इसुदान गढ़वी का सरकार पर हमला, विकास पर AAP का तंज, बीजेपी की खुली पोल

गुजरात में नर्मदा नदी सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि कई लाख लोगों की उम्मीद है। इसी उम्मीद को पूरा करने के लिए नर्मदा नहर प्रणाली बनाई गई।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: गुजरात में नर्मदा नदी सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि कई लाख लोगों की उम्मीद है। इसी उम्मीद को पूरा करने के लिए नर्मदा नहर प्रणाली बनाई गई।

सरकार ने दावा किया कि अब गुजरात के हर प्यासे गाँव तक पानी पहुँचेगा, खेत सींचेंगे, किसान खुश होंगे और आदिवासी इलाकों में जीवन आसान हो जाएगा। विज्ञापनों में इसी तस्वीर को दिखाया गया भरपूर पानी, हरी-भरी फसलें और मुस्कुराते हुए किसान। लेकिन जब आप नर्मदा कैनाल के कई गांवों में पहुँचते हैं, तो सबसे पहले आपका सामना एक ऐसे सच से होता है जो इन दावों को पूरी तरह झुठला देता है।

नहरें तो हैं, लेकिन उनमें पानी नहीं है। पाइपलाइनें बिछाई गई हैं, लेकिन उनमें सिर्फ हवा बहती है। खेत नहर के बिल्कुल पास हैं, लेकिन किसान अब भी कुओं और टैंकरों पर निर्भर हैं। घरों में नल लगे हैं, लेकिन उनमें महीनों से पानी नहीं आया। यह तस्वीर सिर्फ एक गाँव की नहीं, नर्मदा कैनाल सिस्टम के नीचे आने वाले सैकड़ों गाँवों की है। और यही वह सच है जिसे इसुदान गढ़वी बार-बार उठाते हैं पानी नहर में कहाँ गायब हो रहा है?

इसुदान गढ़वी अक्सर अपने दौरे में यह सवाल पूछते हैं जब नहर बनी थी तो कहा गया था कि गुजरात का आधा हिस्सा पानी पर आत्मनिर्भर हो जाएगा। फिर आज भी इतने गांव सूखे क्यों हैं?उनके इस सवाल के पीछे सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की पीड़ा है जो पानी का इंतजार करते-करते थक चुके हैं। नर्मदा नहरें बनीं, बांध बने, पाइपलाइनें बिछीं, लेकिन पानी गाँव तक नहीं पहुँचा। हर बार सरकार कहती है काम जारी है, अगले महीने तक सब ठीक हो जाएगा। लेकिन यह अगले महीने कभी आता ही नहीं।

कई गाँवों में यह भी देखने को मिला है कि नहर से पानी उद्योगों की तरफ मोड़ दिया जाता है, लेकिन खेतों तक नहीं पहुँचता। पानी को मैनेजमेंट इश्यू कहा जाता है, लेकिन गाँव वालों का कहना है कि यह सिर्फ एक बहाना है। नहरों के किनारे रहने वाले किसान कहते हैं पानी हमारे सामने से गुजरता है, लेकिन हमारे खेत सूखे रहते हैं।” इस बात में गुस्सा भी है और बेबसी भी।

इसुदान गढ़वी इस मुद्दे को इसलिए भी बड़ा बताते हैं क्योंकि यह सिर्फ पानी का सवाल नहीं, बल्कि जीवन का सवाल है। पानी न मिलने से फसलें सूख जाती हैं। किसान कर्ज में डूबते जाते हैं। कई गांवों में महिलाएँ आज भी दूर-दूर तक पानी ले जाने के लिए चलती हैं। नर्मदा परियोजना का लक्ष्य था कि यह परेशानी खत्म होगी, लेकिन यह परेशानी और बढ़ गई है।

डांग, नर्मदा, भरूच, साबरकांठा, बनासकांठा जैसे इलाकों में हालात और भी खराब हैं। आदिवासी क्षेत्रों में नहरें तो बनीं, लेकिन पानी इन नहरों में आया ही नहीं। कई जगह नहरें अधूरी छोड़ दी गईं। कई पाइपलाइनें जंग खा चुकी हैं। और सबसे बड़ी बात इन इलाकों में पानी की निगरानी के लिए कोई स्थायी व्यवस्था ही नहीं है। सरकारी अधिकारी कहते हैं कि तकनीकी समस्या है। लेकिन जनता कहती है कि यह समस्या तकनीकी नहीं, नजरअंदाजी है। अगर सरकार चाहती तो नहरों का रख-रखाव समय पर हो सकता था। लेकिन यहाँ रख-रखाव नाम की चीज नहीं है।

इसुदान गढ़वी का कहना है कि अगर नर्मदा नहर प्रणाली ठीक से काम करे, तो गुजरात का कोई भी गाँव पानी के लिए तरसता नहीं रहेगा। वे इस बात पर जोर देते हैं कि करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी पानी सही जगह नहीं पहुँच रहा है, यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का मामला है।

कई गांवों में लोग बताते हैं कि चुनाव के दौरान नहर में पानी छोड़ दिया जाता है, ताकि दिखाया जा सके कि सब कुछ ठीक है। चुनाव खत्म होते ही पानी गायब हो जाता है। यह आरोप सिर्फ जनता नहीं, बल्कि क्षेत्र के कई सरपंच भी लगा चुके हैं। लेकिन सरकार ने कभी इस पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया। इसुदान गढ़वी जब इन इलाकों में जाते हैं तो उनकी सबसे बड़ी लाइन यही होती है नदी बह रही है, नहर बनी है, पाइपलाइनें बिछी हैं… तो फिर गाँव प्यासा क्यों है? और इस सवाल का कोई जवाब सरकार के पास नहीं है।

नर्मदा कैनाल सिस्टम पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर इतना बड़ा प्रोजेक्ट बनाया गया, इतना पैसा लगा, इतना प्रचार हुआ तो फिर उसके फायदे कहाँ हैं? गाँव वाले कहते हैं कि फायदे सिर्फ कागज़ों में हैं। रिकॉर्ड में नहर पूरी है, लेकिन जमीन पर अधूरी। रिकॉर्ड में पानी उपलब्ध है, लेकिन गाँव में एक बूंद नहीं।

यह मुद्दा AAP का बड़ा हथियार इसलिए भी है क्योंकि पानी हर घर से जुड़ा हुआ दर्द है। पानी ना मिले तो घर रुक जाता है, खेत रुक जाता है, जीवन रुक जाता है। जब सरकार विकास का दावा करती है, तो जनता सबसे पहले अपने नल की तरफ देखती है अगर उसमें पानी नहीं है, तो विकास की कहानी वहीं खत्म हो जाती है।

यह पूरी कहानी सिर्फ पानी की नहीं है यह सवाल है प्रशासन की प्राथमिकताओं का। यह सवाल है कि क्या विकास का मतलब सिर्फ बड़े शहर हैं? क्या ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र सिर्फ चुनावों के समय याद किए जाते हैं? क्या नहरों में पानी दिखाना ही पर्याप्त है, या पानी गांवों तक पहुँचाना असली जिम्मेदारी है? इसुदान गढ़वी इस बात को बहुत सरल भाषा में कहते हैं विकास नहर में नहीं, लोगों के घर में दिखना चाहिए। और यही लाइन आज गुजरात के कई प्यासे गाँवों की सच्चाई बन चुकी है।

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