IAS अभिषेक प्रकाश समेत 16 अधिकारी दोषी करार, CM योगी ने कार्रवाई के दिए निर्देश 

4PM न्यूज़ नेटवर्क: उत्तर-प्रदेश की राजधानी लखनऊ में यूपी डिफेन्स कॉरिडोर भूमि अधिग्रहण घोटाले में IAS ऑफिसर अभिषेक प्रकाश समेत 16 अफसर दोषी पाए गए हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, जिसमें निलंबन और गिरफ्तारी की संभावना है। सूत्रों के मुताबिक जांच में अनियमित भुगतान और सरकारी धन की हानि का आरोप है।

इसके बाद निलंबन समेत गिरफ्तारी की तलवार भी आईएएस अभिषेक प्रकाश समेत 16 अफसरों पर लटक रही हैं।राजस्व विभाग की जांच रिपोर्ट में आईएएस अफसर अभिषेक प्रकाश, तत्कालीन एसडीएम शंभू शरण, आनंद कुमार, देवेंद्र कुमार, संतोष कुमार, तहसीलदार मनीष त्रिपाठी, विजय कुमार, ज्ञानेंद्र सिंह, उमेश कुमार और नायब तहसीलदार कविता ठाकुर, राजस्व निरीक्षक राधेश्याम, जितेंद्र कुमार सिंह, नैंसी शुक्ला, लेखपाल हरिश्चंद्र और ज्ञान प्रकाश अवस्थी को दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट के बाद सेवारत कर्मियों का निलंबन तय माना जा रहा है।

मिली जानकारी के अनुसार जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि जमीन अधिग्रहण के लिए क्रय समिति के अध्यक्ष के रूप में डीएम व तहसीलदार ने अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण में अनियमित भुगतान व शासकीय धन की हानि का भी आरोप लगा है। बता दें कि CM योगी आदित्यनाथ की हरी झंडी के बाद राजस्व विभाग ने कार्रवाई के लिए रिपोर्ट नियुक्ति विभाग को भेज दी है।

राजस्व विभाग ने नियुक्ति विभाग को भेजी रिपोर्ट

शुरूआती जांच के अनुसार आरक्षित श्रेणी की सरकारी जमीन भी घपलेबाजों के नाम कर दी गई। अनुसूचित जाति के व्यक्तियों की भूमि बिक्री की अनुमति अवैध रूप से दी गई। जांच में निकलकर सामने आया कि कई मुआवजा पाने वाले का नाम खतौनी में दर्ज नहीं था, फिर भी सिर्फ रजिस्ट्री के आधार पर उन्हें भुगतान कर दिया गया। मामले में आगे की जांच जारी है।

जानिए पूरा मामला?

दरअसल, 2021 में लखनऊ के भटगांव में डिफेन्स कॉरिडोर के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस दौरान लखनऊ के डीएम अभिषेक प्रकाश थे। ऐसे में उन पर आरोप है कि जमीन अधिग्रहण में जमकर अनियमितता की गई, जिससे सरकारी धन की हानि हुई। आरोपों की जांच के लिए राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. रजनीश दुबे और कानपुर के तत्कालीन मंडलायुक्त अमित गुप्ता की कमेटी गठित की गई। कमेटी की जांच में पाया गया कि जमीन अधिग्रहण के लिए 1985 की फर्जी पट्टा पत्रावली के आधार पर आवंटियों और उनके वारिस के दावों को स्वीकार किया गया और उन्हें भुगतान भी कर दिया गया।

 

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