आखिरकार SIR पर मोदी सरकार ने टेके घुटने, SC में फंस गए ज्ञानेश

एक ओर जहां सरकार एसआईआर को लेकर घुटनों पर आ गई है और सदन में चर्चा कराने को तैयार हुई है तो वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में भी ज्ञानेश कुमार के विभाग को नोटिस जारी हुई है। बडा सवाल यह निकल कर समाने आया है कि आखिर सरकार को क्यों विपक्ष के आगे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा है

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों, आखिकार एसआईआर को लेकर पीएम साहब और उनके बहुत करीबी अफसर यानि कि ज्ञानेश जी बुरा फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं।

एक ओर जहां सरकार एसआईआर को लेकर घुटनों पर आ गई है और सदन में चर्चा कराने को तैयार हुई है तो वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में भी ज्ञानेश कुमार के विभाग को नोटिस जारी हुई है। बडा सवाल यह निकल कर समाने आया है कि आखिर सरकार को क्यों विपक्ष के आगे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा है और कैसे एसआईआर पर चर्चा का ऐलान करने के बाद भी मोदी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं, ये सबकुद हम आपको आगे इस रिपोर्ट में बताने वाले हैं। साथ ही इस पर भी चर्चा करेंगे कि कैसे सुप्रीम कोर्ट में अचानक खेल पलटता हुआ दिखाई दे रहा है।

दोस्तो, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि विपक्ष बिहार में एसआईआर के ऐलान होने के बाद से ही इसका विरोध कर रहा है लेकिन न तो सरकार सुन रही थी और न ही इलेक्शन चीफ ज्ञानेश कुमार। क्योंकि सरकार का रवैया एसआईआर को लेकर पॉजटिव है, इसलिए ज्ञानेश कुमार भी विपक्ष को बहुत भाव देते नहीं दिख रहे थे। बिहार में एसआईआर खत्म करते ही उन्होंने देश के 12 राज्यों में एक साथ एसआईआर कराने का फैसला ले लिया, हालांकि पहले भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में था और अब भी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में ही है लेकिन दूसरी ओर विपक्ष सड़क से लेकर संसद तक एसआईआर का विरोध कर रहा है।

आपको याद दिला दें कि मानसून सत्र में एसआइ्रआर को लेकर विपक्षी दलों ने काफी विरोध किया था लगभग 10 दिन संसद की कार्रवाइ्र पूरी तरह से ठप्प रही लेकिन उसके बाद भी मोदी सरकार ने एसआइ्रआर पर चर्चा कराना मुनासिब नहीं समझा और सत्र खत्म हो गया। बाद में बिहार में एसआईआर हुआ और एनडीए की सरकार बन गई। हालांकि इसके बाद भी विपक्ष ने एसआईआर के मुद्दे को नहीं छोड़ा और दो दिन से लगातार सदन में एसआईआर को लेकर भयंकर गतिरोध जारी है लेकिन इस बार दो ही दिन में सरकार चर्चा के लिए तैयार हो गई यानि कि एसआईआर पर मोदी सरकार चर्चा के लिए तैयार है, हलांकि सरकार की ओर से इसका नाम बदलकर चुनाव सुधार कर दिया गया है लेकिन सच में यह चर्चा एसआईआर पर ही है।

आपको बता देें कि देश में करीब एसआईआर में करीब 28 बीएलओ की मौत हो गई है, लाखों लोगों के नाम मतदाता सूची से निकाल दिए गए हैं लेकिन जब मानसून सत्र में चर्चा कराने की मांग हो रही थी तो सरकार ने इस पर चर्चा कराना बेहतर नहीं समझा बल्कि बिहार में एसआईआर कराकर चुनाव करवा दिया है लेकिन पिछले 10 दिन और अब के दो दिन सदन की कार्रवाई बर्बाद होने के बाद अचानक सरकार को चुनाव सुधार की याद आ गई है। हालांकि सरकार माना जा रहा है कि विपक्ष के दबाव में सरकार घुटनों पर आई है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अगर सरकार को चर्चा की कराना था तो क्यों सदन के 12 दिन बर्बाद करवाए, क्यों नहीं मानसून सत्र में ही एसआईआर का नाम बदल कर ही चर्चा करा ली होती। आपको बता दें कि आज ही कांग्रेस ने सदन में धारा 267 का जिक्र करके एसआईआर पर चर्चा कराने की मांग की थी लेकिन सब्जेक्ट को उठाया नहीं गया, इस पर राज्य सभा के सभापति और कांग्रेस अध्यक्ष माल्लिकार्जुन खरगे में तीखी नोकझोंक भी हुई।

आपको बता  दें कि एसआईआर इस गतिरोध के बीच संसद भवन के बाहर आज इंडिया गठबंधन ने एसआईआर के विरोध में मजबूत प्रदर्शन किया। इस पर राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी कह तो जाते हैं कि संसद भारत के लोगों का है, मगर जनता के जरूरी मुद्दों पर चर्चा से भागते रहते हैं. लोकतंत्र में मताधिकार से बड़ा जनता का मुद्दा क्या हो सकता है? इसलिए विपक्ष की मांग है कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए संसद में एसआईआर पर गंभीर चर्चा हो.।वोट से ही नागरिक के सारे अधिकार हैं और एसआईआर साफ तौर पर देश के गरीबों और बहुजनों के वोट काटने और चुनावों को एकतरफा बनाने का हथियार है।

इसके बाद संसद में जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ने आज दोपहर 3 बजे संसद भवन स्थित अपने कक्ष में संसदीय दल के नेताओं की बैठक बुलाई है। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजीजू और अर्जुन राम मेघवाल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू के यहां सर्वदलीय बैठक भी हुई, जिसमें कांग्रेस, टीएमसी, सपा, लेफ्ट के नेता शामिल हुए.

बैठक में सदन को चलाने के लिए चर्चा हुई। बाद में .कार्य मंत्रणा परिषद की बैठक में 9-10 दिसंबर को लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा होगी। 8 दिसंबर को सदन में वंदे मातरम पर चर्चा होगी। आपको बात दें कि इस नोटिस जारी हो गया है लेकिन सवाल यह है कि अगर सरकार को कराना था तो सदन का 12 दिन क्यों बर्बाद किया। क्या बिहार चुनाव के लिए सरकार ने मानसून सत्र मंे एसआईआर पर चर्चा नहीं कराई थी। आपको बता दें कि इसको लेकर मोदी सरकार सवालों के घेरे में फंस गई है।

आपको बता दें कि एक ओर एसआईआर पर चर्चा कराने के बाद भी मोदी सरकार सवालों में है तो दूसरी ओर ज्ञानेश कुमार भी सुप्रीम कोर्ट में बुरा फंसे है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल में टाइम बढ़ाए जाने को लेकर ज्ञानेश कुमार जी के विभाग से समय पूछा है कि क्या समय सीमा एक हफ्ते और बढा़ई जा सकती हैं। आपको बता दें कि केरल में स्थानीय निकाय के चुनाव चल रहे हैं। हालांकि वहीं सुप्रीम कोर्ट में दूसरी ओर वकील ने एसआईआर के खिलाफ तगडी दलील पेश की है।

चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की बेंच के समक्ष वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अपना पक्ष रखा। सिंघवी ने एसआईआर मामले पर चुनाव आयोग पर तीखा प्रहार किया। सिंघवी का दावा है कि ईसी को नियम बनाने का कोई अधिकार ही नहीं! यह संसदीय कानूनों से संचालित व्यवस्था है। अगले साल एसआईआर के दस्तावेज लेने से कोई रोक नहीं सकता।

कल को जाति, दादा-नानी का प्रमाण-पत्र मांग लेगी। एसआईआर का पूरा ढांचा द्विपक्षीय और चतुर्भुज (बाइलेटरल) है, न कि प्रत्येक राज्य की 6-7 करोड़ आबादी के हिसाब से तय होता है।यह एक ऐसी व्यवस्था है जो संसदीय कानूनों से संचालित होती है। चुनाव आयोग का पावर कांस्टीट्यूएंसी-लेवल तक सीमित है, न कि पूरे राज्य या देश स्तर पर. यह प्रक्रिया रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट के दायरे से बाहर है।

ईसी को प्रक्रियागत सुधार का नाम देकर सबस्टैंटिव चेंजेस करने का हक नहीं। सिंघवी ने उदाहरण दिया कि 2003 के बाद नामांकित वोटर्स को अब ‘प्रिजम्प्टिव गेस्ट’ मान लिया गया है- जब तक प्रमाण न दें, नाम कट जाएंगे। हालांकि अब इस मुद्दे पर चर्चा अगली तारीख में होगी लेकिन जिस तरह से सिंघवी की दलील है, उसमें एक बात साफ है कि कहीं न कहीं ज्ञानेश कुमार जी पर अपने नियम थोपने का आरोप लगता हुआ दिख रहा है।

ऐसे में साफ है कि एक ओर जहां ज्ञानेश कुमार जी सुप्रीम कोर्ट में फंस है तो वहीं मोदी सरकार एसआईआर की चर्चा को लेकर न सिर्फ घुटनों पर आई बल्कि सवालों के घेरे में है कि यही काम सरकार ने मानसून सत्र में क्यों नहीं कराया।, जिसको लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। हालांकि 9 और10 को सदन में एसआईआर पर चर्चा होगी।

पूरे मामले पर आपको क्या मानना है कि क्या सरकार ने एसआईआर पर विपक्ष के दबाव के आगे घुटने टेक दिए हैं। क्या सरकार को बिहार विधान सभा से पहले एसआईआर पर मानसून सत्र में ही चर्चा नहीं कराना चाहिए था। क्या सरकार ने जानबूझकर बिहार चुनाव से पहले एसआईआर पर चर्चा नहीं कराई। क्या एसआईआर में जिस तरह से 28 बीएलओ मर गए, ये गंभीर विषय नहीं है।

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