फाइव स्टॉर होटलों में कम रुपए देकर रह सकेंगे हलके लक्षण वाले पॉजिटिव मरीज
1500 से 2000 रुपए निर्धारित राशि तय
राजधानी के निजी होटलों में तैयारियां पूरी
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। राजधानी के नामचीन होटलों में भी अब कोरोना संक्रमित कम रूपए देकर रह सकेंगे। शहर में बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए कई होटलों के कमरे को आईसोलेशन में तब्दील कर दिया गया है। लेवाना, पिकैडली ने इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली है। पिकैडली में लॉकडाउन के समय डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ पहले रह चुका है। वहीं आनंदी वाटर पार्क कोविड केयर सेंटर में तब्दील हो गया है।
बताया जा रहा है कि होटलों में सुविधाएं बेहतर मिलने से सरकार ने इन्हें फिर से पॉजिटिव मरीजों के लिए अधिग्रहित करने का फैसला किया है। एक दिन पहले ही यूपी सरकार ने गैर लक्षण व हल्के लक्षण वाले कोरोना संक्रमित मरीजों की मांग पर उन्हें बेहतर सुविधा देने के लिए होटल, रिसॉर्ट में रुकवाने की व्यवस्था किए जाने की बात कही थी। इसके लिए जिला प्रशासन होटल को अधिग्रहित कर उन्हें वहां रुकाकर कोरोना संक्रमण की इलाज की सुविधा देगा। इसके लिए एक मरीज को प्रतिदिन डेढ़ हजार रुपए मय रहने और खाने का देना होगा। डबल बेड वाले कमरे के लिए प्रतिदिन 2 हजार रुपए देने होंगे। उस होटल में डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की सरकारी व्यवस्था होगी। इसके लिए मरीज को एकमुश्त दो हजार रुपए देने होंगे। यह व्यवस्था सबसे पहले लखनऊ और गाजियाबाद शहरों के लिए शुरू की जा रही है। उसके बाद अन्य शहरों में भी शुरू की जाएगी। इस सिलसिले में अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने आदेश जारी किए हैं। इस सुविधा को एल-1 प्लस का दर्जा दिया गया है। श्री प्रसाद ने बताया कि एल-1 और एल-2 में रहने योग्य ये गैर लक्षण व हल्के लक्षण वाले कोरोना संक्रमित मरीज अपने बेहतर सुविधा की मांग बहुत पहले से कर रहे थे।
पिकैडली में गाइडलाइन के निर्देशों का पूरा पालन
पिकैडली के असिस्टेंट एचआर मैनेजर पंकज कुमार सिंह ने बताया कि तैयारियां पूरी है। 11 अप्रैल से 5 जून करीब 56 दिन लॉकडाउन के समय डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ यहां रह चुका है। उसी तरह इस बार भी मरीजों का ख्याल रखा जाएगा। उनके अनुसार मरीज हर समय कमरे में आइसोलेट रहते हैं। कमरे में सेनेटाइजर, ग्लवस, मास्क उपलब्ध हैं। सिर्फ खाने के समय ही मरीज कमरे से बाहर निकलते हैं। बाहर निकलने पर सरकार की गाइडलाइन के निर्देशों का पालन का ध्यान रखा जाता है। मरीजों को सोशल डिस्टेङ्क्षसग के बारे में बार-बार बताना पड़ता है।