अप्रवासी भारतीयों के लिए अमेरिका में रहने का माहौल नहीं!

- छोटी—छोटी गलतियां बन रही हैं वीजा कैंसिल होने का आधार
- कांग्रेस समेत विपक्ष ने मोदी सरकार को घेरा
- मोदी सरकार की अमेरिकी कूटनीति सिर्फ जनसभाओं तक सीमित
- नहीं बदल रहा रवैया, दिन प्रतिदिन बढ़़ रही हैं भारतीय छात्रों की मुसीबतें
- वैध वीजा धारकों को भी अधिक जांच और अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। अमेरिका में जाकर पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए वहां का महौल चिंताजनक है और पल-पल बदल रहा है। अमेरिका में माहौल अप्रवासी विरोधी हो गया है। किसी भी अप्रवासी चाहे वह छात्र हो या एच1बी तकनीकी कर्मचारी उन्हें संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। खासकर राजनीतिक गतिविधियों या प्रदर्शनों में शामिल छात्रों की विशेष जांच की जा रही है।
यहां तक कि यातायात उल्लंघन जैसे मामूली उल्लंघनों को भी वीजा रद्द करने के आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्ष 2023 से अमेरिका में अप्रवासी भारतीय छात्रों की हालत बिगडऩी शुरू हुई जो अब चरम पर पहुंच चुकी है। छोटी-छोटी तकनीकी त्रुटियां जैसे क्लास में उपस्थिति में कमी, जॉब ट्रेनिंग में मामूली नियम उल्लंघन, या कॉलेज से बाहर रहने की अवधि अब वीजा रद्द होने का कारण बन रही हैं। कई छात्रों को बिना चेतावनी डिपोर्ट किया जा रहा है। वहीं इस मामले पर कांग्रेस समेत सभी विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार को घेर लिया है।
पहचान के लिए संघर्ष कर रहे भारतीय छात्र
भारतीय छात्र अब सिर्फ कक्षा में नहीं बल्कि अपनी पहचान के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में हेट-क्राइम, नस्लीय टिप्पणियाँ, और स्थानीय छात्र-समुदायों से दूरी की खबरें लगातार आ रही हैं। सिख, मुस्लिम, और दक्षिण भारतीय छात्रों को विशेष रूप से टारगेट किया जा रहा है। यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट की कार्रवाईयाँ पहले की तुलना में कहीं अधिक कठोर हो गई हैं। भारत से गए छात्रों को एयरपोर्ट पर रोका जा रहा है। उनसे घंटों पूछताछ हो रही है और कभी-कभी बिना उचित कानूनी सहारे के वापस भेजा जा रहा है। ऐसा लगता है जैसे अब निष्कासन पहले न्याय बाद में की नीति चल रही है।
ब्रेन ड्रेन से ब्रेन पेन तक का सफर
एक दौर था जब भारत के सबसे प्रतिभाशाली छात्र अमेरिका जाते थे वहाँ की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते थे और भारत के लिए प्रवासी पूंजी और वैश्विक पहचान बनते थे। परंतु अब वही छात्र डर और असुरक्षा में जी रहे हैं। यह ट्रेंड केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं बल्कि भारत की समग्र वैश्विक साख पर भी असर डाल रहा है। जब एक आईटी इंजीनियर या शोधार्थी को बिना उचित कारण डिपोर्ट किया जाता है तो उससे अमेरिका को नहीं बल्कि भारत की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँचती है। भारत जो खुद को विकसित देश बनने की राह पर बता रहा है वह अपने युवाओं की वैश्विक चुनौतियों से कैसे मुँह मोड़ सकता है?
भारतीयों पर भारी पड़ रहा अमेरिका फस्र्ट
अमेरिका फस्र्ट अब सिर्फ चीन या मेक्सिको पर नहीं बल्कि भारतीयों पर भी लागू हो रहा है। ट्रंप समर्थक लॉबी मानती है कि भारतीय छात्र अमेरिकी जॉब मार्केट पर बोझ हैं। विदेश नीति एक्सपर्ट रोबिंदर सचदेव के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसी दोस्ताना सार्वजनिक सभाएं चर्चा में रहीं लेकिन यह दोस्तीभारतीय छात्रों की सुरक्षा की गारंटी नहीं बन पाई। भारतीय विदेश मंत्रालय कई बार औपचारिक विरोध दर्ज कर चुका है, पर अमेरिका का रवैया मुश्किल से ही बदला है। इससे सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार की अमेरिकी कूटनीति सिर्फ जनसभाओं तक सीमित है?
सामूहिक निर्वासन के बाद आयी है तेजी
इस तरह की कर्रवाईयां इस साल की शुरुआत में अमेरिकी सरकार द्वारा किए गए कई सामूहिक निर्वासन अभियानों के बाद तेज हुयी हैं। विदेशी छात्रों के बीच बढ़ती आशंका अमेरिकी आव्रजन नीति में व्यापक बदलाव को दर्शाती है जहां अब वैध वीजा धारकों को भी देश में अपने भविष्य के बारे में अधिक जांच और अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है।
स्थिति चिंताजनक
विदेशी मामलो के जानकार रोबिन सचदेवा कहते हैं कि सरकार की तरफ से विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया गया है कि वे अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से जुड़े किसी भी आरोप या चिंता की खबर की रिपोर्ट मंत्रालय को करें। सचदेव कहते हैं कि जिन छात्रों पर मामूली आरोप भी लगे हैं उन्हें चिह्नित किया जा रहा है। प्रशासन ऐसी परिस्थितियों में आक्रामक तरीके से वीजा रद्द कर रहा है। इससे अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए मौजूदा माहौल बहुत परेशान करने वाला हो गया है।
ट्रंप प्रशासन के इस दावे पर अपनी चुप्पी तोड़ें पीएम मोदी : जयराम
कांग्रेस ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि वे ट्रंप प्रशासन के इस दावे पर अपनी चुप्पी तोड़ें कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कैसे हुआ। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री को देश को बताना चाहिए कि क्या यह सच है कि अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने 23 मई, 2025 को न्यूयॉर्क स्थित अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय में शपथ लेकर बयान दर्ज कराया था कि राष्टï्रपति ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच अस्थिर युद्ध विराम कराने और नाजुक शांति लाने के लिए अपनी टैरिफ शक्ति का इस्तेमाल किया? उन्होंने आगे लिखा कि हावर्ड लुटनिक वही बात दोहरा रहे हैं जो खुद राष्ट्रपति ट्रंप 11 दिनों में 3 अलग-अलग देशों में 8 बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी इसी तरह का बयान देते हुए भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत के लिए एक न्यूट्रल साइट का जिक्र किया है। मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंन लिखा प्रधानमंत्री चुप्पी तोड़ो!




