तो रंग लाएगी अखिलेश की सक्रियता!

4पीएम की परिचर्चा में प्रबुद्घजनों ने किया मंथन

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। यूपी मेें जिस तरह घटनाएं सामने आ रही हैं। उसको लेकर लगातार सियासत जारी है। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव घटनाओं पर लगातार सक्रिय नजर आ रहे हैं। वे घटनास्थल पर पहुंचकर परिजनों से मुलाकात कर रहे हैं, लेकिन प्रियंका गांधी और मायावती एक्टिव नजर नहीं आ रही हैं। लोकसभा चुनाव में लगभग डेढ़ साल का वक्त बचा है। तो ऐसे में मायावती और प्रियंका के सक्रिय न होने के क्या कारण हैं। इस मुद्ïदे पर वरिष्ठï पत्रकार सुशील दुबे, सैयद कासिम, अनिल रॉयल, डॉ. राकेश पाठक, सपा प्रवक्ता अब्बास हैदर, डॉ. सुनीलम, डॉ. लक्ष्मण यादव और 4पीएम के संपादक संजय शर्मा ने एक लंबी परिचर्चा की।
सैयद कासिम ने कहा, प्रियंका ने यूपी चुनाव से सबक सीखा है कि अखिलेश ने पांच साल काम नहीं किया, इतनी अच्छी सीटें आ गयी तो अब समीकरण से ही उत्तर प्रदेश में काम बनेगा इस पर काम करें। मायावती चुनाव में ही एक्टिव होती है। यूपी चुनाव के बाद उनको अंदाजा हो गया कि जिलों से जो लोग आ रहे, वे खाली हाथ आ रहे। ऐसे में अब वे संगठन को मजबूती दे रही। योगी-अखिलेश एक ही तराजू पर है। अब यही दोनों चलेंगे। सुशील दुबे ने कहा विश्वास नहीं था कि प्रियंका का लड़की हूं लड़ सकती हूं नारा इस तरह फेल होगा। मायावती सड़क पर नहीं निकलेगी तो वोट बैंक और खत्म होगा। वहीं अखिलेश की सक्रियता रंग जरूर लाएगी।
डॉ. लक्ष्मण यादव ने कहा, एक जज को हमेशा तटस्थ नहीं रहना बल्कि उसे न्याय के पक्ष में ही रहना है। सपा और बसपा सड़क पर संघर्ष करके अपनी जगह बनायी थी। अपनी विरासत बनाई। यूपी चुनाव में जो भी दल हारे, इसकी वजह उन्हें तलाश करना चाहिए। किसी भी राजनीतिक दल को अपनी जमीन मजबूत करनी है तो सड़क पर उतरना ही होगा। संगठन के ढांचे को मजबूत करना ही होगा।
सपा प्रवक्ता अब्बास हैदर ने कहा कि हमारा काम है जनता की लड़ाई लड़े तो हमारे नेता अखिलेश वहीं कर रहे हैं। भाजपा राज में महंगाई ही नहीं, इनकी विचारधारा से भी लोग परेशान हैं। समाजवादी पार्टी को जो दायित्व जनता ने दिया है, अखिलेश उसे बखूबी निभा रहे हैं। बसपा और कांग्रेस जनता से कोसों दूर है। डॉ. सुनीलम ने कहा चुनाव परिणाम जब विपरीत आता है तो हारी हुई पार्टिर्यों में हताशा रहती हैं। कार्यकर्ता व नेताओं में भी मनोबल गिरता है। सफलता के कई आयाम और विफलता का कोई नहीं। अनिल रॉयल व डॉ. राकेश पाठक ने भी परिचर्चा में विचार रखे।

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