19 दिसम्बर : थ्रिल, सस्पेंस और हारर से भरपूर राजनीतिक दिन!

  • पीएम मोदी के इस्तीफे वाली खबर से दहली देश की राजनीति!
  • राहुल गांधी विदेश में क्या कुछ पकाने गये हैं!
  • संजय राउत का बयान तंज नहीं सरकार को खुली चुनौती

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। क्या पीएम मोदी कल इस्तीफा दे देंगें? क्या 19 दिसम्बर को देश की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है? क्या कल का सूरज देश की राजनीति को बेचैन कर देगा? इस तरह की राजनीतिक अटकलों भरी खबरें सच साबित होगी या फिर यह भी दिसम्बर की उस सर्द रात की तरह अफवाह होगी जब रात में लोग सोते समय पत्थर के बन रहे थे। क्योंकि सोशल मीडिया समेत तमाम राजनीतिक अड्डों पर अटकलों के बाजार को इन खबरों ने गर्म कर दिया है। एक और सवाल जो देश की जनता को बेचैन कर रहा है कि क्या यह खबर प्लांट लोगों का असल मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए प्लांट कि गया है? क्योंकि शिवसेना यूबीटी समेत कांग्रेस और सपा के बड़े नेतओं ने इस सबंध में सार्वजनिक प्लेटफार्म पर अपने बयान दर्ज कराये हैं। शिव सेना यूबीटी नेता संजय राउत ने तो बाकायादा प्रेस कांफ्रेंस कर कहा है कि देश किसी बड़े राजनीतिक विस्फोट होने के घंटे गिन रहा है।

विपक्षी अफवाह या रणनीतिक हमला?

इस बार खास बात यह है कि प्रधानमंत्री के इस्तीफे की चर्चा सिर्फ अज्ञात ट्विटर हैंडल्स तक सीमित नहीं रही। शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों के नेताओं ने इसे सार्वजनिक मंचों पर उठाया है। संजय राउत का वह बयान जिसमें वे 19 दिसंबर के घंटे गिनने की बात करते हैं राजनीतिक तंज भर नहीं है बल्कि सत्ता को खुली चुनौती है। यह सवाल लाजमी है कि क्या विपक्ष के पास कोई ठोस जानकारी है? या फिर यह एक मनोवैज्ञानिक दबाव रणनीति है जिसका मकसद सरकार को रक्षात्मक मुद्रा में धकेलना है? भारतीय राजनीति में पहले भी देखा गया है कि जब विपक्ष को लगता है कि सत्ता किसी अंदरूनी उथल-पुथल से गुजर रही है तो वह अफवाह को हथियार बनाकर नैरेटिव युद्ध छेड़ देता है।

टेस्ट बैलून

अगर यह खबर अफवाह है तो सवाल यह है कि इसी वक्त क्यों? जब देश महंगाई, बेरोजगारी, कृषि संकट, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे असल मुद्दों से जूझ रहा है तभी प्रधानमंत्री के इस्तीफे की चर्चा हवा में क्यों तैरने लगती है? राजनीतिक इतिहास गवाह है कि सत्ता जब असहज होती है तो या तो ध्यान भटकाया जाता है या फिर जन प्रतिक्रिया की नब्ज टटोली जाती है। अफवाहें कई बार महज शोर नहीं होतीं वह सत्ता की ओर से छोड़े गए टेस्ट बैलून भी होते हैं। यह देखने के लिए कि जनता जनार्दन और सहयोगी दल इस विषय पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं। अक्सर नहीं ज्यादातर इस तरह के मुद्दों को हवा में उछालकर देश के प्रतिष्ठित लोगों की प्रतिक्रिया पर सरकारी नजर होती है।

अफवाहें नेतृत्व परिवर्तन की

भारत में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं नयी नहीं हैं। इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक। हर मजबूत प्रधानमंत्री के दौर में किसी न किसी मोड़ पर अंत की भविष्यवाणियां की जा चुकी हैं। फर्क बस इतना है कि आज का दौर सोशल मीडिया का दौर है जहां अफवाहें मिनटों में आग बन जाती हैं। लेकिन इतिहास यह भी बताता है कि जब अफवाहें लगातार संगठित और राजनीतिक संरक्षण के साथ फैलाई जाती हैं तो वे अक्सर किसी आंतरिक संकट की ओर इशारा करती हैं चाहे वह गठबंधन की दरार हो उत्तराधिकार की लड़ाई हो या फिर नीति-निर्माण में फंसा हुआ शासन।

सरकारी चुप्पी सबसे बड़ा बयान

अगर यह सब महज झूठ है तो फिर सवाल उठता है कि सरकार की ओर से सख्त और स्पष्ट खंडन क्यों नहीं? इतिहास गवाह है कि मजबूत सत्ता अफवाहों को कुचलने में तनिक देर नहीं लगाती। लेकिन जब सत्ता चुप रहती है तो चुप्पी खुद एक बयान बन जाती है। क्या यह चुप्पी रणनीतिक है? क्या सरकार यह देखना चाहती है कि बाजार ब्यूरोक्रेसी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस विषय पर कैसे प्रतिक्रिया देता है? या फिर सच में कुछ ऐसा है जिसे वक्त से पहले नकारना मुमकिन नहीं है।

सत्ता, विपक्ष और लोकतंत्र तीनों को आईना दिखा दिया

सवाल यह नहीं कि 19 दिसंबर को सचमुच कोई इस्तीफा होगा या नहीं। असली सवाल यह है कि इस तारीख को इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है? क्या यह संसद, संगठन या सत्ता संरचना से जुड़ा कोई निर्णायक मोड़ है? या फिर यह तारीख महज एक प्रतीक है उस बेचैनी की जो सत्ता के भीतर पनप रही है? क्योंकि नेतृत्तव परिवर्तन से नाराज नेताओं की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। पहले इक्का दुक्का नेता थे जो मोदी—शाह की जोड़ी से पार्टी के भीतर असहज महसूस करते थे। लेकिन जैसे जैसे समय आगे बड़ रहा है पार्टी के भीतर असंतोष पनप रहा है। फिलहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफे को तथ्य के तौर पर पेश करना न संभव है न जिम्मेदाराना। लेकिन इस चर्चा को नजरअंदाज करना भी राजनीतिक अंधापन होगा। यह प्रकरण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि भारतीय राजनीति किस मोड़ पर खड़ी है जहां अफवाहें भी राष्ट्रीय बहस की दिशा तय करने लगती हैं। 19 दिसंबर आएगा। सूरज उगेगा। इस्तीफा हो या न हो लेकिन एक बात तय है कि इस अफवाह ने सत्ता, विपक्ष और लोकतंत्र—तीनों को आईना दिखा दिया है। और शायद यही इस पूरी कहानी का सबसे बड़ा सच है।

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