प्रचंड जीत के बाद भी ‘महाटेंशन’ में NDA! Amit Shah को बुलानी पड़ी अर्जेंट मीटिंग
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA को बेशक एक ऐतिहासिक और प्रचंड जीत मिली है...243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटों के साथ दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत हासिल किया है...

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA को बेशक एक ऐतिहासिक और प्रचंड जीत मिली है…243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटों के साथ दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत हासिल किया है…
BJP ने नवासी सीटें जीती हैं…जबकि नीतीश कुमार की JDU ने 85 सीटों पर जीत दर्ज की है…लेकिन राजनीति का ये खेल हमेशा सीधा नहीं होता…इस बड़ी जीत के बावजूद, NDA के अंदर मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर एक गहरा सस्पेंस और तनाव दिखाई दे रहा है…यही तनाव अब बिहार की सत्ता का पूरा समीकरण बदलने की कगार पर आ गया है…क्योंकि विपक्ष यानी महागठबंधन ने खेल में एक बड़ा दाँव चल दिया है….जिससे गुजरात लॉबी के होश उड़े गए हैं…तो ऐसा मुख्यमंत्री पद से ठीक 2 दिन पहले महागठबंधन ने ऐसा क्या किया…जिससे NDA में मच गई खलबली…और शपथ ग्रहण से पहले NDA में ऐसा क्या फंसा पेंच कि दौड़े-दौड़े दिल्ली पहुंचे संजय झा?…
दोस्तों, बिहार में एनडीए को मिली भारी जीत जितनी बड़ी है, उतनी ही बड़ी परेशानी भी लेकर आई है…जेडीयू की सीटें भले दोगुनी होकर 85 तक पहुंच गई हों…लेकिन नीतीश कुमार की बेचैनी कम होने का नाम नहीं ले रही…2020 में 43 सीटें जीतकर भी वो खुद को ज्यादा सुरक्षित मान रहे थे…लेकिन 2025 में दोगुनी सीटें लाने के बावजूद वो राजनीतिक तौर पर पहले से ज़्यादा असुरक्षा महसूस कर रहे हैं….उधर बीजेपी की चालें भी साफ दिखने लगी है…विधायक दल की बैठक बार-बार टाली जा रही है…और पार्टी के भीतर ये चर्चा तेज है कि 122 के बहुमत आंकड़े को बिना नीतीश कुमार के ही छूने की कोशिश हो रही है…यही वजह है कि 14 नवंबर को नतीजे आने के बाद भी एनडीए की ओर से नीतीश के नाम का आधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है…
यानी बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार के गठन की प्रक्रिया भले ही शुरू हो गई हो…लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज़ादी के बाद शायद अपने सबसे बड़े सियासी असमंजस से घिरे हुए हैं…गठबंधन की जीत के बावजूद, जनादेश ने उन्हें किंगमेकर से किंग तो बनाए रखा है…मगर उनके हाथ में अब गठबंधन की लगाम पहले से कहीं ज़्यादा ढीली हो चुकी है…इस तनावपूर्ण माहौल को दो ताज़ा खबरों ने विस्फोटक बना दिया है…पहली खबर देखिए जिसमें लिखा है कि सरकरा बनाने से पहले NDA में फंसा मामला?…
अमित शाह से मिलने पहुंचे संजय झा….और दूसरी कि कांग्रेस नेता राशिद अल्वी का सीधा ऑफर…जिसमें उन्होंने नीतीश को BJP के धोखे से आगाह करते हुए महागठबंधन के साथ आने की सलाह दी है………कुल मिलाकर जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बिहार की राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित रही है…लेकिन हाल के घटनाक्रम ने इसे एक बार फिर हाई-वोल्टेज ड्रामा में बदल दिया है….एक तरफ NDA के भीतर सरकार गठन से पहले ही अनबन की खबरें हैं और दूसरी तरफ, कांग्रेस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक खुला आमंत्रण देकर मामले को और गरमा दिया है…इन दोनों घटनाक्रमों ने नीतीश कुमार को एक ऐसे चौराहे पर ला खड़ा किया है…जहाँ उन्हें एक कठिन और निर्णायक फैसला लेना होगा….सवाल सीधा है कि क्या नीतीश कुमार, बीजेपी के संभावित खेल से बचने के लिए, एक बार फिर महागठबंधन का दामन थामेंगे?…
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, JDU के वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले संजय झा का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलना एक आम मुलाकात नहीं, बल्कि एक गंभीर सियासी संकेत है…ये मुलाकात दर्शाती है कि एनडीए में सब कुछ ठीकठाक नहीं है…अगर सब कुछ तय होता….तो ऐसी हाई-प्रोफाइल, चुनाव के तुरंत बाद की मुलाकात की शायद जरूरत न पड़ती…ये इस बात की ओर इशारा करता है कि Power Equation को लेकर दोनों पार्टियों के बीच कुछ अहम मसले हैं….जिन्हें सुलझाया जाना बाकी है….संजय झा का दिल्ली जाना ये भी दिखाता है कि JDU….सरकार में अपनी भूमिका, मंत्रालयों के बंटवारे और सबसे जरूरी…मुख्यमंत्री पद की अवधि को लेकर बीजेपी के साथ मोल-भाव कर रहा है…नीतीश कुमार अपनी किंगमेकर की छवि को बनाए रखने और पार्टी के हितों की रक्षा के लिए इस दबाव की रणनीति का इस्तेमाल कर रहे होंगे…
‘5 साल CM नहीं रहने देगी BJP’ – क्या यह नीतीश का डर है?….कांग्रेस नेता राशिद अल्वी का ये बयान कि बीजेपी नीतीश कुमार को 5 साल मुख्यमंत्री नहीं रहने देगी….भले ही एक विपक्षी नेता का आरोप ह….लेकिन ये बात नीतीश कुमार की सबसे बड़ी आशंका को उजागर करती है……क्योंकि, इस चुनाव में जदयू की सीटें बीजेपी की तुलना में काफी कम हो गई हैं….बीजेपी अब एनडीए में बड़ा भाई बन चुकी है और राजनीति में संख्याबल ही शक्ति है….और इसी संख्याबल का उपयोग करके बीजेपी नीतीश कुमार पर दबाव डाल सकती है……….बीजेपी पर पहले भी अपने सहयोगियों को कमजोर करने या उन्हें किनारे करने के आरोप लगते रहे हैं…जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ हुआ…नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं कि अगर वो कमजोर पड़ते हैं….तो बीजेपी उन्हें ढाई साल का सीएम बना सकती है या किसी और बड़े नेता को आगे लाकर उन्हें असहज कर सकती है….
दोस्तों, राजनीति में खेला शब्द का अर्थ होता है….अचानक पाला बदलना, तोड़फोड़ करना या सत्ता समीकरण बदल देना….ऐसे में नीतीश कुमार को ये डर सता रहा है कि बीजेपी अपने दम पर सत्ता में आने के लिए भविष्य में JDU के विधायकों को तोड़कर या गठबंधन के अंदर ही कोई बड़ा बदलाव करके, उन्हें कमजोर कर सकती है….ऐसे में संजय झा की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात और 5 साल CM नहीं का डर….साफ दिखाता है कि नीतीश कुमार फिलहाल NDA के साथ पूरी तरह से सेफ नहीं हैं…उन्हें अपनी राजनीतिक भविष्य की चिंता सता रही है और वो एक सुरक्षित विकल्प की तलाश में हैं…
इसी तनाव के बीच, कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने नीतीश कुमार को साफ शब्दों में सलाह दी है कि वो महागठबंधन के साथ आएं और पाँच साल तक स्थिर सरकार चलाएं…बीजेपी द्वारा खेला करने की आशंकाओं के ठीक विपरीत, पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का आश्वासन देता है…ऐसे में महागठबंधन का ये ऑफर नीतीश कुमार के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है……..महागठबंधन, जिसमें RJD सबसे बड़ी पार्टी है…
नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देने के लिए तैयार दिखता है और ये ऑफर नीतीश कुमार को सम्मान के साथ सत्ता में वापसी का मौका देता है…साथ ही उन्हें बीजेपी के दबाव से छुटकारा मिल सकता है……भले ही नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच पहले काफी मतभेद रहे हों……लेकिन ये ऑफर दिखाता है कि सत्ता की राजनीति में विचारधारा और व्यक्तिगत विरोध पीछे छूट जाते हैं….तेजस्वी यादव भी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि नीतीश कुमार के बिना, उनका सत्ता में आना असंभव है……..
महागठबंधन में, नीतीश कुमार को शायद बीजेपी की तुलना में अधिक कार्यकारी स्वतंत्रता मिलेगी, क्योंकि उनके और लालू परिवार के बीच सत्ता का संतुलन अधिक स्पष्ट हो सकता है…ये ऑफर नीतीश कुमार को बैकअप प्लान देता है…अगर एनडीए में उनकी मांगों को नहीं माना जाता…या उन्हें सच में खतरा महसूस होता है….तो उनके पास तुरंत पाला बदलने का विकल्प मौजूद है…5 साल तक सीएम बने रहने का मतलब है अपनी राजनीतिक विरासत को पूरी तरह से मजबूत करना…इन दोनों घटनाक्रमों को मिलाकर….
ये साफ है कि नीतीश कुमार एक बेहद ही नाजुक राजनीतिक स्थिति में हैं…ऐसे में देखना अहम होगा कि क्या नीतीश कुमार एक बार फिर से अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत बनाने के लिए पलटी मारेंगे?…क्या नीतीश कुमार BJP की कथित चालों को भांपते हुए एक बार फिर से महागठबंधन के पास जाएंगे?…फिलहाल, बिहार की राजनीति में ये Wait and Watch की स्थिति बनी रहेगी….लेकिन इतना तो तय है कि नीतीश कुमार की एक चाल ही बिहार की पूरी राजनीति को बदल सकती है…..तो क्या इस बार फिर से नीतीश कुमार अपने फैसले से सभी को चौकाएंगे?…



