शशि थरूर और कांग्रेस के रिश्तों में आई दरार, कौन चुकाएगा कीमत

नई दिल्ली। मल्लिकार्जुन खरगे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लडऩे वाले सांसद शशि थरूर इन दिनों अपनी ही पार्टी में बेचैन नजर आ रहे हैं, जिसके चलते बगावती तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं. शशि थरूर ने पीएम मोदी के अमेरिका दौरे और केरल के सीएम पिनाराई विजयन की तारीफ कर पार्टी के अंदर विवाद खड़ा कर दिया है. थरूर पर पार्टी लाइन से हटकर बयान देने का आरोप लगा तो जवाब में थरूर ने कहा कि वो कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन पार्टी को मेरी जरूरत नहीं है तो मेरे पास भी विकल्प मौजूद है. ऐसे में सवाल उठता है कि शशि थरूर क्यों नाराज है और उनकी बगावत कांग्रेस के लिए कहीं महंगी न पड़ जाए?
केरल के तिरुवनंतपुरम से लगातार चार बार के लोकसभा सांसद शशि थरूर ने हाल ही में केरल की वामपंथी विजयन सरकार की नीतियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की तारीफ की थी. इतना ही नहीं उन्होंने केरल में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर भी सवाल उठाए थे. शशि थरूर के बयान से कांग्रेस कश्मकश में पड़ गई थी. इसके बाद कांग्रेस की केरल इकाई के मुखपत्र ने शशि थरूर को नसीहत देते हुए लेख छापा था. मुखपत्र वीक्षणम डेली के द्वारा लिखा गया था कि थरूर को स्थानीय निकाय चुनाव से पहले पार्टी की उम्मीद को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए. हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को धोखा न दें. ऐसे में साफ है कि शशि थरूर और कांग्रेस के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा.
थरूर को सियासत में मनमोहन सिंह लाए थे
शशि थरूर 16 सालों से सियासत में हैं. वो डिप्लोमैट रहे और 2009 से कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद हैं. थरूर को राजनीति में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह लेकर आए थे. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन राज्य मंत्री का दायित्व संभाला था. मनमोहन सिंह सरकार में शशि थरूर की अपनी सियासी अहमियत होती थी.
कांग्रेस से चार बार लगातार तिरुवनंतपुरम सीट से चुने जा रहे हैं, लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे के खिलाफ चुनाव लडऩे के बाद से पार्टी में सियासी हाशिए पर हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह यह रही कि शशि थरूर एक समय गुलाम नबी आजाद के अगुवाई वाली कांग्रेस जी-23 का हिस्सा रहे हैं. कांग्रेस के जी-23 में रहते हुए थरूर ने कई बार गांधी परिवार के हाथों में पार्टी लीडरशिप रहने का सवाल उठाया था.
2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ तो खरगे के खिलाफ थरूर ने ताल ठोक दी थी. हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हारने के बाद शशि थरूर ने खरगे टीम में काम करने की इच्छा जताई थी, लेकिन गांधी परिवार का विश्वास नहीं जीत सके. इसके चलते पार्टी में खुद को साइडलाइन मानते हैं. कांग्रेस से शशि थरूर यूं ही नाराज नहीं हैं बल्कि उसके पीछे कारण भी है. थरूर की कांग्रेस से नाराजगी को इन पांच प्वाइंट में समझ सकते हैंज्
कांग्रेस में सियासी हाशिए पर थरूर: कांग्रेस के चार बार के सांसद शशि थरूर इन दिनों पार्टी में साइडलाइन चल रहे हैं. न ही थरूर के पास कांग्रेस संगठन में कोई अहम पद है और न ही पार्टी उन्हें कोई रोल दे रही है. पिछले दिनों कांग्रेस नेतृत्व ने अपने संगठन में कई अहम बदलाव किए हैं, जिसमें दो महासचिव नियुक्त किए हैं तो कई राज्यों के प्रभारी बदले हैं. इस बदलाव में भी थरूर को कोई पद नहीं मिला. इसके चलते ही शशि थरूर नाराज माने जा रहे हैं.
कांग्रेस थरूर को बोलने का मोका नहीं देती: शशि थरूर ने 18 फरवरी को राहुल गांधी से मुलाकात की थी. उन्होंने पार्टी में किनारे किए जाने पर राहुल से नाराजगी जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि मुझे संसद में महत्वपूर्ण बहसों में बोलने का मौका नहीं मिलता. पार्टी में मुझे इग्नोर किया जा रहा है और मैं पार्टी में अपनी स्थिति को लेकर असमंजस में हैं, राहुल गांधी मेरी भूमिका स्पष्ट करें. इस तरह से थरूर ने राहुल से साफ-साफ कहा संसद में महत्वपूर्ण बहसों के दौरान उन्हें किनारे किया जा रहा है. यह थरूर को चुभ रहा है, उन्हें लगता है कि पार्टी उन्हें जानबूझकर हाशिये पर धकेल रही है, जिसके चलते वो पार्टी के रवैए से नाराज हैं.
कांग्रेस नहीं दे रही ऊंचा मुकाम: शशि थरूर 2009 से लेकर लगातार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच रहे हैं. मनमोहन सिंह के रहते हुए उन्हें विदेश मंत्री बने, लेकिन विपक्ष में रहते हुए उन्हें किसी तरह का कोई मुकाम नहीं मिला. थरूर काफी जनाकार और अच्छे वक्ता माने जाते हैं. मुद्दो को मजबूत तरीके से उठाने और सरकार को घेरने का जज्बा भी रखते हैं, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं दिया. 2014 से 2019 तक मल्लिकार्जुन खरगे को बनाए रखा तो 2019 से 2024 तक अधीर रंजन चौधरी और अब राहुल गांधी है. ये भी एक बड़ा मुद्दा है, उनकी नाराजगी के पीछे.
केरल में सीएम का चेहरा नहीं बनाना: शशि थरूर केरल से जीतकर आ रहे हैं, जिसके चलते राज्य में अपने लिए सियासी मुकाम तलाश रहे हैं. ऐसे में उन्हें लगता है कि पार्टी संसद की गतिविधियों में उन्हें पीछे धकेल रही है और राज्य के लिए भी उनकी कोई भूमिका तय नहीं कर रही है. राहुल गांधी से मुलाकात के दौरान थरूर ने अपनी भूमिका को लेकर सवाल किया था. इसके लिए केरल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने चेहरे को पेश कराना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस उन्हें आगे बढ़ाने के बजाय केसी वेणुगोपाल को अहमियत दे रही है. माना जाता है कि राहुल गांधी ने थरूर को कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया. इस पर राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा करने की परंपरा नहीं है. थरूर युवा कांग्रेस की जिम्मेदारी संभालने को भी तैयार थे, लेकिन राहुल गांधी ने इस ऑफर पर भी आनाकानी कर दी. इस तरह से मायूसी हाथ लगने के बाद शशि थरूर की बेचैनी बढ़ रही है.
ऑल इंडिया प्रफेशनल कांग्रेस से थरूर की छुट्टी: शशि थरूर को ऑल इंडिया प्रफेशनल कांग्रेस के प्रभार पद से भी हटा दिया गया है. कांग्रेस का यह संगठन थरूर का ही तैयार किया हुआ है. राहुल गांधी के साथ मुलाकात में थरूर ने इस बात पर भी नाराजगी जतायी. इस तरह शशि थरूर पार्टी में खुद से सियासी हाशिए पर पाते हैं, जिसके चलते सियासी बेचैन हैं और खुल कर बागी तेवर अपना लिया है.
थरूर की बगावत कहीं महंगी न पड़ जाए?
शशि थरूर ने बागी रुख तो अपना रखा है, लेकिन बगावत करने से इंकार नहीं कर रहे हैं. शशि थरूर की केरल के तिरुवनंतपुरम सीट से जीतकर आए हैं. उनकी हिंदू और मुस्लिम दोनों ही वोटों पर पकड़ मानी जाती है. मोदी लहर में लगातार तीन बार थरूर अपनी सीट जीतने में सफल रहे हैं, लेकिन पार्टी में उन्हें बड़ा मुकाम नहीं मिला है. केरल में अगले साल 2026 में विधानसभा चुनाव है और पिछले 9 साल से लेफ्ट का कब्जा है. राहुल गांधी के केरल से सांसद रहते हुए भी कांग्रेस राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी. ऐसे में कांग्रेस के लिए अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव काफी अहमियत रखा है.
शशि थरूर ने दावा किया कि अन्य कांग्रेस नेता उनके इस विचार का समर्थन करते हैं कि पार्टी की केरल प्रदेश इकाई में नेता नहीं है. उन्होंने स्वतंत्र संगठनों की ओर से किए गए ओपिनियन पोल का हवाला दिया, जिनमें उन्हें राज्य में नेतृत्व के मामले में दूसरों से आगे दिखाया गया था. तिरुवनंतपुरम से चार बार के लोकसभा सांसद ने चेतावनी दी कि अगर कांग्रेस ने अपनी अपील का विस्तार नहीं किया, तो वह केरल में लगातार तीसरी बार विपक्ष में बैठेगी. ऐसे में शशि थरूर ने जिस तरह तेवर दिखाए हैं, उसके बाद केरल कांग्रेस में भी सियासी खींचतान शुरू हो गई है.
थरूर के पास क्या सियासी विकल्प?
शशि थरूर ने साफ-साफ पार्टी को संदेश दे दिया है कि कांग्रेस मेरा इस्तेमाल करना चाहती है तो मैं पार्टी के लिए मौजूद रहूंगा. अगर उन्हें मेरी जरूरत नहीं तो मेरे पास करने के लिए अपने काम भी हैं. कांग्रेस को यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है. मेरे पास किताबें, भाषण और दुनिया भर से निमंत्रण हैं. इस तरह उन्होंने बता दिया है कि उनके पास कांग्रेस के सिवा भी काम करना का विकल्प है, लेकिन उनकी इस बात के अलावा भी सियासी कयास लगाए जा रहे हैं.
सांसद शशि थरूर ने जिस तरह से पीएम मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मुलाकात की तारीफ करते हुए इसे महत्वपूर्ण परिणाम देश के लोगों के लिए अच्छे हैं. उन्होंने कहा कि इसमें कुछ सकारात्मक हासिल हुआ है,मैं एक भारतीय के रूप में इसकी सराहना करता हूं. इस मामले में मैंने पूरी तरह से राष्ट्रीय हित में बात की है. इसके अलावा शशि थरूर ने केरल की रुष्ठस्न सरकार की औद्योगिक नीति की तारीफ की थी. शशि थरूर ने अपने लेख में यह भी कहा कि केरल भारत के टेक्नोलॉजिकल और इंडस्ट्रियल चेंज का नेतृत्व करने के लिए अच्छी स्थिति में है.
शशि थरूर किसी विचाराधारा से प्रेरित या सियासी आंदोलन से निकलकर राजनीति में नहीं आए हैं. इसके चलते देश में उनके लिए तमाम राजनीतिक विकल्प खुले हुए हैं. थरूर ने जिस तरह पीएम मोदी और सीएम पिनराई विजयन की तारीफ की है, उसके जरिए पार्टी को संदेश दे दिया है कि उनके लिए लेफ्ट और बीजेपी दोनों के रास्ते खुले हुए हैं. बीजेपी और लेफ्ट दोनों ही थरूर को अपने साथ लेने में गुरेज नहीं करेंगी. इस तरह अगर वो पार्टी छोड़ते हैं तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए सियासी टेंशन बढ़ जाएगी. हालांकि, थरूर ने साफ कहा कि वो पार्टी छोडऩे के मूड में नहीं है.

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