कानून की चौखट पर सवाल! सुप्रीम लताड़

  • आवारा कुत्तों के लिए कब बनेगी नीति
  • देश के राज्यों की सरकारें नहीं ले रही इंट्रेस्ट
  • सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को जमकर डांट लगाई
  • अगली सुनवाई 7 नवम्बर को
  • सिर्फ बंगाल और तेलंगाना ने समय पर दिया हलफनामा

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आवारा कुत्तों के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की विशेष बेंच में आज सुनवाई हुयी। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की विशेष बेंच ने आज स्पष्ट शब्दों में कहा कि बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर देश के सभी मुख्य सचिव अदालत के सामने पेश हों।
यह वही आदेश था जो 27 अक्टूबर को जारी किया गया था अभी तक देश की राज्यों की सरकारों ने आवारा कुत्तों पर नियंत्रण और एनीमल बर्थ कंट्रोल रूल्स के अनुपालन पर हलफनामा दाखिल नहीं किया है। कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि उसने आवारा कुत्तों के काटने से बच्चों में फैल रहे रेबीज के मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया है। यह सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं बल्कि जीवन के अधिकार से जुड़ा मुद्दा है।

चेतावनी भरा रहा आज का दिन

आज का दिन सिर्फ एक कानूनी तारीख नहीं रही बल्कि एक चेतावनी भरा दिन भी रहा। भारत में हर बड़ी दुर्घटना चाहे रेल हादसा हो, पुल गिरना हो, या आवारा कुत्तों के हमले एक ही पैटर्न से गुजरते हैं पहले प्रशासन सोता है फिर न्यायालय जगाता है और अंत में मीडिया हल्ला मचाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अब यह स्पष्ट कर दिया है कि यह कुत्तों का मामला नहीं बल्कि व्यवस्था की नाकामी का मामला है। जब तक शहरों की सड़कों पर डर रहेगा, तब तक करुणा अधूरी और न्याय अधर में रहेगा।

मामले की पृष्ठभूमि : अधूरी नीति, अधूरा अमल

भारत में एनीमल बर्थ कंट्रोल डॉग रूल्स वर्ष 2023 लागू हुए थे। जिनमें यह व्यवस्था की गई थी कि हर राज्य कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिए एक विशेष बोर्ड बनाएगा। लेकिन सिर्फ नाम के बोर्ड बने फंड नहीं, टीम नहीं, और जमीन पर काम न के बराबर। नगर निगमों को आदेश था कि हर छह महीने में डॉग पॉपुलेशन डेटा जारी करेंगा लेकिन देश के 23 राज्यों में पिछले दो सालों से एक भी रिपोर्ट जारी नहीं हुई।कहने को हर राज्य में पशु प्रेमी एनजीओ सक्रिय हैं पर वास्तविकता यह है कि प्रशासनिक समन्वय की कमी और धन आवंटन की देरी के चलते योजनाएं कागज पर ही भौंकती रह जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसी कारण आज मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया। बंगाल और तेलंगाना को राहत इसलिए मिली क्योंकि दोनों राज्यों ने अनुपालन हलफनामा समय पर दाख़िल कर दिया था।

17 लाख से ज्यादा लोगों को कांटते हैं कु त्ते

देश में हर साल 17 लाख से अधिक डॉग बाइट केस दर्ज होते हैं। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार, सिर्फ 2024 में 21 बच्चों की मौत रेबीज संक्रमण से हुई ज्यादातर मामलों में संक्रमित कुत्ते सड़कों पर खुले घूमते रहे और प्रशासन ने तब तक कार्रवाई नहीं की जब तक बच्चे की मौत नहीं हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति पर सख़्त शब्दों में कहा है कि क्या राज्य की सरकारें सो रही हैं? कोर्ट आदेश देती है और महीनों तक अनुपालन रिपोर्ट तक दाखिल नहीं होती। यह टिप्पणी उस व्यवस्था के लिए आईना है जो आस्था और राजनीति में तो जागृत रहती है मगर जीवन और कानून के सवालों पर गहरी नींद में रहती है।

एक ओर पशु प्रेमी दूसरी ओर आम नागरिक

भारतीय समाज में आवारा कुत्तों के प्रति भावनाएं दो ध्रुवों में बंटी दिखाई देती हैं। एक ओर पशु-प्रेमी हैं जो फीडिंग ड्राइव चलाते हैं और दूसरी ओर नागरिक हैं जो बच्चों की सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां इन दोनों वर्गों के बीच संतुलन खोजने का प्रयास हैं कुत्ते भी जीव हैं लेकिन उनकी सुरक्षा इंसानों की जान की कीमत पर नहीं हो सकती। पिछले एक साल में नोएडा, भोपाल, और हैदराबाद में 6 बच्चों की मौत कुत्तों के हमले में हुई। कुछ राज्यों में स्थानीय निकायों द्वारा कुत्तों की हत्या पर पशु अधिकार संगठनों ने विरोध दर्ज कराया। ऐसे में न्यायपालिका का दबाव नीतिगत स्पष्टता की ओर एक ठोस कदम बन सकता है।

सरकारी इमारतों में भोजन का इंतजाम

आज की सुनवाई में बेंच ने कहा कि आप कानून बनाकर अगर सो जाएं तो यह न सिर्फ नाकामी है बल्कि नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि सरकारी परिसरों में कुत्तों को भोजन की व्यवस्था को लेकर जल्द दिशा-निर्देश जारी किये जा सकते हैं। अगली सुनवाई 7 नवंबर को तय की गई है जब सुप्रीम कोर्ट यह विचार करेगा कि क्या देश में आवारा कुत्तों पर एकीकृत राष्ट्रीय नीति बनाई जा सकती है। यह सुनवाई एक नई दिशा की ओर संकेत कर रही है जहां न्यायालय न केवल राहत देगा बल्कि नीति-निर्माण के लिए दबाव भी बनाएगा।

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