लालू की राजनीतिक विरासत संभालेगा कौन? तेजप्रताप या फिर तेजस्वी…

पटना बिहार में मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप का कद तेजी से बढ़ रहा है। लालू प्रसाद यादव के जेल से आने के बाद तेज प्रताप की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। जबकि तेजस्वी यादव पूरे सीन से गायब हैं। असल में पिछले एक महीने के दौरान तेज प्रताप जमीन स्तर पर पार्टी में तेजी से सक्रिय हुए हैं। जबकि कोरोना संकट से लेकर अन्य मामलों में तेजस्वी की मौजूदगी सिर्फ सोशल मीडिया में दिख रही है।
तीन दिन पहले ही लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन के मौके के बाद तेज प्रताप और बिहार सरकार में नीतीश कुमार को समर्थन दे रही हिंदुस्तान अवाम पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी के बीच मुलाकात हुई। हालांकि दोनों नेताओं ने इस बैठक को शिष्टाचार के तौर पर बताया। लेकिन राज्य में इसके मतलब निकाले जाने लगे। असल में पहले हम राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन का हिस्सा थी। लेकिन तेजस्वी की जिद के कारण मांझी ने विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन से अपना नाता तोड़ लिया। इस बीच मांझी और तेजस्वी के बीच बयानबाजी भी हुई। क्योंकि राजद चाहता था कि तेजस्वी को महागठबंधन सीएम के तौर पर पेश करे, लेकिन इसके लिए मांझी तैयार नहीं थे।
असल में तेजस्वी ने मांझी को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश भी की। सीटों के बंटवारे पर तेजस्वी ने यहां तक कह दिया कि वह इस मामले में मांझी से बात नहीं करेंगे। बल्कि उनका जिला अध्यक्ष सीटों के बंटवारे पर मांझी से बात करेगा। यानी इसका मतलब साफ था कि वह मांझी को तरजीह नहीं देंगे। अगर उन्हें महागठबंधन में रहना है तो तेजस्वी की शर्तों पर रहना होगा। लेकिन जेल से लालू प्रसाद यादव के बाहर आने के बाद मांझी और तेज प्रताप यादव के बीच दो मुलाकातें हो चुकी हैं। वहीं राज्य में माना जा रहा कि तेज प्रताप और जीतन राम मांझी की ये मुलाकातें आने वाले दिनों में राज्य में एक नए समीकरण बना सकते हैं। जिससे राज्य की नीतीश कुमार सरकार अस्थिर हो सकती है। यही नहीं मांझी कई बार लालू प्रसाद यादव की तारीफ भी कर चुके हैं।
वहीं पिछले दिनों राजद के पूर्व सांसद और बाहुबली शहाबुद्दीन की मौत के बाद लालू प्रसाद यादव परिवार और शहाबुद्दीन के परिवार के मतभेद की खबरें तेजी से आई। क्योंकि शहाबुद्दीन के अंतिम संस्कार को बिहार में कराने को लेकर राजद की तरफ से नीतीश सरकार पर दबाव नहीं बनाया गया और शहाबुद्दीन को दिल्ली में दफना दिया गया। इसके बाद शहाबुद्दीन के बेटे के एक ट्वीट के बाद राजद खेमा सक्रिय हुआ। लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था। यहां तक कि राजद के एक विधायक ने खुलेतौर पर तेजस्वी को कठघरे में खड़ा किया। जिसके बाद सिवान में किला ध्वस्त होता देख, लालू ने शहाबुद्दीन के परिवार को मनाने का जिम्मा तेज प्रताप को सौंपा। क्योंकि तेजस्वी को लेकर शहाबुद्दीन का परिवार नाराज था और सिवान में तेजस्वी के खिलाफ जमकर नारे लगे भी थे। वहीं मुस्लिम वोट बैंक के खिसक जाने के डर से तेज प्रताप सिवान गए। क्योंकि लालू जानते थे कि तेजस्वी के खिलाफ सिवान में नाराजगी है। लिहाजा उन्होंने तेज प्रताप पर विश्वास जताया। तेज प्रताप ने शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा से मुलाकात कर अपनी बात रखी और भरोसा जताया कि पार्टी शहाबुद्दीन के परिवार के साथ हैं।
असल में 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव के परिवार में टूट देखने को मिली थी और पार्टी के फैसले के खिलाफ तेज प्रताप यादव ने अपने प्रत्याशियों को राज्य की कुछ सीटों से उतारा था। इसी दौरान तेज प्रताप ने दावा किया था कि लालू की सियासत के असली वारिस वह हैं। क्योंकि वह बड़े हैं और उन्होंने खुद को लालू का वारिस घोषित किया था।
अल में लालू के परिवार में तेजस्वी यादव अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और इसकी शिकायत तेज प्रताप यादव अपने पिता से कर चुके हैं। असल में तेजस्वी पार्टी का नियंत्रण अपने हाथ में रखना चाहते हैं और विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने खुद को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के लिए लालू पर दबाव भी डाला था। लेकिन लालू ने मौके की नजाकत को समझते हुए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बनाया।
राज्य में कोरोना से लेकर कई मुद्दों को लेकर तेजस्वी सिर्फ ट्वीटर और सोशल मी़डिया में ही नजर आए हैं। जमीनी तौर पर देखा जाए तो तेजस्वी राज्य की सियासत से गायब हैं। वहीं पार्टी में तेज प्रताप काफी सक्रिय हो गए हैं। मांझी से मुलाकात या फिर सिवान जाकर शहाबुद्दीन के परिवार को मनाना। ये दो ऐसे उदाहऱण हैं। जिसके कारण आने वाले समय में राज्य में लालू परिवार में फूट देखी जा सकती है। वहीं तेज प्रताप को तेजस्वी की तुलना में सौम्य माना जाता है और वह काफी लो प्रोफाइल रहते हैं। यही नहीं धार्मिक कार्यों में उनकी रूचि है।
असल में लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के दौरान लालू जेल में थे और टिकटों के बंटवारे का जिम्मा तेजस्वी यादव के हाथ में था। वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान टिकटों के बंटवारे को लेकर लालू प्रसाद यादव परिवार में मनमुटाव भी देखने को मिला। लालू का बड़ी बेटी मींसा भारती भी तेजस्वी से नाराज थी। जबकि तेज प्रताप ने तो अपने करीबी नेताओं को चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़वाया था।

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