टाटा समूह में भ्रष्टाचार की लहर !
रतन टाटा के साम्राज्य में करोड़ों के खेल ने मचाया हड़कंप

- नोएल बनाम मिस्त्री विवाद पकड़ रहा है तूल
- नोएल ने मिस्त्री की वापसी पर खींच दी लकीर, कहा नामंजूर
- टाटा संस की सहायक कंपनियों के शेयरों में हल्की गिरावट दर्ज की गई है
- 10 अक्टूबर को तय हो जाएगा किसकी है टाटा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। भारत के सबसे सम्मानित औद्योगिक घराने टाटा समूह से तूफानी खबरें बाहर आ रही हैं। और इस बार तूफान का केंद्र है नोएल टाटा जिन्होंने मेहली मिस्त्री की बोर्ड में नियुक्ति का कड़ा विरोध जताया है। बाहर से सब कुछ सामान्य सा दिखता टाटा समूह के बोर्डरूम में असहमति के स्वर तेज हो रहे हैं।
यह सिर्फ बोर्डरूम की असहमति नहीं है बल्कि टाटा साम्राज्य की आत्मा में उठता वैचारिक कंपन है जहां भरोसे, वंश और पारदर्शिता के बीच अब नया द्वंद्व जन्म ले चुका है। इस लड़ाई की स्क्रिप्ट इससे आगे की लड़ाई के लिए लिखी जा रही है। क्योंकि नोएल टाटा ने एक डिप्टी एमडी का नया पद सृजित किया है और इस पद को आगे की पोजिशनिंग सेट करने के तौर पर देखा जा रहा है। बोर्डरूप में जिन लोगों को यह बात नागवार गुजरी उन्ही लोगों में से कुछ मिस्त्री आफर लेकर सामने आये हैं।
पुरानी राख से उठती नई चिंगारी
वर्ष 2016 में साइरस मिस्त्री की बर्खास्तगी के बाद से टाटा समूह ने अपने अंदरूनी तंत्र को स्थिरता की मिसाल बताया था। लेकिन अब यह मामला बता रहा है कि स्थिरता सतही थी विश्वास नहीं। नोएल टाटा की प्रतिक्रिया केवल एक नियुक्ति पर नहीं है बल्कि उस पुराने घाव की प्रतिध्वनि है जिसने कभी समूह की गरिमा को अदालतों तक घसीटा था। टाटा बनाम मिस्त्री वह अध्याय जो भारतीय कॉरपोरेट के इतिहास में सबसे विवादास्पद बना रहा अब उसी कहानी का नया चैप्टर खुल रहा है।
रतन टाटा की विरासत और नैतिक द्वंद्व
नोएल टाटा का यह कदम कई लोगों के लिए टाटा परंपरा की रक्षा जैसा दिखता है तो कई इसे वंशगत नियंत्रण का विस्तार मान रहे हैं। रतन टाटा ने हमेशा समूह को ट्रस्ट-ड्रिवन बताया था जहां मुनाफे से पहले सिद्धांत खड़े हों। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यही ट्रस्ट अब सत्ता संघर्ष की प्रयोगशाला बन चुका हैं? क्या समूह का नैतिक कम्पास अभी भी उत्तर दिशा में है या राजनीति के चक्रव्यूह में खो चुका है?
1000 करोड़ निवेश या बहाना?
इस मतभेद की जड़ सिर्फ नियुक्ति नहीं है बल्कि टाटा इंटरनेशनल में 1000 करोड़ रुपये का निवेश भी है। यह कंपनी लंबे समय से घाटे में चल रही थी और नोएल टाटा जो इसके चेयरमैन हैं ने बोर्ड से आग्रह किया था कि समूह उसकी वित्तीय सेहत सुधारने के लिए इक्विटी निवेश करे। नोएल के इस आग्रह के बाद ट्रस्टियों में से कुछ ने इसे हितों का टकराव करार दिया था। ट्रस्टियों का कहना कहना था कि नोएल टाटा स्वयं लाभ की स्थिति में हैं। उसके बाद भी बोर्ड ने यह निवेश मंज़ूर कर दिया। अब वही निर्णय नैतिक असंतुलन बनकर समूह की आत्मा को कुरेद रहा है।
बाजार की नजर- प्रतिष्ठा की कीमत
स्टॉक मार्केट में टाटा ग्रुप की साख भारतीय पूंजी बाजार की नैतिक नींव रही है। इसलिए जब भी अंदरूनी खटपट की आहट आती है निवेशक घबरा जाते हैं। विश्लेषक कह रहे हैं कि टाटा सिर्फ ब्रांड नहीं है बल्कि भरोसे का दूसरा नाम है। और भरोसे में दरार किसी भी ग्राफ से बड़ी होती है। पिछले दो दिनों में टाटा संस की सहायक कंपनियों में हल्की गिरावट भी दर्ज की गई है भले इसका कारण अफवाह बताया जा रहा हो।
https://www.youtube.com/watch?si=nrI-n4eXKNG18F7w&v=N7_1CscjUEA&feature=youtu.be
आगे की लड़ाई
नोएल टाटा ने टाटा संस में डिप्टी एमडी का पद सृजित करने का सुझाव दिया था। तर्क यह कि समूह के जटिल संचालन के लिए दोहरी नेतृत्व संरचना जरूरी है। लेकिन अंदरखाने इस प्रस्ताव को उत्तराधिकार की सीढ़ी के रूप में देखा गया। कई ट्रस्टी इसे रतन टाटा के बाद की पोजिशनिंग गेम का हिस्सा मान रहे हैं। यानी बोर्ड के भीतर नेतृत्व की अगली पंक्ति के लिए मौन संघर्ष अब धीरे-धीरे मुखर होता जा रहा है। 10 अक्टूबर को टाटा संस की बोर्ड बैठक का आयोजन होना है। एजेंडे में लिखा गया है कि 1000 करोड़ रुपये से जुड़ी परोपकारी गतिविधियों पर निर्णय। लेकिन जानकारों का कहना है कि असली चर्चा परोपकार नहीं पावर शेयरिंग पर होने वाली है।
मिस्त्री परिवार की वापसी की कोशिश
सूत्रों के मुताबिक टाटा ट्रस्ट के कुछ ट्रस्टी मेहली मिस्त्री जोकि दिवंगत साइरस मिस्त्री के रिश्तेदार हैं को टाटा संस बोर्ड में लाने के पक्ष में मुहिम चला रहे हैं। जैसे ही बोर्डरूम की बैठक में यह प्रस्ताव सामने आया बैठक में खलबली मच गई। नोएल टाटा जो स्वयं चेयरमैन हैं और रतन टाटा के सौतेले भाई भी है ने इस प्रस्ताव पर स्पष्ट शब्दों में आपत्ति दर्ज की। उनका तर्क था कि बोर्ड में किसी भी नियुक्ति का आधार वंश या पारिवारिक समीकरण नहीं बल्कि पेशेवर योग्यता और पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए। पर यह कहना जितना सरल था उसका राजनीतिक अर्थ उतना ही गहरा क्योंकि मिस्त्री परिवार वही है जिसने 2016 में टाटा बनाम मिस्त्री संघर्ष की सबसे बड़ी आग देखी थी।




