फर्जी वोटिंग रोकने को सरकार तैयार कर रही रोडमैप लेकिन रास्ते में आएंगे कई स्पीड ब्रेकर

नई दिल्ली। फर्जी वोटिंग को रोकने के लिए केंद्र की मोदी सरकार बड़ा कदम उठा सकती है। इसके तहत केंद्र आधार कार्ड को वोटर आईडी कार्ड से लिंक करने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए सरकार को कुछ कानूनों में संशोधन करना होगा। इसके साथ ही डेटा सुरक्षा के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करना होगा। अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार यह कदम उठा सकती है। जाहिर है कि फर्जी वोटिंग को रोकने और एक से ज्यादा जगह वोटिंग लिस्ट में रजिस्ट्रेशन रोकने के इस प्रस्तावित कदम से विपक्ष को एक और मौका मिलेगा। साथ ही इस प्रस्ताव को लागू करने में कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों के मुताबिक सरकार इसके लिए तैयार है। हालांकि, वोटिंग लिस्ट को आधार नंबर से जोडऩे के लिए केंद्र को जनप्रतिनिधित्व कानून के साथ-साथ आधार एक्ट में भी संशोधन करना होगा। इसका बड़ा कारण यह है कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आधार अधिनियम की वैधता पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि आधार की 12 अंकों वाली आईडी का उपयोग केवल सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और अन्य सुविधाओं का लाभ लेने के लिए किया जाएगा। इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा था कि अगर सरकार वोटर लिस्ट को आधार इकोसिस्टम से जोडऩा चाहती है तो इसके लिए उसे कानूनी मदद लेनी होगी। गौरतलब है कि 2019 में हाई कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बताते हुए सरकार से डेटा सुरक्षा के लिए कानून बनाने को कहा था। जिसके बाद सरकार ने डाटा प्रोटेक्शन बिल तैयार किया है। वर्तमान में संसदीय समिति इस पर विचार कर रही है।
जानकारों का मानना है कि वोटिंग लिस्ट को सीधे आधार इकोसिस्टम से नहीं जोड़ा जाएगा, बल्कि इसके वेरिफिकेशन के लिए ओटीपी सिस्टम का इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसा करने से न तो दोनों डाटा का मिलान होगा और न ही वोटर सिस्टम की टैपिंग होगी। सूत्रों का कहना है कि इस सिस्टम का व्यापक परीक्षण किया जाएगा। आधार को वोटर आईडी से जोडऩे की योजना सभी पहलुओं को पूरा करने के बाद ही शुरू की जाएगी। जानकारी के लिए बता दें कि 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले चुनाव आयोग ने बड़ी संख्या में वोटर आईडी को आधार से जोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कार्यक्रम को रोक दिया गया।

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