पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की आहट

- बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष का दावा अप्रैल से पहले लग जाएगा बंगाल में राष्ट्रपति शासन
- विपक्ष में बैचेनी, एक सुर में बयान का विरोध
- एसआईआर के जरिये एक करोड़ लोगों के मतदाता सूची से नाम कटने का भी दावा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
कोलकाता। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया है कि अप्रैल से पहले बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा। इतना ही नहीं उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कालीघाट लौटना पड़ेगा। दिलीप घोष यही नहीं रूके हैं उन्होंने एसआईआर पर भी बेतुकी बात कही है। उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल में एसआईआर से एक करोड़ से ज्यादा मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से काट दिये जाएंगे तो ममता बनर्जी की पार्टी अपने आप चुनाव हार जाएगी। उनका यह बयान बिहार में चल रही राजनीतिक तूफान को और तेज कर सकता है। क्योंकि बिहार मे चुनाव आयोग पर प्रीप्लान तरीके से वोटर्स के नाम काटने का आरोप सियासी दल लगा रहे हैं। दिलीप घोष का यह बयान इस बात की तस्दीक करने के लिए काफी है कि क्या पहले से टारगेट कर लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाये जाते हैं। दिलीप घोष के इस बयान ने राज्य की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या वास्तव में केंद्र सरकार इतना बड़ा कदम उठा सकती है? क्या किसी राज्य की लोकतांत्रिक सरकार को इतनी आसानी से हटाकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है?
राजनीतिक हथियार या फिर हकीकत
संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन की बात सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई मामलों में कह चुका है कि केंद्र सरकार सिर्फ राजनीतिक कारणों से किसी राज्य की सरकार नहीं गिरा सकती। 1994 में एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। यानी यदि केंद्र बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाता है तो यह मामला सीधे अदालत में चुनौती बन जाएगा।
एसआईआर प्रक्रिया, आगे की राजनीति
दिलीप घोष ने आरोप लगाया कि टीएमसी एसआईआर प्रक्रिया से डरती है और यह उसके लिए करो या मरो का सवाल है। दरअसल घोष यह दिखाना चाहते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में धांधली रोकने और फर्जी वोट काटने की कार्रवाई से तृणमूल घबराई हुई है। लेकिन वास्तविकता यह है कि बंगाल में चुनाव आयोग और न्यायपालिका की सख्त निगरानी रहती है। हर वोट पर नजर होती है। ऐसे में करोड़ों वोटों का रद्द होना लगभग असंभव है। यह बयान जनता में असंतोष फैलाने और टीएमसी की छवि पर हमला करने का एक और राजनीतिक प्रयास के तौर पर माना जा रहा है।
कुछ दिन और चलने दीजिए
दिलीप घोष ने कहा कि पितृ पक्ष के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से दुर्गा पूजा पंडालों का उद्घाटन कर सारे नियम कायदे बदले जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि पूजा हो या न हो इस पर विवाद करने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि वे जो चाहेंगी करेंगी। उनका अलग पंचांग है इसीलिए ईद पर दो दिन की छुट्टी दी जाती है। उनका अलग कैलेंडर है उन्हें कुछ दिन और चलने दीजिए।
बंगाल अभी दीदी के साथ
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हलचल नई बात नहीं है। लेकिन दिलीप घोष का बयान महज एक राजनीतिक शिगूफा साबित होता दिख रहा है। संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति शासन लागू करना कठिन है। जनता के बीच ममता बनर्जी का समर्थन अब भी कायम है। भाजपा की बयानबाजी राज्य की राजनीति को गरम तो कर सकती है लेकिन सत्ता का गणित बदलने की स्थिति में नहीं है। बंगाल की जनता ने हमेशा अपने नेता को अंतिम समय तक समर्थन दिया है। और फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं है कि दीदी का किला ढह रहा है।




