कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी हुए कांग्रेस में शामिल

सुष्मिता मिश्रा 

कांग्रेस में आज दो युवा चहेरा जो बहुत ही हाई प्रोफाइल लोगों में शामिल हैं। उनमें से एक जिग्नेश मेवाणी हैं, जो गुजरात के वडगाम से निर्दलीय विधायक हैं और दूसरे हैं जवाहर लाल नेहरू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार, जो अब तक सीपीआई के साथ थे। इसमें कोई शक नहीं की जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार दोनों युवा हैं और दक्षिणपंथी राजनीति को लेकर अपने विरोध के लिए जाने जाते हैं।कन्हैया कुमार की कांग्रेस में एंट्री में महत्वपूर्ण रोल प्रशांत किशोर का बताया जा रहा है। दोनों के बीच जेडीयू के पूर्व सांसद पवन वर्मा के आवास पर मुलाकात हुई थी।

जिग्नेश मेवाणी अभी उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले की वडगाम सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने यह सीट कांग्रेस के समर्थन से 2017 के विधानसभा चुनावों में जीती थी। यह कांग्रेस के लिए एक मजबूत विधानसभा सीट थी, लेकिन पार्टी ने मेवाणी को इस सीट पर समर्थन दिया, इसके बदले उन्होंने पूरे राज्य में कांग्रेस का समर्थन किया।2016 में ऊना में दलितों के साथ हुई हिंसा के बाद राज्य में हुए प्रदर्शनों का उन्होंने नेतृत्व किया,वे गुजरात में दलितों के जमीन के हक के लिए भी लड़ते रहे हैं।

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुजरात में 53 फीसदी दलितों के वोट मिले थे, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डिवेलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के डेटा के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में 67 फीसदी दलितों ने कांग्रेस को वोट दिया।ऐसा उस वक्त हुआ जब ओबीसी, उच्च जातियों और आदिवासियों का मोह इस दौरान पार्टी से भंग हुआ।मेवाणी की वडगाम सीट 182 में से उन 9 विधानसभा सीटों में शामिल है, जहां लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को लीड मिली थी, यह कहना मुश्किल है कि पार्टी को दलितों का इतना समर्थन मेवाणी की वजह से मिल रहा है या फिर पार्टी इस क्षेत्र पहले से मजबूत रही है। राष्ट्रीय स्तर पर मेवाणी के लोकप्रियता सीमित है, वह गुजरात से बाहर ज्यादा जाने नहीं जाते हैं। दलित कार्यकर्ताओं के बीच भी वो आंबेडकरवादी से ज्यादा लेफ्टिस्ट के तौर पर स्वीकार किए जाते हैं।

कन्हैया कुमार, बिहार के बेगुसराय के सीपीआई के एक वफादार परिवार से आते हैं, और इसी सीट से सीपीआई के टिकट पर 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्हें बीजेपी के गिरिराज सिंह ने बड़े अंतर से हराया था। हालांकि वोटों के मामले में आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी से वे इस चुनाव में आगे रहे थे। उसके बाद से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उन्होंने बिहार में कई रैलियां कीं, हालांकि पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान वो ज्यादा नहीं दिखे। मेवाणी, जिनकी राजनीति गुजरात में दलितों की बीजेपी के प्रति घृणा के साथ तालमेल में चली है, कन्हैया जिस भूमिहार समुदाय से आते हैं, वो बीजेपी की भारी समर्थक है और आमतौर पर आरजेडी विरोधी।

कुमार की अपनी सीट बेगुसराय यूपीए के तहत आरजेडी के कोटे में आती है,इसलिए अगर भविष्य में कांग्रेस बिहार में अगर अकेले चुनाव लड़ती है। और अपने उच्च जातियों वाले वोटबैंक को वापस करने की कोशिश करती तो शायद कन्हैया वहां कुछ मददगार साबित हो सकते हैं।लेकिन तब तक बेगुसराय में सफलता या असफलता उनकी लोकप्रियता से ज्यादा बीजेपी के विरोध में किस तरह का गठबंधन तैयार होता है, इसपर निर्भर करेगी।

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