सर बढ़ाएगा पूरे देश में सियासी सिरदर्द!

  • एसआईआर के खिलाफ दक्षिण से उत्तर तक उठी लहर
  • विपक्ष ने चुनाव आयोग व एनडीए सरकार को घेरा
  • तमिलनाडू से बिहार तक सुलगता विरोध
  • सवालों के घेरे में केंद्र की नीति

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। देश में एक बार फिर एसआईआर को लेकर सियासी पारा चढ़ गया है। इस बार सबसे तीखा विरोध दक्षिण से उठ रहा है। तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल और गोवा में एसआईआर के विरोध की आग धधकना शुरू हो गयी है और वहां की सरकारें और विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से टकराव का मूड बना लिया है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी, तमिलनाडू के मुख्यमंत्री स्टालिन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताकर राज्य व्यापी आंदोलन की घोषणा कर दी है।
तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने 11 नवम्बर से विरोध की अगुवाई करने का ऐलान किया है। बंगाल में ममता बनर्जी ने इसे बीजेपी की सियासी मदद करार दिया है जबकि गोवा में दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने एसआईआर की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा है कि पंचायत चुनावों के साथ यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक भ्रम पैदा कर रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार में पहले से ही जनसंगठनों और विपक्षी दलों का विरोध चल रहा है। सवाल अब यह नहीं है कि एसआईआर का उद्देश्य क्या है बल्कि यह कि क्यों इसकी प्रक्रिया बार-बार जनता और राज्यों के बीच अविश्वास का कारण बन रही है।

स्टालिन की अगुवाई में द्रविड़ अस्मिता बनाम केंद्र

तमिलनाडू में एसआईआर के विरोध को द्रविड़ सम्मान आंदोलन का रंग दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने 11 नवम्बर से राज्यव्यापी विरोध की घोषणा की है। डीएमके का आरोप है कि केंद्र सरकार एसआईआर के नाम पर राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना और स्थानीय डाटा पर नियंत्रण चाहती है। राज्य में उद्योग संघ और व्यापारी संगठन भी इस विरोध में शामिल हैं। चेंगलपट्टू से लेकर मदुरै तक प्रदर्शन तय हैं। डीएमके नेताओं का कहना है कि तमिल पहचान के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। स्टालिन ने साफ कहा है कि यह कोई डाटा रजिस्ट्रेशन नहीं बल्कि लोकतंत्र का री-रजिस्ट्रेशन है।

ममता का आरोप बीजेपी को मदद देने वाला हथकंडा

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एसआईआर को राजनीतिक एजेंडा बताते हुए केंद्र पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि यह कोई रजिस्टर नहीं यह बीजेपी का चुनावी सर्वे है। राज्य के शहरी इलाकों में तृणमूल कांग्रेस ने नो टू एसआईआर अभियान शुरू किया है। ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग से भी सवाल किया कि जब राज्य में शहरी निकायों के चुनाव की प्रक्रिया जारी है तब एसआईआर का डाटा कलेक्शन कैसे शुरू हो सकता है? बंगाल में नागरिकता और पहचान का सवाल पहले ही संवेदनशील रहा है। एनआरसी और सीएए के विरोध के बाद अब एसआईआर इस विवाद को एक नया चेहरा दे रहा है।

आतिशी का हमला पंचायत चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप

गोवा में एसआईआर का विरोध अपेक्षाकृत नया है पर इसकी राजनीतिक गूंज तेज है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने गोवा में प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि एसआईआर की टाइमिंग संदिग्ध है। पंचायत चुनावों के साथ इसे लागू करना लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है। गोवा में आम आदमी पार्टी और स्थानीय सामाजिक संगठन इसे प्रशासनिक निगरानी का औजार बता रहे हैं। छोटे राज्य होने के बावजूद गोवा में नागरिकता और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे बेहद संवेदनशील हैं और एसआईआर को इन्हीं संदर्भों में देखा जा रहा है।

उप्र में विपक्ष के लिए नया नारा

उत्तर प्रदेश में पहले से ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एसआईआर के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। अखिलेश यादव ने कहा है कि सरकार जनता का डाटा नहीं जनता का भरोसा खो रही है। पूर्वी यूपी के कई जिलों में छात्र और पंचायत प्रतिनिधि इस मुद्दे पर विरोध जता रहे हैं। भाजपा सरकार इसे सुधारात्मक डाटा अभ्यास बताती है लेकिन विपक्ष इसे निगरानी राज्य की दिशा में कदम बता रहा है। राजनीतिक दृष्टि से यह मुद्दा 2027 के विधानसभा चुनाव तक बड़ा विमर्श बन सकता है।

बिहार जातीय जनगणना के बाद नया विवाद

बिहार में एसआईआर को लेकर पहले से असंतोष है। वहां विपक्ष और सत्तारूढ़ गठबंधन दोनों के बीच मतभेद हैं। तेजस्वी यादव ने कहा कि जब जातीय जनगणना का डाटा सार्वजनिक नहीं हुआ है तो नया रजिस्टर क्यों? नीतीश कुमार की सरकार भी इस पर खुलकर कुछ नहीं कह रही पर प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि राज्य केंद्र की प्रक्रिया से अलग राह तलाश सकता है। बिहार में समाजिक और जातीय पहचान की राजनीति बहुत गहरी है और एसआईआर को इसी नजर से देखा जा रहा है।

डाटा शुद्धिकरण या फिर लोकतंत्र में हस्तक्षेप

एसआईआर की घोषणा के बाद केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और डाटा शुद्धिकरण की कवायद बताया था लेकिन राज्य सरकारें इसे राज्य की जनसांंख्यिकी और नागरिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मान रही हैं। मामला सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि संवैधानिक सीमाओं का भी है। क्या केंद्र किसी राज्य की सहमति के बिना इस तरह का रजिस्टर लागू कर सकता है? तमिलनाडू और बंगाल जैसे राज्य इसे सीधे संघीय अधिकारों पर अतिक्रमण बता रहे हैं। ममता बनर्जी ने कहा है कि यह एनआरसी और सीएए की ही नई शक्ल है। जबकि स्टालिन ने इसे राजनीतिक डाटा संग्रह करार दिया है। एसआईआर का विरोध इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि कई राज्यों में इसका लागू होना चुनावी संवेदनशील समय में किया जा रहा है। गोवा और पश्चिम बंगाल में स्थानीय निकाय चुनाव, यूपी-बिहार में पंचायत पुनर्गठन, और तमिलनाडू में नागरिकता संबंधी चर्चाएं इन सबके बीच केंद्र की यह पहल सवालों के घेरे में है।

फिर से जिंदा हो गयी पुरानी बहस

राजनीतिक रूप से देखा जाए तो एसआईआर ने भाजपा बनाम क्षेत्रीय दलों की पुरानी बहस को फिर से जिंदा कर दिया है। भाजपा इसे डाटा ट्रांसपेरेंसी और सिक्योरिटी का उपाय बता रही है। जबकि विपक्ष इसे नागरिक ट्रैकिंग और राज्य पर निगरानी का औजार मानता है। मामला केवल राजनीतिक नहीं भावनात्मक भी बन रहा है। तमिलनाडू में द्रविड़ अस्मिता, बंगाल में क्षेत्रीय स्वायत्तता, बिहार-यूपी में जातीय पहचान की राजनीति सब इसे अपने-अपने ढंग से देख रहे हैं।

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