राजस्थान में 7 सीटों ने बिगाड़ा गणित, अमित शाह ने मान ली हार!

देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं। इन सबके बीच इण्डिया गठबंधन और NDA में जबरदस्त सियासी घमासान देखने को मिल रहा है।

4PM न्यूज़ नेटवर्क: देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं। इन सबके बीच इण्डिया गठबंधन और NDA में जबरदस्त सियासी घमासान देखने को मिल रहा है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला अभी भी जारी है। नेता और मंत्री एक दूसरे पर तीखे हमले करते हुए नजर आ रहे हैं। वहीं इस बार बताया जा रहा है कि राजस्थान भाजपा का गणित बिगड़ने में अन्य समीकरणों के अलावा राजस्थान के सात विधायकों ने बड़ी भूमिका अदा की है। इतना ही नहीं विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद इन नेताओं ने लोकसभा चुनाव में भी अपनी ताल ठोकी है न केवल मज़बूती से चुनाव लड़ा है बल्कि भाजपा के सारे समीकरण भी बिगाड़ दिए हैं।

बता दें कि वर्तमान में कांग्रेस से विधायक हरीश मीणा टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट, ललित यादव अलवर लोकसभा सीट से, बृजेंद्र ओला झुंझुनूं लोकसभा से, दौसा विधायक मुरारी लाल मीणा दौसा लोकसभा सीट से, हनुमान बेनीवाल नागौर लोकसभा सीट से, बीएपी के विधायक राजकुमार रोत बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट और बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी लोकसभा चुनाव लड़ रहें हैं।

इस चुनाव में इन विधायकों के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन उनकी प्रतिष्ठा ज़रूर दांव पर है। लोकसभा चुनाव जीतेंगे तो देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद भवन पहुंचेंगे। लेकिन यह ज़रूर है कि इन बड़े और क़द्दावर नेताओं की चुनावी मैदान में होने से इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प रोचक और भाजपा के लिए चुनौती भरा हो गया है।

 

दरअसल, कांग्रेस राजस्थान में संगठन का पूरा चेहरा बदलने की तैयारी कर रही है। प्रदेश कांग्रेस स्तर पर इस संबंध में एक्शन प्लान तैयार कर लिया कि लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद दिल्ली आलाकमान से अनुमति से फैसला लिया जाएगा। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के साथ ही राजस्थान कांग्रेस में बड़े बदलाव होंगे। खासतौर पर संगठन से जुड़े बड़े नेताओं की छुट्टी कर दी जाएगी, जो चुनाव में निष्क्रिय रहे या जिन्होंने पार्टी के खिलाफ गतिविधियों में पर्दे के पीछे भूमिका निभाई है। आपको बता दें कि राजस्थान में ऐसे 400 नेताओं की सूची तैयार कर ली गई है। इन नेताओं की जगह ऊर्जावान युवाओं को जगह दी जा सकती है। इन नेताओं में विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी और कई पूर्व विधायक पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। राजस्थान में संगठन में फिलहाल करीब 2200 पदाधिकारी हैं। इनमें करीब 400 के आसपास ऐसे नेता हैं जो लोकसभा चुनाव में अपनी भूमिका का निर्वहन करने में विफल रहे हैं।

 

राजस्थान कांग्रेस वॉर रूम की ओर से ऐसे नेताओं को नोटिस जारी किए गए हैं। साथ ही उनसे पूछा गया है कि चुनाव के दौरान आप कहां काम कर रहे थे। अपने प्रभार वाले क्षेत्र में आप कितनी बार गये आपने कितनी मीटिंग की है। कांग्रेस के किस कार्यक्रम में आप शामिल हुए. नोटिस का जवाब मिलेगा. उस आधार पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के स्तर पर निर्णय लिया जाएगा. क्रॉस वेरिफिकेशन मंे निष्क्रिय पदाधिकारियों को कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।

 

आपको बता दें कि राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों पर मतदान के बाद अब भाजपा और कांग्रेस ने जीत को लेकर अपने अपने दावे किए हैं। भाजपा चुनाव से पहले 25 सीटें जीतने का दावा कर रही थी, जिस पर पार्टी के नेता अभी भी बरकरार हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले ही प्रत्याशियों के चयन में परेशानी झेलने वाली कांग्रेस को राजस्थान की वोटिंग से उम्मीद जगी है. मतदान के बाद अब कांग्रेस के नेता भाजपा से एक सीट अधिक जीतने का दम भर रही हैं. ऐसे में कांग्रेस का मानना है कि कम से कम वो राजस्थान में 13 सीट जीत सकती है. लोकसभा चुनाव का परिणाम चार जून को आएगा और इसका असर नेताओं के सियासी भविष्य पर पड़ेगा. माना जा रहा है कि परिणाम चाहे जो भी रहे राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बड़े नेताओं के सियासी ग्राफ में बदलाव लाजमी है।

 

अगर भाजपा की बात की जाए तो चुनाव के बाद राजस्थान को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलेगा. बता दें कि सीपी जोशी वर्तमान में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ सांसद का चुनाव भी लड़ रहे हैं. ब्राह्मण मुख्यमंत्री होने के चलते अब सीपी जोशी को केंद्र में भाजपा की सरकार आने पर मंत्रिमंडल में जगह या फिर संगठन में किसी दूसरी जगह पर एडजस्ट किया जा सकता है. सीपी जोशी की जगह किसी जाट या किसी दलित नेता को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है.

वहीं आपको बता दें कि राजस्थान में कांग्रेस 4 जून के बाद मुख्यमंत्री बदलने का दावा कर रही है लेकिन लगता नहीं है कि मोदी और अमित शाह के इस फैसले में किसी प्रकार का कोई बदलाव होगा. हां, यह जरूर है कि तीन या चार सीट कम होने पर मंत्रिमंडल में कई मंत्रियों की कुर्सी खतरे में होगी. खासतौर पर दौसा चुनाव जिस तरीके से फंसा हुआ है. किरोड़ी लाल मीणा के बयान उनकी चिंताएं जाहिर कर चुके हैं.

अगर कांग्रेस की बात की जाए तो अगर देश में इण्डिया गठबंधन की सरकार बनती है तो राजस्थान कांग्रेस के सभी नेताओं के अच्छे दिन आ जाएंगे. अगर राजस्थान में कांग्रेस पार्टी 4-5 सीटें भी जीत लें तो भी इसका क्रेडिट कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मिलेगा. खासतौर पर PCC चीफ का कद और बढ़ जाएगा. भविष्य के लिहाज से सचिन पायलट की भूमिका भी राजस्थान में और बढ़ी और महत्वपूर्ण हो सकती है. परिणाम चाहे जो भी रहे, लेकिन इतना तो तय है कि राजस्थान में अब कमान पायलट डोटासरा जूली जैसे नेताओं के हाथों में ही रहने वाली है. हो सकता है कांग्रेस पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अनुभव को देखते हुए उन्हें केंद्र में संगठनों में कोई बड़ी और अहम जिम्मेदारी दे दे. कुल मिलाकर यह चुनाव केन्द्र में सरकार बनाने और राज्यों में अपनी ताकत दिखाने के साथ-साथ इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि इन चुनावों पर राजस्थान में भाजपा कांग्रेस के बड़े नेताओं का सियासी भविष्य भी निर्भर करेगा. चुनाव परिणाम बताएंगे कि आने वाले दिनों में उनकी राह किसी बड़ी जिम्मेदारी के लिहाज से आसान होगी।

 

आपको बता दें कि पिछले दिनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रदेश की राजनीति छाई रही. इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदेश की राजनीति में नवागंतुक सियासी चेहरों के मरुप्रदेश की राजनीति में उभार था. इनमें से कुछ ने प्रदेश की श्वेत-श्याम राजनीति में आधुनिक तरीके से प्रचार करके उसे रंगीन बना दिया. तो कुछ ने सालों से प्रदेश की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस की सत्ता को चुनौती दी है।

 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राजस्थान में लोकसभा चुनाव खत्म हो गए हैं. दो चरणों में हुए चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 और दूसरे चरण का मतदान 26 मई को हुआ था। राजस्थान में इस बार हुए लोकसभा चुनाव की खूब चर्चा हुई. उसकी कई वजहें थीं. राजस्थान की राजनीति आम तौर पर शांत रहती है. उसकी राष्ट्रीय स्तर पर इतनी चर्चा नहीं होती. लेकिन सबसे बड़ी वजह यह है कि, यहां की सियासत राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों की राजनीति के साथ चलती थी. लेकिन इस बार इसमें एक अलग रंग देखने को मिला. राजस्थान की सियासी चर्चा राष्ट्रीय मीडिया में छाई रही. सोशल मीडिया पर प्रदेश की राजनीति के घटनाक्रम खूब दिखाई दिए.

 

इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश की राजनीति में नवागंतुक सियासी चेहरों के मरुप्रदेश की राजनीति में उभार था. इनमें से कुछ ने प्रदेश की श्वेत-श्याम राजनीति में आधुनिक तरीके से प्रचार करके उसे रंगीन बना दिया. तो कुछ ने सालों से प्रदेश की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस की सत्ता को चुनौती दी. कुछ भी हो, लेकिन इन नए चेहरों का प्रदेश की राजनीति में खूब स्वागत हुआ।आज हम आपको उन्ही चर्चित चेहरों के बारे में बताने जा रहें हैं ….

आपको बता दें कि इस चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी की भी खूब चर्चा हुई है उन्होंने देश के मीडिया का ध्यान अपनी ओर खूब खींचने की कोशिश की है. बताया जा रहा है कि भाटी बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे. जहां भाटी ने दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा की नाक में दम कर दिया. भाटी भी जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके हैं.

विधानसभा चुनाव से पहले वो भाजपा में शामिल हो गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बाद में उन्होंने बाड़मेर की शिव विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतर कर चुनाव जीता.भाटी के चुनाव प्रचार के तरीकों ने हर किसी को प्रभावित किया. सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया में राजस्थान में पहले चरण के चुनाव में बाड़मेर लोकसभा का त्रिकोणीय चुनाव और भाटी का नाम छाया रहा

इसके साथ ही अनिल चोपड़ा को कांग्रेस ने जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. चोपड़ा कांग्रेस की युवा पंक्ति के सबसे चर्चित चेहरों में एक हैं. वहीं आपको बता दें कि राजस्थान में भाजपा-कांग्रेस के बड़े नेताओं का सियासी भविष्य लोकसभा चुनाव 2024 के रिजल्ट पर निर्भर करेगा. ऐसे में अब चुनाव परिणाम बताएंगे कि आने वाले दिनों में उनकी राह किसी बड़ी जिम्मेदारी के लिहाज से आसान होगी या फिर सियासी करियर पर विराम लग जाएगा…

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