लेडी सिंघम नहीं, जिम्मेदारियों पर खरा उतरना मेरा मकसद : चारू

  • 2014 बैच की आईपीएस अधिकारी चारू निगम का साक्षात्कार
  • अधीनस्थों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती हैं ये आईपीएस अधिकारी
  • चंबल के डाकुओं से जब लोहा लिया तब आई थीं चर्चा में

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। मैं कोई लेडी सिंघम नहीं हूं। मैं एक आईपीएस अधिकारी हूं। नौकरी में मैं सिर्फ अपना कर्तव्य निभाती हूं। मेरी पहली पोस्टिंग बुंदेलखंड के झांसी में थी। वहां दबंगों व चंबल के डाकुओं से कई बार सामना हुआ। तभी से लोग मुझे लेडी सिंघम कहने लगे। मगर इस बात पर मैंने कभी गौर नहीं दिया। मुझे जो जिम्मेदारी सरकार ने दी, उसका सही तरीके से निर्वहन करती हूं। यही मेरी प्राथमिकता है। फील्ड वर्क मुझे पसंद है। इस पर मेरा ध्यान ज्यादा केंद्रित रहता है। यह कहना है 2014 बैच की आईपीएस अधिकारी चारू निगम का। यूपी पुलिस की एसपी रैंक की अधिकारी चारु निगम अपने अधीनस्थों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती हैं। जिलों में पोस्टिंग के दौरान अपराधियों पर शिकंजा कसने के चलते वे अक्सर चर्चा में रहती हैं। स्मार्ट पुलिसिंग के तरीके अपनाने में माहिर चारू निगम एक कर्तव्यनिष्ठ और जुझारू महिला अधिकारी हैं। वर्तमान में राजधानी लखनऊ में बतौर डीसीपी के पद पर तैनात हैं। लखनऊ में कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद उन्हें बतौर डीसीपी ट्रैफिक के रूप में तैनाती मिली थी। शहर में बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने पर उनकी प्रदेश सरकार ने खूब तारीफ की। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर 4पीएम संवाददाता सत्य प्रकाश ने उनका साक्षात्कार किया। आइये जानते हंै क्या कहती हंै लेडी सिंघम।

महिला सुरक्षा पर आपके क्या विचार हैं?
आईपीएस चारू के अनुसार नारी अगर नारायणी है तो वह दुर्गा और काली का रूप भी धारण कर सकती है। बस जरूरत है तो उसे पहचानने की। वे कहती हैं कि महिलाएं अपनी सुरक्षा खुद कर सकती हैं। बस जरूरत है तो सही प्रशिक्षण की। महिला उत्पीडऩ के मुद्दों पर कहती कि महिला उत्पीडऩ के लिए नहीं बनी हैं। वे अकेले ही सब करने में सक्षम है। सहारे के बिना भी वो अपना लोहा समाज में मनवा सकती है।

चंबल के डाकुओं पर कैसे कसा शिकंजा?ï
पहली पोस्टिंग बुंदेलखंड के झांसी में मिली थी। तैनाती के दौरान दबंगों, अपराधियों और माफियाओं के इलाके में कई बार उनसे भिड़ीं। उनसे लोहा लिया। झांसी के जिस बरुआसागर थाने में पोस्टेड थीं, वो इलाका खनन माफियाओं और अवैध शराब तस्करी के लिए जाना जाता था। अपने कार्यकाल में इन माफियाओं के खिलाफ मेरा सख्त रवैया था। इसके बाद से दबंग, डाकू और अपराधी मेरी कानूनी प्रक्रिया को देखकर भाग खड़े होते थे।

ड्यूटी के दौरान कोई यादगार पल?
झांसी में तैनाती के दौरान गांवों में चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएं सुनती थीं। साल 2016 की बात है। जब बरुआसागर में सडक़ हादसे में एक बच्चा घायल हो गया था, एंबुलेंस आती तब तक देर हो जाती ऐसे में बच्चे को तुरंत गोद में उठाया और अपनी ही गाड़ी में उसे लेकर अस्पताल पहुंची। वहां बच्चे को बचाने के लिए खून की जरूरत थी। डोनर नहीं मिला तो मैंने ही रक्तदान किया। वह पल आज भी याद है मुझे।

ज्वाइनिंग के समय पहला फोकस किस पर रहता है?
ज्वाइनिंग मिलते ही सबसे पहले अपने ही कार्यालय में मौजूद सभी उपकरणों और संसाधनों सहित स्टाफ का पूर्ण विवरण अपने अनुसार तैयार करवाती हूं। इससे काम करने में सुविधा होती है। पता करती हूं कि कितने वायरलेस सेट हैं। किसे जारी किये गए हैं। कितने सही हैं और कितने खराब हैं। इसकी शीट भी बनवाती हूं। साथ ही सभी थाना क्षेत्रों में लंबित विवचनाओं का भी विवरण भी मांगती हूं ताकि जल्द से जल्द लोगों को न्याय मिल सके।

लोग जब सवाल उठाते हैं तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती है?
अन्य प्रदेशों की अपेक्षा यहां लड़कियां महफूज है। विपक्ष व निंदा करने वाले लोग सरकार पर बेवजह सवाल उठाते रहते हैं। मेरा मानना है कि हर बेटी भी घर के बाहर अकेली निकल सकती है और जरूरत पडऩे पर परिवार के पुरुषों की मदद भी कर सकती है। बेटियों से कहना चाहती हूं कि सडक़ पर तुम महफूज हो, बस अपनी ताकत को पहचान लो। लोगों का तो काम है सवाल उठाना।

अपने अधीनस्थों का कैसे रखती हैं ख्याल?
टीम वर्क पर भरोसा करती हूं। थानों में फील्ड से संबंधित सभी काम आने चाहिए। पीएम रिपोर्ट के आधार पर ही मुकदमे में धारा लगाई जाती है। इसके अलावा अपने सहकर्मियों का पूरा ख्याल रखती हूं। अजनबी लोगों से अफसर नहीं बल्कि संवेदनशील व्यवहार करती हूं ताकि उनके मन में पुलिस का भय पैदा न हो।

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