130वें संविधान संशोधन विधेयक पर ममता बनर्जी का तीखा हमला, कहा- यह लोकतंत्र का अंत है

ममता बनर्जी ने लिखा, “मैं भारत सरकार द्वारा आज पेश किए जाने वाले 130वें संविधान संशोधन विधेयक की निंदा करती हूं.,

4पीएम न्यूज नेटवर्क: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संसद में पेश 130वें संविधान संशोधन विधेयक की कड़ी निंदा की है. उन्होंने इसे लोकतंत्र विरोधी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाला बताया है.

ममता बनर्जी का मानना है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तियां प्रदान करता है और संघीय ढांचे को नष्ट करता है. उन्होंने इस विधेयक को ‘एक व्यक्ति, एक पार्टी, एक सरकार’ की ओर ले जाने वाला कदम बताया है और जनता से इसका विरोध करने का आह्वान किया है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संसद में पेश किये गये 130वां संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध किया है. उन्होंने सोशल साइट एक्स पर ट्वीट कर कहा कि यह न्याय व्यवस्था कमजोर कर वन मैन-वन पार्टी, वन गवर्मेंट की तैयारी है. ममता बनर्जी ने लिखा, “मैं भारत सरकार द्वारा आज पेश किए जाने वाले 130वें संविधान संशोधन विधेयक की निंदा करती हूं., मैं इसे एक ऐसे कदम के रूप में निंदा करती हूं जो एक महा-आपातकाल से भी बढ़कर है, यह भारत के लोकतांत्रिक युग को हमेशा के लिए समाप्त करने वाला कदम है.

यह कठोर कदम भारत में लोकतंत्र और संघवाद के लिए मृत्यु-घंटी है. उन्होंने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के नाम पर भारतीय नागरिकों के मताधिकार का दमन करने के लिए, यह केंद्र द्वारा उठाया गया एक और अति-कठोर कदम है. ममता बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक अब हमारी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को समाप्त करना चाहता है. हम जो देख रहे हैं वह अभूतपूर्व है – यह विधेयक भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर एक हिटलरी हमले से कम नहीं है.

न्यायपालिका को उसकी भूमिका से वंचित करना है
उन्होंने कहा कि यह विधेयक न्यायपालिका को उसकी संवैधानिक भूमिका से वंचित करना चाहता है – न्याय और संघीय संतुलन के मूल में स्थित मामलों पर निर्णय लेने की न्यायालयों की शक्ति को छीनना चाहता है. पक्षपातपूर्ण हाथों में ऐसी शक्तियां सौंपकर, यह विधेयक लोकतंत्र को विकृत करता है.

उन्होंने कहा कि यह कोई सुधार नहीं है. यह प्रतिगमन है – एक ऐसी व्यवस्था की ओर जहां कानून अब स्वतंत्र न्यायालयों के हाथों में नहीं, बल्कि निहित स्वार्थों के हाथों में है. यह एक ऐसा शासन स्थापित करने का एक भयावह प्रयास है, जहां न्यायिक जांच को दबा दिया जाता है, संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्वस्त कर दिया जाता है और लोगों के अधिकारों को कुचला जाता है. यह उसी मानसिकता की बू आती है जिसकी दुनिया ने 20वीं सदी के सबसे काले दौर में निंदा की थी.

उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि न्यायालय को कमजोर करना जनता को कमजोर करना है. उन्हें न्याय पाने के अधिकार से वंचित करना, उन्हें लोकतंत्र से वंचित करना है, यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे – संघवाद, शक्तियों का पृथक्करण और न्यायिक समीक्षा – पर प्रहार करता है – ऐसे सिद्धांत जिन्हें संसद भी रद्द नहीं कर सकती, अगर इसे पारित होने दिया गया, तो यह भारत में संवैधानिक शासन के लिए मृत्युदंड होगा.

उन्होंने कहा कि हमें इस खतरनाक अतिक्रमण का विरोध करना होगा. हमारा संविधान अस्थायी सत्ताधारियों की संपत्ति नहीं है. यह भारत के लोगों का है. इस विधेयक का उद्देश्य एक व्यक्ति-एक दल-एक सरकार की व्यवस्था को सुदृढ़ करना है. यह विधेयक संविधान के मूल ढांचे को कुचलता है,

उन्होंने कहा कि यह विधेयक केंद्र सरकार को जनादेश में दखलंदाजी करने का अधिकार देता है, और अनिर्वाचित प्राधिकारियों (ईडी, सीबीआई-जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पिंजरे में बंद तोते’ कहा है) को निर्वाचित राज्य सरकारों के कामकाज में हस्तक्षेप करने के लिए व्यापक अधिकार प्रदान करता है., यह हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों की कीमत पर प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को एक भयावह तरीके से सशक्त बनाने का एक कदम है, उन्होंने कहा कि इस विधेयक का हर कीमत पर विरोध किया जाना चाहिए! इस समय लोकतंत्र को बचाना होगा! जनता अपनी अदालतों, अपने अधिकारों और अपने लोकतंत्र को छीनने के किसी भी प्रयास को माफ नहीं करेगी.

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