भागलपुर दंगे के जख्मों को कुरेद कर नीतीश ने किया हरा, बिहार में बिगड़ न जाए कहीं महागठबंधन का फॉर्मूला
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पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव आठ महीने के बाद है, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. पीएम मोदी ने सोमवार को बिहार को सौगात से नवाजते हुए विकास और सुशासन पर फोकस करते हुए हिंदुत्व का एजेंडा सेट किया. वहीं, सीएम नीतीश कुमार ने भागलपुर दंगे के जख्मों को कुरेद कर फिर से हरा दिया. यही नहीं नीतीश ने आरजेडी-कांग्रेस के अगुवाई वाले महागठबंधन को कठघरे में खड़े करते हुए कहा कि उनसे पहले बिहार की सत्ता में रहे लोगों ने मुसलमानों के वोट तो लिए, लेकिन हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा भी कराते थे. सांप्रदायिक झगड़े को रोकने में असफल रहे.
बता दें कि साढ़े तीन दशक पहले अक्टूबर 1989 में बिहार के भागलपुर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसमें करीब एक हजार लोगों की जान चली गई थी. इस दंगे ने बिहार की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया था. दंगे का सियासी असर ऐसा पड़ा कि मुस्लिम समुदाय के लोग कांग्रेस से दूर हो गए और जनता दल के करीब आए. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने सत्ता की कमान संभाली तो उन्होंने मुस्लिमों समाज को अपने कोर वोट बनाकर रखा, लेकिन भागलपुर दंगे के जख्मों पर मरहम लगाने काम नीतीश कुमार ने किया. यही वजह है कि नीतीश कुमार खुलकर भागलपुर दंगे का जिक्र अपनी रैलियों में करते हैं.
सीएम नीतीश कुमार ने सोमवार को भागलपुर में पीएम मोदी की मौजूदगी में भागलपुर दंगे का जिक्र कर मुस्लिमों को सियासी संदेश देने के साथ-साथ आरजेडी और कांग्रेस के अगुवाई वाले महागठबंधन को कठघरे में खड़ा करने का काम किया. नीतीश कुमार ने कहा कि हम लोग सत्ता में 24 नवंबर 2005 को आए. उसके बाद ही भागलपुर दंगे के पीडि़तों को इंसाफ मिला है. हमसे पहले की सरकारें मुस्लिमों का वोट लेती थीं और हिंदू-मुस्लिम के झगड़े होते रहते थे. भागलपुर दंगे के मामले में उन्होंने (लालू-राबड़ी-कांग्रेस) कुछ नहीं किया, लेकिन जब हमारी सरकार बनी तो हमने आयोग बनाकर पूरे मामले की जांच करवाई.
नीतीश कुमार ने भागलपुर दंगों में शामिल लोगों के मुकदमे और सजा को भी गिनाते रहे हैं. उनका यह तर्क रहा है कि 1990 में सत्ता में आई आरजेडी के 15 साल के शासन के दौरान दोषियों को सजा नहीं मिली, क्योंकि आरोपी पार्टी के समर्थक थे. नीतीश कुमार ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के लिए लोग बात करते हैं और वोट लेते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं करता है बल्कि हिंदू-मुस्लिम के झगड़े कराते हैं.
नीतीश कुमार यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी लालू यादव-राबड़ी यादव और कांग्रेस से ज्यादा मुसलमानों के हितों का ख्याल रखते हैं. उनकी सरकार में ही भागलपुर दंगे के लिए आयोग बनाकर मामले की जांच कराई गई. इसके बाद मृतक आश्रित को पहले 2500 और अब 5000 पेंशन राशि देने का काम किया और दंगा पीडि़तों के मकानों की क्षतिपूर्ति की गई. इस तरह से उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भागलपुर का दंगा पीडि़तों के लिए लालू यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल में कोई मदद नहीं की गई, लेकिन उनकी सरकार ने पीडि़तों के जख्मों पर मरहम लगाने का ही नहीं बल्कि आरोपियों को सजा भी दिलाने का काम करके दिखाया है.
आरजेडी-कांग्रेस की क्या मुश्किलें बढ़ेगी?
बिहार में कांग्रेस के शासनकाल में 1989 में भागलपुर दंगा हुआ था. इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1000 लोग मारे गए थे. बिहार में 15 साल तक लालू यादव और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन भागलपुर दंगे को लेकर कोई कदम नहीं उठाया. इसके पीछे वजह यह मानी गई कि भागलपुर दंगे के आरोपियों की फेहरिस्त में काफी संख्या में यादव समुदाय के लोग शामिल थे, जिसके चलते लालू यादव ने इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर रखा था.ऐसे में नीतीश कुमार ने बिहार में पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही भागलपुर दंगे की जांच के लिए आयोग का गठन किया. आयोग की तमाम सिफारिशों को सीएम नीतीश ने स्वीकार किया था और दोषियों की सजा दिलाई.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार भागलपुर दंगे का जिक्र इसीलिए कर रहे हैं, क्योंकि आरजेडी और कांग्रेस इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने की हैसियत में नहीं है. आरजेडी और कांग्रेस एक साथ खड़ी है. भागलपुर का दंगा बिहार के बुजुर्गों मुसलमानों के दिमाग में आज भी है, जिसके खातिर नीतीश कुमार बार-बार याद दिला रहे हैं कि बीजेपी के साथ रहते हुए भी मुस्लिम के हक में काम करने में पीछे नहीं हैं. इसके साथ ही जिस तरह से उन्होंने कहा कि आरजेडी और कांग्रेस सिर्फ मुस्लिमों का वोट लेते हैं, लेकिन सांप्रदायिक दंगे को रोकने का काम नहीं करते हैं, इस तरह भी मुस्लिमों को अपने साथ जोडऩे की स्ट्रैटेजी है.
बिहार में मुस्लिम वोटों का सियासी गणित
बिहार में 17 फीसदी मुस्लिम मतदाता है, जो 50 से ज्यादा विधानसभा सीट पर सियासी दलों का खेल बनाने और बिगाडऩे की ताकत रखते हैं. मुस्लिम कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है, लेकिन लालू यादव के राजनीतिक उद्भव के बाद आरजेडी के साथ जुड़ गया. साल 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद मुस्लिमों का एक तबका जेडीयू के साथ भी जुड़ा. 2005 से लेकर 2010 तक के चुनाव में नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं कि उन्हें मुस्लिम वोट करते रहे हैं. इतना ही नहीं उनकी वजह से बीजेपी के उम्मीदवारों को भी मुस्लिम वोट मिलता रहा.
2015 में जब नीतीश ने लालू प्रसाद के साथ हाथ मिला लिया तब तो मुसलमानों ने उनकी पार्टी को भरपूर समर्थन दिया, लेकिन बात तब बिगड़ी जब नीतीश कुमार ने आरजेडी से अलग होकर 2017 में बीजेपी से दोबारा हाथ मिलाया. इसके बाद से मुस्लिम समाज ने नीतीश से दूरी बना ली. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मुसलमानों ने जेडीयू को वोट नहीं ही दिया, जिसके चलते जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गई थी.
मुस्लिम वोटों को साधने का जेडीयू दांव
नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ जाना बिहार के मुस्लिमों को रास नहीं आ रहा है. बीजेपी के साथ तीसरी बार हाथ मिलाने के बाद से नीतीश कुमार को मुस्लिम वोटों को लेकर चिंतित है. इसीलिए मुस्लिम समुदाय को साधने की कवायद में ही भागलपुर दंगे का जिक्र करके यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो मुस्लिम समाज के कितने बड़े हमदर्द हैं. लालू यादव और कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम हमदर्दी का दिखावा करती है, न ही उन्होंने दंगा रोका और न ही इंसाफ दिया.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के लोगों को लगता है कि मुस्लिम समुदाय न केवल बीजेपी उम्मीदवारों को वोट देगा बल्कि जेडीयू समेत एनडीए के अन्य सहयोगी दलों के उम्मीदवारों से भी दूरी बनाए रखेगा. बिहार में मुस्लिम वोट महागठबंधन के पक्ष में एकजुट नजर आ रहा है, जिसका एहसास नीतीश कुमार को हो गया है. उन्हें लग रहा है कि मुस्लिम समुदाय उनके बीजेपी के साथ मिल जाने के कारण छिटक सकता है. इसलिए नीतीश ज्यादा चिंतित हैं और अशांकित दिख रहे हैं. भागलपुर दंगे के बहाने मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने की कवायद में है. ऐसे में देखना है कि नीतीश कुमार की कोशिश क्या सियासी रंग लाती है?