लालू इज कमबैक, आ सकती है सियासी सुनामी

नई दिल्ली। इन दिनों बिहार का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। ऐसे में लालू का कमबैक नया सियासी तूफान खड़ा कर सकता है। लालू पिछले ढाई साल से जेल में बंद हैं और वहीं से अपनी पार्टी और बिहार की राजनीति को ऑपरेट करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन इस अरसे में काफी कुछ बदल गया है। लालू कुनबे के अंदर भी और बिहार की सियासत में भी। ऐसे वक्त में जब बिहार की राजनीति उठापटक के दौर में चल रही है तो लालू की वापसी कोई न कोई गुल जरूर खिलाएगी।
चारा घोटाला मामले में ढाई साल जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा हुए लालू प्रसाद यादव के पटना लौटने की खबरें हैं। कहा जा रहा है कि राजद की स्थापना के 25 साल पूरे हो रहे हैं। बता दें कि राजद की स्थापना वर्ष 1997 में लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होने के बाद की थी। पार्टी ने स्थापना दिवस राज्य, जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर मनाने का निर्णय लिया है। कहा जा रहा है कि इस दिन लालू प्रसाद यादव पटना में राजद कार्यकर्ताओं को भी संबोधित कर सकते हैं। हालांकि उनके संबोधन से ज्यादा सबकी नजरें उनके राजनीतिक दांव पेच पर टिकी होंगी जो बिहार की राजनीति के सत्ता समीकरण को बदल सकते हैं।
राजनेता के रूप में लालू प्रसाद यादव भी जानते हैं कि जीतन राम मांझी का हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी भी बिहार की एनडीए सरकार में कमजोर कडिय़ों के रूप में शामिल है। इन दोनों दलों के चार-चार विधायक हैं और अगर वे पक्ष बदलते हैं तो बिहार में बड़ा फेरबदल हो सकता है। यही वजह है कि लालू यादव ने हाल ही में इन दोनों नेताओं से फोन पर बात की थी, जिसकी वजह से बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। गौरतलब है कि लालू यादव फिलहाल अपनी बेटी मीसा भारती के दिल्ली स्थित आवास पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। सूत्रों से पता चलता है कि लालू प्रसाद यादव भी दिल्ली से ही बिहार में सत्ता परिवर्तन का खेल खेल रहे हैं। हालांकि वास्तविकता यह है कि मांझी और साहनी दोनों ने फोन पर बात करने की बात स्वीकार की, लेकिन एनडीए में फूट की अटकलों को भी एकमुश्त खारिज कर दिया गया है। साथ ही लालू के पटना आने को लेकर सत्ताधारी खेमे की ओर से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि लालू कितना बड़ा खेल खेल सकते हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि राजद नेता लालू प्रसाद यादव के पटना आने से राजनीति पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला है। लेकिन छवि ऐसी बनाई जा रही है जैसे वे जिन्न को बाहर निकालकर पार्टी का राज वापस लाएंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें स्वास्थ्य के आधार पर जमानत मिली न कि राजनीति के लिए। भाजपा सांसद ने यह भी कहा कि सीबीआई को जेल में रहते हुए या वर्चुअल माध्यम से लालू यादव के राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने का संज्ञान लेना चाहिए।
इससे पहले जब तेजस्वी यादव ने कहा था कि दो से तीन महीने में नीतीश सरकार गिरने वाली है तो जेडीयू के उपेंद्र कुशवाहा ने भी दावा किया कि अगले पांच साल तक नीतीश कुमार की सरकार गिराने की ताकत किसी के पास नहीं है। इसी तरह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा था कि तेजस्वी यादव बिना ऋतु के आम खाना चाहते हैं। उनकी यह योजना पूरी नहीं होगी क्योंकि आम केवल सीजन में पकेंगे। उनका मतलब यह है कि चुनाव का समय बीत चुका है, सरकार भी बन चुकी है और उन्हें अब 2025 में होने वाले अगले चुनाव की तैयारी करनी चाहिए। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जदयू और भाजपा नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाओं से ऐसा लगता है कि लालू यादव के पटना लौटने की खबर के कारण कहीं न कहीं सत्तारूढ़ दल में आंतरिक बेचैनी जरूर है। इसका कारण न केवल बहुमत के लिए जरूरी सीटों का छोटा सा अंतर है, साथ ही उन नेताओं का चरित्र भी है जो मौका मिलते ही बदलाव की राजनीति करने से परहेज नहीं करते। मांझी और साहनी जैसे नेता पूर्व में कई बार पक्ष बदलने की प्रवृत्ति दिखा चुके हैं, ऐसी स्थिति में लालू यादव की वापसी के साथ बिहार की राजनीति में बदलाव का खेल होने की आशंका है।
यहां यह बताना प्रासंगिक है कि लगभग तीन साल बाद लालू के पटना लौटने के बाद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच बहुमत के अंतर के कारण काफी अटकलें लगाई जा रही हैं। एनडीए को जहां 243 सदस्यीय विधानसभा में 127 विधायकों का समर्थन हासिल है, वहीं महागठबंधन को 110 विधायकों का समर्थन हासिल है। यानी बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटों से सिर्फ 12 सीटें कम। ऐसी स्थिति में अटकलें लगाई जा रही हैं कि लालू के पटना लौटने के बाद जरूर कुछ ऐसा होगा क्योंकि उनकी निगाहें बिहार की राजनीति पर टिकी हैं।
विधानसभा में अगर मांझी और साहनी की 4+4 सीटें क्रमश राजद, कांग्रेस और वाम दलों की 75+19+16+110 सीटों में संयुक्त हैं तो फिर यह आंकड़ा 118 तक पहुंच जाता है। बहुमत के लिए 122 सीटें पूरी करने की स्थिति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के 5 विधायकों का समर्थन भी महागठबंधन को दिया जा सकता है। ऐसी स्थिति में उनकी कुल सीटों की संख्या 123 हो जाएगी, जो बहुमत से 1 ज्यादा होगी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इसी वजह से सत्ता-राजनीति को लेकर एनडीए और महागठबंधन के बीच लगातार तकरार हो रही है।

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