रिटायरमेंट के बाद पेंशन से नहीं सवालों से जिंदा रहते हैं। लेकिन इस देश में सवाल पूछना सबसे महंगा शौक है। और जब सवाल कफ सिरप माफिया जैसे करोड़ों की मलाई खाने वाले नेटवर्क पर उठे तो उसकी कीमत पुरानी फाइलों में ब्याज सहित चुकानी पड़ती है। ठाकुर का अपराध यह नहीं कि उन्होंने 1999 में प्लॉट लिया था। उनका अपराध यह है कि उन्होंने 2025 में कफ सिरप घोटाले को उजागर करने की हिम्मत दिखाई। विपक्ष का दर्द भी यही है कि जिसे वह मुद्दा बनाना चाहता है सरकार उसे चुप कराने का तरीका ढूंढ लेती है। और सत्ता का दर्द यह है कि ठाकुर जैसे लोग हर बार अनकंफर्टेबल सच सामने रख देते हैं। आज की गिरफ्तारी लोकतंत्र के माथे पर एक बड़ा सवाल है कि क्या कफ सिरप में कोडीन अधिक था या सत्ता की नसों में अहंकार?

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