लाफोरा डिज़ीज़ किस उम्र में होता है, इसके क्या लक्षण हैं जानें?
लाफोरा एक जेनेटिक यानी आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं में असामान्य स्टार्च जैसे पदार्थ जमा होने लगते हैं। यह धीरे-धीरे न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाता है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लाफोरा डिजीज (Lafora Disease) एक दुर्लभ लेकिन अत्यंत गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जो दिमाग को प्रभावित करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी की पहचान अगर समय रहते न हो, तो मरीज की हालत तेजी से बिगड़ सकती है। इस बीमारी की शुरूआत अक्सर किशोरावस्था में होती है और धीरे-धीरे यह मांसपोशियों की सक्रियता, सोचने-समझने की क्षमता और रोजमर्रा की गतिविधियों को प्रभावित करने लगती है।
क्या है लाफोरा डिजीज?
लाफोरा एक जेनेटिक यानी आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं में असामान्य स्टार्च जैसे पदार्थ जमा होने लगते हैं। यह धीरे-धीरे न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचाता है।
किन उम्र में होती है यह बीमारी?
अधिकतर मामलों में यह बीमारी 10 से 17 साल की उम्र में सामने आती है. हालांकि शुरुआत में इसके लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये गंभीर हो जाते हैं और आगे चलकर इससे मरीज की परेशानी बढ़ने लगती है. ऐसे में शुरुआती दौर में इस बीमारी की पहचान होने से डॉक्टर को इलाज करने में आसानी होती है.
लक्षण क्या होते हैं?
मिर्गी के दौरे (Seizures): अचानक शरीर हिलने लगना या बेहोशी आना.मायोक्लोनस: शरीर के किसी हिस्से में झटके या कंपन होना. धीरे-धीरे मानसिक क्षमता कम होना: पढ़ाई में ध्यान न लगना, चीजें भूलना या व्यवहार में बदलाव. चलने-फिरने में दिक्कत: संतुलन बिगड़ना या मांसपेशियों में कमजोरी. दृष्टि पर असर: कुछ मामलों में दृष्टि भी कमजोर होने लगती है.
इस बीमारी का कारण क्या है?
यह बीमारी जेनेटिक यानी आनुवंशिक होती है. इसका मतलब है कि अगर माता-पिता में किसी में भी इस बीमारी से जुड़ा जीन दोषपूर्ण होता है, तो बच्चा इससे प्रभावित हो सकता है. यह ऑटोसोमल रिसेसिव डिसऑर्डर है, यानी दोनों माता-पिता से दोषपूर्ण जीन मिलने पर ही बीमारी होती है.
क्या है इलाज?
अभी तक लाफोरा डिजीज का कोई पक्का इलाज नहीं है. लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और मरीज की जिंदगी थोड़ी आसान बनाने के लिए कुछ दवाइयां दी जाती हैं, इससे मरीज दवा लेने के बाद राहत महसूस करता है. इस बीमारी की कुछ दवाएं हैं, जैसे,
मिर्गी के दौरे कम करने की दवाएं
फिजियोथेरपी और स्पीच थेरपी।पोषण और देखभाल पर विशेष ध्यान।बायोटेक्नोलॉजी और जेनेटिक रिसर्च में चल रहे नए प्रयासों से भविष्य में इसका इलाज संभव हो सकता है.कितनी खतरनाक है यह बीमारी?यह एक प्रोग्रेसिव बीमारी है यानी समय के साथ बढ़ती जाती है. शुरू में केवल झटके लगते हैं, लेकिन कुछ वर्षों में मरीज बोलने, सोचने और चलने की क्षमता खो देता है. ज़्यादातर मामलों में मरीज 10 साल के अंदर गंभीर अवस्था में पहुंच जाता है.


