नक्सल ऑपरेशन में जांच की मांग पर HC सख्त, कहा- पुलिसिंग के ढांचे में दखल नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि SIT जांच केवल तभी की जा सकती है, जब मानवाधिकार उल्लंघन और सत्ता के दुरुपयोग जैसी कोई गंभीर परिस्थिति न हो.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि नक्सल विरोधी ऑपरेशन्स में SIT जांच नहीं हो सकती. कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना पुलिसिंग के फेडरल ढांचे को कमजोर करना होगा. नक्सली ऑपरेशन में मारे गए केंद्रीय समिति के सदस्य रामचंद्र रेड्डी के बेटे ने कोर्ट में दलील दी कि उनके पिता की मौत की झूठी कहानी गढ़ी जा रही है.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नक्सलियों की मौत की SIT जांच वाली याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सुरक्षा बलों द्वारा चल रहे एंटी-नक्सल ऑपरेशन को SIT की जांच के दायरे में नहीं लाया जा सकता है. इससे पुलिसिंग के फेडरल ढांचे पर असर पड़ेगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि SIT जांच केवल तभी की जा सकती है, जब मानवाधिकार उल्लंघन और सत्ता के दुरुपयोग जैसी कोई गंभीर परिस्थिति न हो.
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते हुए दी, जिसमें पिछले महीने नारायणपुर जिले में केंद्रीय समिति के सदस्य रामचंद्र रेड्डी की एंटी-नक्सल ऑपरेशन में मौत हो गई थी और उनके बेटे ने अपने पिता की मौत को लेकर एसआईटी जांच की मांग की गई थी.
रेड्डी के बेटे राजा चंद्रा ने कोर्ट में एसआईटी के गठन की मांग वाली याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके पिता की सुरक्षा बलों ने एक फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी. उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि उनके पिता की हत्या को लेकर एक झूठी कहानी गढ़ी गई क्योंकि सुरक्षा बलों और नक्सलियों दोनों की संख्या बहुत अधिक थी, लेकिन मुठभेड़ में सिर्फ उनके पिता और एक और व्यक्ति मारे गए. उन्होंने आरोप लगाया कि उन लोगों को हिरासत में लिए जाने के बाद, उन्हें जंगल ले जाया गया होगा, जहां सुरक्षा बलों ने उन्हें मार डाला.
दरअसल, केंद्रीय समिति के सदस्य रामचंद्र रेड्डी उर्फ राजू दादा (63) और कादरी सत्यनारायण रेड्डी उर्फ कोसा दादा(67) 22 सितंबर को जंगली पहाड़ियों के पास पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे. उनके पास से AK-47, INSASराइफल, BGL लॉन्चर और अन्य हथियार बरामद हुए थे.
कई अन्य मामले भी थे दर्ज
कोर्ट ने कहा कि मुठभेड़ में मारे गए रेड्डी पर कई आपराधिक मामले भी दर्ज हैं और इसी वजह से 2007 में वह घर छोड़ चुके थे. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसे आशंका और डर के आधार पर दायर किया गया है. कोर्ट ने कहा कि आरोप को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है.



