अमित शाह से नहीं बनती, भ्रष्टाचार की नयी-नयी कहानी फिर भी क्यों नहीं हटीं यूपी की राज्यपाल!
- अंगद के पांव की तरह डटी हैं गवर्नर आनंदीबेन पटेल
- राजभवन की फिजा है निराली, यहां पर सब चंगा है
- आर्टिकल 157 की मदद से कर रहीं हैं राज
- कार्यकाल खत्म हुए चार माह का समय गुजर जाने के बाद भी उत्तराधिकारी की चर्चा तक नहीं
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की गवर्नर आंदनीबेन पटेल के कार्यकाल को खत्म हुए लगभग चार माह हो चुके हैं। लेकिन वह आर्टिकल 157 के हवाले से गवर्नर पद पर कायम हंै। न तो उनको हटाया जा रहा है और न ही उनके कार्यकाल को अभी तक बढ़ाया गया है।
यूपी के इतिहास में अभी तक किसी भी गवर्नर के कार्यकाल को रिपीट नहीं किया गया है। सवाल यही है कि क्या आनंदीबेन इस रिकार्ड को तोड़ देंगी और फिर से पांच वर्ष के लिए उनके कार्यकाल को बढ़ा दिया जाएगा या फिर वह अनुच्छेद 157 के सहारे यू ही डंटी रहेगी। सूत्रों की माने तो अनुच्छेद 157 वाली बात सही है क्योंकि संकेत ऐसे ही मिल रहे हैं।
अन्नदाताओं के मुद्दों पर भी ओढ़ी खमोशी
उत्तर प्रदेश में किसानों और सामाजिक समस्याओं को लेकर चल रहे आंदोलनों के दौरान राज्यपाल की निष्क्रियता भी चर्चा का विषय रही। ऐसे समय में जब राज्यपाल की भूमिका संवेदनशील मामलों में मध्यस्थता करने की होती है, आनंदीबेन ने चुप्पी साधे रखी। यह चुप्पी उनके संवैधानिक दायित्वों पर सवाल खड़े करती है।
विवादों से भरा है कार्यकाल
आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के रूप में 29 जुलाई 2019 को पदभार संभाला था। यूपी के गवर्नर के रूप में जैस-जैसे उनका सफर आगे बढ़ा वैसे ही विवादों का स्वरूप बड़ा होने लगा। उन पर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्तियों में सीधा हस्तक्षेप करने का बड़ा अरोप लगा। उनके द्वारा नियुक्त कुलपति जेल तक गये और सीबीआई से जांच तक हुई। आनंदीबेन पटेल पर यह भी आरोप लगे कि उन्होंने संवैधानिक पद पर रहते हुए राजनीतिक पक्षपात किया। उन्होंने कुछ विधेयकों को बिना व्यापक चर्चा के मंजूरी दे दी और विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों की अनदेखी की जिसको लेकर उनकी सर्वाजनिक आलोचना हुयी। उन पर विपक्षी दलों को हाशिए पर डालने और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने के भी आरोप लगे।
परिजनों का भी रहा है विवादों से नाता
गवर्नर ही नहीं उनके परिजनों पर भी कई आरोप लगें हैं। सूत्रों के अनुसार उनकी पुत्री अनारा जयेश पटेल को लेकर कई विवाद भी हैं। उनके गुजरात के सीएम रहते उनकी पुत्री को राज्य के कई जिलों में सस्ती जमीनें दी गई थी जो बाजार मूल्य से काफी कम थीं। उधर यूपी में भी कई योजनाओं में उनकी बेटी की हिस्सेदारी की बातें सामने आती रहती हैं। हालांकि समय-समय पर यूपी में होने वाले कई सांस्कृतिक व सामाजिक समारोह में अनारा से जुड़ीं योजनाएं गाहे-बगाहे दिखती रहतीं हैं।
वाइस चांसलर की नियुक्तियों में की मनमानी
गवर्नर आनंदीबेन पटेल पर ऐसे लोगों को वाइस चांसलर नियुक्त करने के आरोप लगे हैं जो कि विवादास्पद रहे हैं। उन्होंने जब चाहा, जहां चाहा, जिसको चाहा, की तर्ज पर कुलपति नियुक्त किये और खुद ही कुलपति की जांच के आदेश देकर उसको हटा दिया। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) के कुलपति प्रोफेसर पीके मिश्रा का उदहारण लिया जा सकता है। पहले उन्हें कुलपति बनाया फिर हटा दिया और गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जेपी पांडेय को एकेटीयू का नया कुलपति नियुक्त कर दिया। गौरतलब है कि राज्यपाल विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति होने के नाते शिक्षा व्यवस्था को स्वायत्त और निष्पक्ष बनाए रखने की भूमिका में होते हैं। जबकि मौजूदा गवर्नर पर आरोप लगे हैं कि कुलपतियों की नियुक्ति में पारदर्शिता और योग्यता को नजरअंदाज किया गया। जिससे अकादमिक माहौल पर गलत असर पड़ा। राजनीतिक विशलेषक इसे सरकार का उच्च शिक्षा पर राजनीतिक नियंत्रण का प्रयास बता रहे हैं।
ड्रोन से निगरानी के लगे थे आरोप
उत्तर प्रदेश सरकार और राजभवन में गाहे बगाहे दूरियों का अहसास होता रहता है। या यूं कहं कि जो रिश्ते सरकार और राजभवन के बीच होने चाहिए वैसे दिखते नहीं हैं। लगभग 2 वर्ष पूर्व राजभवन के उपर मंडराते ड्रोन को लेकर हड़कंप मच गया था और सियासी गलियारों में इस ड्रोन के कई मकसद निकाले जाने लगे थे। सपा ने आरोप लगाया था कि क्या सरकार राजभवन की ड्रोन से निगरानी कर रही है। ड्रोन मामले की जांच हुई तो पता चला कि यह ड्रोन लोक निमार्ण विभाग ने उड़ाया था। बड़ा सवाल यही है कि ड्रोन हैंडलिंग के लिए यूपी में बाकायदा नियम और कानून है। यहां तक कि यदि किस शादी ब्याह या किसी फंक्शन आदि में ड्रोन शूट करना हो तो है तो बाकायदा उसकी परमीशन लेने का प्रवाधान है। ऐसे में राजभवन के उपर उड़ते ड्रोन ने सवालिया निशान जाहिर? किये थे।