पुलिस ने मोस्ट वांटेड दुबे से यारी नहीं निभाई होती तो खाकी का रंग लाल न होता!
घटना के बाद से फरार है हिस्ट्रीशीटर दुबे, नेपाल भाग जाने की खबर
मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मी हुए थे शहीद, 7 लोग घायल भी हुए
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। कानपुर में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की शहादत के बाद पुलिस हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के पीछे पड़ी है। तीन दिन से वह फरार है। नेपाल भाग जाने की भी खबर है। मुख्यमंत्री से लेकर पुलिस के आला अधिकारी तक विकास दुबे की गिरफ्तारी होने तक चैन से नहीं बैठने की बात कह रहे हैं। लेकिन इसी विकास दुबे के लिए खाकी पहनने वाले पुलिसवालों ने अपने कर्तव्यों से गद्ïदारी नहीं की होती, तो खाकी का रंग लाल नहीं होता। 19 साल पहले की बात है। राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या मामले में गवाह पुलिसवालों ने विकास दुबे के खिलाफ बयान नहीं दिए। इसके बाद थाने में घुसकर राज्य मंत्री को मौत के घाट उतारने वाला दीपू दुबे बाइज्जत बरी हो गया। उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए मोस्ट वांटेड बन चुके विकास दुबे ने एक दिन पहले ही आठ पुलिसकर्मियों के खून से अपने हाथ रंगे हैं।
2001 में थाने में घुसकर की थी राज्यमंत्री की हत्या
1996 में यूपी में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। कानपुर की चौबेपुर विधानसभा सीट से हरि किशन श्रीवास्तव और संतोष शुक्ला चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में हरि किशन श्रीवास्तव को जीत हासिल हुई थी। इसी दौरान हरिकिशन का विजय जुलूस निकाला जा रहा था। इसी बात को लेकर हरकिशन और संतोष के बीच विवाद हो गया था। मामले में विकास दुबे का नाम भी आया था और पुलिस ने उस पर मामला भी दर्ज किया था। बस यही से विकास दुबे की भाजपा नेता संतोष शुक्ला से दुश्मनी शुरू हो गई थी। 2001 में दुबे साथियों के साथ थाने में घुस गया और वहां पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर संतोष शुक्ला की हत्या कर दी। इसके बाद फरार हो गया। करीब 6 महीने बाद उसने कोर्ट में सरेंडर किया था।
अब वर्दीवालों के खून से अपने हाथ रंगे हैं
मृतक संतोष शुक्ला के परिजनों का कहना है कि अगर उस समय पुलिस ने अपनी भूमिका सही से निभाई होती तो विकास को कोर्ट से सजा मिलती। उनके भाई मनोज शुक्ला ने कहा कि उनके भाई को तो इंसाफ नहीं मिल सका। मगर अब विकास ने वर्दीवालों के खून से अपने हाथ रंगे हैं। विभाग अपने कर्मचारियों और अधिकारियों की हत्या का बदला ले ले, तो वह मान लेंगे कि उनको इंसाफ मिल गया है।
हर सरकार में ढूंढ लेता है ठिकाना
दुबे का नेटवर्क अलग है। वह कानपुर और लखनऊ के आस-पास के जिलों के कई छोटे-बड़े पुलिसकर्मियों और नेताओं के संपर्क में रहता था। बसपा सरकार में उसके कई नेताओं से संबंध थे तो सपा सरकार में उसने स्थानी सपाईयों का साथ लेकर पत्नी रिचा को जिला पंचायत सदस्य बनवा लिया था। इसी नेटवर्क की बदौलत वह जेल के अंदर रहते हुए प्रधानी का चुनाव जीत गया था। वर्ष 2016 में वह सपा के कई नेताओं के करीब आ गया था। इस दौरान उसने इन्द्रलोक कालोनी में अपने घर की साज सज्जा भी करवाई थी। लखनऊ में विकास दुबे को कोई ज्यादा पहचानता नहीं था। मुहल्ले में वह लोगों के संपर्क में ज्यादा नहीं रहता था।
बसपा कार्यकाल में एक भी एफआईआर नहीं
वर्ष 2007 से वर्ष 2012 के बीच चौबेपुर थाने में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं दर्ज हुई। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान उसने कई लोगों को धमकाया। मारपीट की। रंगदारी भी खूब वसूली। पर एफआईआर लिखाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई या पुलिस ने दबाव में एफआईआर लिखी नहीं। इस दौरान प्रदेश में बसपा सरकार थी।