‘धनखड़ 100 दिन से पूरी तरह खामोश’: पूर्व उपराष्ट्रपति को लेकर कांग्रेस ने उठाए सवाल- अब तक विदाई समारोह नहीं

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बुधवार को कहा कि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे के बाद 100 दिनों से पूरी तरह मौन साध रखा है। रमेश ने यह भी कहा कि उन्हें कम से कम उनके सभी पूर्ववर्तियों की तरह एक विदाई समारोह का अधिकार है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने क्या कहा?
पार्टी के महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना को ठीक 100 दिन हो गए हैं। 21 जुलाई की देर रात अचानक और चौंकाने वाली बात यह हुई कि भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया। यह स्पष्ट था कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था, भले ही वह दिन-रात प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते रहे हों। जो पूर्व उपराष्ट्रपति रोजाना सुर्खियों में रहते थे, सौ दिनों से पूरी तरह खामोश हैं- न कहीं देखे गए और न सुने गए।
विपक्ष को अनुचित तरीके से फटकारते थे धनखड़: रमेश
रमेश ने कहा, राज्यसभा के सभापति के रूप में पूर्व उपराष्ट्रपति विपक्ष के अच्छे मित्र नहीं थे। वह लगातार और अनुचित तरीके से विपक्ष को फटकारते रहते थे। फिर भी लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करते हुए विपक्ष कह रहा है कि वह कम से कम एक विदाई समारोह के हकदार हैं, जैसा कि उनके सभी पूर्ववर्तियों को मिला था। यह अब तक नहीं हुआ।
धनखड़ के इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने कहा था कि उनके इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों से कही गहरी है। कांग्रेस ने कहा था कि उनका इस्तीफा उनकी महानता को दिखाता है। यह उन्हें इस पद पर चुनने वालों के लिए खराब संदेश है। विपक्षी पार्टी ने सरकार से उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के कारण को स्पष्ट करने को भी कहा था।
क्या हुआ था पूरा घटनाक्रम
21 जुलाई को धनखड़ ने अचानक उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया था और स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया था। उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजा और कहा कि वह तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं। धनखड़ (74 वर्षीय) ने अगस्त 2022 में पद संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था। वह राज्यसभा के सभापति भी थे और उनका इस्तीफा मानसून सत्र के पहले दिन आया। राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ का कई बार विपक्ष के साथ टकराव देखने को मिला, जो उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भी लाया। स्वतंत्र में उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए यह प्रस्ताव लाया गया था। बाद में राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने इसे खारिज कर दिया।



