हिंदी भाषा को लेकर ठाकरे बंधुओं का विरोध, इतिहास की अनदेखी?
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। ठाकरे बंधु हिंदी के प्रचार-प्रसार पर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं।

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। ठाकरे बंधु हिंदी के प्रचार-प्रसार पर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। उनका मानना है कि हिंदी के बढ़ते प्रभाव से मराठी भाषा और संस्कृति को खतरा है। परंतु क्या वे यह भूल रहे हैं कि हिंदी की जड़ें महाराष्ट्र में भी मौजूद रही हैं?
इतिहासकारों का मानना है कि मराठा स्वाभिमान के प्रतीक छत्रपति शिवाजी महाराज ने न केवल मराठी, बल्कि हिंदी भाषा का भी समर्थन और संरक्षण किया था। वहीं, आज़ादी के आंदोलन के अग्रणी नेता और महात्मा गांधी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले भी हिंदी को पूरे देश की संपर्क भाषा बनाने के पक्षधर थे। बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था।
हिंदी बनाम अन्य भाषाएं: क्या है भारत का भाषाई परिदृश्य
भारत दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या के लिहाज़ से चीन के बाद दूसरा स्थान रखता है। भाषाई विविधता इस देश की पहचान है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को स्थान दिया गया है, जिन्हें “राष्ट्रीय भाषाएं” कहा जाता है। राजकीय कार्यों के लिए हिंदी (देवनागरी लिपि में) और अंग्रेज़ी (रोमन लिपि में) को “राजभाषा” का दर्जा प्राप्त है। देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में भाषाई विविधता अत्यधिक व्यापक है। भारत की 78.05% जनसंख्या इंडो-आर्यन भाषाएं बोलती है, जबकि 19.64% लोग द्रविड़ भाषाओं का प्रयोग करते हैं। शेष लोग आस्ट्रो-एशियाटिक और सिनो-तिब्बती भाषाओं से जुड़े हैं।
भाषा के नाम पर बढ़ते मतभेद
हालाँकि, इंडो-आर्यन भाषाएं बोलने वालों की संख्या अधिक है, लेकिन इनके बीच भी एकरूपता का अभाव देखा जाता है। हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजराती, पंजाबी जैसी भाषाओं के बीच भी आपसी खींचतान बनी रहती है। क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर कई बार हिंदी को टारगेट किया जाता है।
मराठी अस्मिता और भाषा
महाराष्ट्र में मराठी पहचान को लेकर आंदोलन होते रहे हैं. शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने नौकरियों से दक्षिण भारतीयों को बाहर करने का अभियान चलाया था. उनके भतीजे राज ठाकरे ने 9 मार्च 2006 को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का गठन कर मुंबई से उत्तर भारतीयों को खदेड़ने का आंदोलन चलाया था. इसके पहले भी भाषा को लेकर भी महाराष्ट्र में आंदोलन चले. जब भाषायी आधार पर राज्य बने तब बम्बई राज्य में गुजराती और राजस्थानी व्यापारी तथा उत्तर प्रदेश के मजदूर बहुत अधिक थे. मराठी भाषी लोगों की उग्रता को देखते हुए विदर्भ, बरार और बम्बई को मिलाकर महाराष्ट्र राज्य बनाया गया. इसके बाद भी मराठी भाषियों का कहना था कि कर्नाटक के धारवाड़ इलाके में मराठी बोली जाती है इसलिए उसे भी महाराष्ट्र में शामिल किया जाए.
महाराष्ट्र से ही हिंदी हुई सम्मानित
महाराष्ट्र में हिंदी के विरोध में राज ठाकरे के तेवर तीखे रहे हैं. किंतु इस बार शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट भी उनके साथ है. शरद पवार की एनसीपी भी उन्हें समर्थन दे रही है. यद्यपि कांग्रेस मौन है और शनिवार (5 जुलाई) को मुंबई के वर्ली इलाके में हुई रैली से शरद पवार ने भी दूरी बनाई. इसके अलावा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कक्षा पांच तक हिंदी अनिवार्य रखने के अपने निर्णय को भी वापस ले लिया है.
फिर भी ठाकरे बंधु हिंदी को ले कर आक्रामक हैं. वे भूल जाते हैं कि जिस हिंदी भाषा का विरोध वे कर रहे हैं, उसकी जड़ें महाराष्ट्र में ही हैं. मराठा अस्मिता की नींव रखने वाले शिवाजी महाराज ने हिंदी का पोषण किया था. उन्होंने अपने दरबार के कवि भूषण को इतना अधिक सम्मान दिया था कि एक बार वे बोल उठे- शिवा को सराहों कि सराहों छत्रसाल को!
शिवा को सराहों कि सराहों छत्रसाल को!
कवि भूषण जब शिवाजी महाराज से मिले तब शिवाजी इनकी वीर रस की कविताओं से बहुत अधिक प्रभावित हुए. शिवाजी का राज तिलक हुआ तो उस मौके पर भूषण की कविता इंद्र जिम जंभ पर बाड़व सुअम्ब पर रावण सदंभ पर रघुकुल राज है. पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है. दावा द्रुम दंड पर चीता मृग झुंड पर भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज है. तेज तम-अंस पर कान्ह जिम कंस पर यौं मलेच्छ-बंस पर सेर सिवराज है. का पाठ हुआ था.
श्याम बेनेगल ने अपने धारावाहिक भारत एक खोज में इसका उदाहरण दिया है. शिवाजी का यह राजकवि भूषण जब बुंदेलखंड आया तब पन्ना नरेश महाराज छत्रसाल ने उनकी पालकी को कंधा दिया. उस समय भूषण अभिभूत हो कर बोले- शिवा को सराहों कि सराहों छत्रसाल को!
तिलक ने हिंदी को देश का तिलक बताया था
आजादी की लड़ाई में बाल गंगाधर तिलक और गांधी जी के गुरु गोपाल कृष्ण गोखले भी हिंदी को ही पूरे देश के बीच प्रचलन की भाषा बनाने के समर्थक थे. दोनों का मानना था कि प्राथमिक स्तर पर हिंदी को अनिवार्य किया जाना चाहिए. तिलक तो पूरे देश में शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाना चाहते थे. उन्होंने हिंदी को पूरे भारत का तिलक कहा था.
गांधी जी ने पूरे देश में हिंदी के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए 17 जून 1918 को दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव रखी थी. गांधी जी इस सभा के आजीवन अध्यक्ष रहे. 1948 में उनकी मृत्यु के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष बने. उस दौरान दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र के लोगों के बीच हिंदी को लोकप्रिय बनाने में इस संस्था का योगदान भुलाया नहीं जा सकता.
पूरे विश्व में हिंदी लगभग सौ करोड़ लोग बोल लेते होंगे. भले वे अपनी यह बोली देवनागरी में लिख न पाते हों. भारत के बाहर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी, नेपाली हिंदी ही बोलते हैं. हिंदी में रील और टिक-टाक बनाते हैं. ऐसी हिंदी को फलने-फूलने दिया जाए तो हिंदी चलेगी. हिंदी का मार्केट बहुत बड़ा है. बाकी ठाकरे बंधुओं का विरोध तो फिलहाल निकाय चुनाव में अपने झंडे गाड़ने तक सीमित है.



