जानिए निर्जला एकादशी का महत्व, क्या है पूजन का शुभ समय
लखनऊ, भगवान विष्णु को समर्पित निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशी का व्रत करने के बराबर फल मिलता है। इस बार निर्जला एकादशी पर सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला सिद्धि योग भी बन रहा है। 21 जून 2021 सोमवार को पडऩे वाली निर्जला एकादशी बेहद खास है। इस दिन 2 शुभ योग – शिव और सिद्धि बन रही है। इसके अलावा 21 जून साल का सबसे लंबा दिन भी होगा। अर्थात इस दिन सूर्य शीघ्र उदय होगा और देर से अस्त होगा। सूर्य की किरणें सामान्य दिनों की तुलना में सबसे लंबे समय तक पृथ्वी पर गिरेंगी। इसके बाद सूर्य दक्षिण की ओर बढऩा शुरू हो जाएगा और 23 सितंबर को रात और दिन बराबर हो जाएगा। जानिए साल की सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाने वाली निर्जला एकादशी के महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष इस दिन शिव और सिद्धि योग बनने से यह ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। 21 जून को शिव योग शाम 5:34 बजे तक रहेगा और उसके बाद सिद्धि योग शुरू होगा। माना जाता है कि सिद्धि योग सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और इस अवधि में किए गए हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। शिव योग को बहुत शुभ भी कहा जाता है और इस अवधि में किए गए धार्मिक अनुष्ठान, पूजा या दान आदि भी शुभ परिणाम देते हैं।
इस व्रत के दौरान पानी भी नहीं पीया जाता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी, इसके पीछे एक कथा भी है। वेद व्यास ने जब पांडवों को धर्म, अर्थ, कामदेव और मोक्ष देने का व्रत किया तो भीम ने कहा कि आप 24 एकादशियों के लिए व्रत करने का संकल्प दे रहे हैं, लेकिन मैं एक दिन भी भूखा नहीं रह सकता। तब व्यास ने समस्या का निदान करते हुए कहा कि निर्जला एकादशी का व्रत रखना चाहिए। इसके साथ ही सभी एकादशियों के व्रत का परिणाम प्राप्त होगा। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
इस व्रत की एक और रोचक बात यह है कि व्रत करने वाला व्यक्ति इसमें पानी नहीं पी सकता, लेकिन उसे दूसरों को पानी देना होगा, इससे उसे काफी लाभ मिलेगा। इसलिए इस दिन व्रत में जल, रस, शर्बत, खरबूजा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जरूरतमंदों के लिए आश्रमों, अस्पतालों आदि में वाटर कूलर लगाने जैसे काम करना बहुत अच्छा रहेगा।
स्त्री और पुरुष दोनों ही इस व्रत को रख सकते हैं और इसके लिए कोई आयु सीमा नहीं है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और पंचामृत से भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम का स्नान करें, मूर्ति को नए वस्त्र चढ़ाएं। यदि मूर्ति न हो तो भगवान के चित्र के सामने दीपक जलाकर तुलसी और फल चढ़ाएं। बाद में मंदिर में जाकर भगवान विष्णु के दर्शन करें। दिन भर निर्जलित रहें। भगवान की पूजा करें। ओम नमो भागवते वासुदेवय का जाप करें। अगले दिन पानी का सेवन कर व्रत समाप्त करें।